Delhi riots: सगाई के लिए आरोपित कोर्ट से मांग रहा था अंतरिम जमानत, खराब आचरण के कारण नही मिली राहत
आरोपित शिव ने अपनी सगाई के लिए कोर्ट में अंतरिम जमानत के लिए अर्जी लगाई थी। बृहस्पतिवार को उसकी अर्जी पर अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव की कोर्ट में सुनवाई। वरिष्ठ लोक अभियोजक ने कोर्ट को बताया कि आरोपित शिवा की गिरफ्तारी एक अप्रैल 2021 को हुई है।
नई दिल्ली [आशीष गुप्ता]। दिल्ली दंगे के दौरान न्यू उस्मानपुर इलाके में एक व्यक्ति पर जानलेवा हमला करने के मामले में आरोपित शिवा की सगाई निर्धारित लग्न में नहीं हो पाएगी। बृहस्पतिवार को कड़कड़डूमा कोर्ट ने आरोपित के खराब आचरण और गंभीर आरोपों को देखते हुए उसे अंतरिम जमानत देने से इन्कार कर दिया। शिवा का सगाई समारोह 27 अप्रैल को लखनऊ में प्रस्तावित है, जिसके लिए उसने अंतरिम जमानत मांगी थी। गत वर्ष 25 फरवरी को न्यू उस्मानपुर इलाके में दंगे के दौरान एक व्यक्ति सिर में पत्थर लगने से गंभीर रूप से घायल हो गया था। पीड़ित ने आरोप लगाया था कि दंगाई दूसरे समुदाय के खिलाफ नारेबाजी करते हुए धार्मिक स्थल की तरफ जा रहे थे। उनके हाथ में लाठी, डंडे, पत्थर और पिस्तौल थी। वह गोलियां भी चला रहे थे।
इस मामले में आरोपित शिव ने अपनी सगाई के लिए कोर्ट में अंतरिम जमानत के लिए अर्जी लगाई थी। बृहस्पतिवार को उसकी अर्जी पर अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव की कोर्ट में सुनवाई। वरिष्ठ लोक अभियोजक ने कोर्ट को बताया कि आरोपित शिवा की गिरफ्तारी एक अप्रैल 2021 को हुई है। वह भगोड़ा घोषित हो चुका है। साथ ही बताया कि आरोपित वीडियो फुटेज में गोली चलाता हुआ स्पष्ट नजर आ रहा है। वरिष्ठ लोक अभियोजक ने कहा कि आरोपित का आचरण राहत पाने के योग्य नहीं है। इस पर कोर्ट ने आरोपित की अंतरिम जमानत अर्जी खारिज कर दी।
चश्मदीद गवाह का बयान देरी से लेने की वजह से आरोपितों को मिली जमानत
दंगे में गोकलपुरी इलाके में चमन पार्क ब्रजपुरी रोड गली नंबर एक पर सतीश कुमार नामक व्यक्ति की जेवर की दुकान में दंगाइयों ने लूटपाट की थी। 20 तोले सोना, एक किलो चांदी और डेढ़ लाख रुपये लूटने के बाद दंगाइयों ने उनकी दुकान में तोड़फोड़ कर दी थी। इस मामले में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव की कोर्ट ने आरोपित अशरफ अली और शोएब उर्फ छुटवा को जमानत दी है।
यह कहते हुए कि चश्मदीद गवाह का बयान 46 दिन बाद रिकार्ड करने के पीछे का उद्देश्य समझ नहीं आता। न ही पुलिस ने इस देरी की वजह स्पष्ट की है। चश्मदीद गवाह ने घटना वाले दिन पुलिस कंट्रोल रूम को काल भी नहीं किया था। जिससे अभियोजन की कहानी पर संदेह होता है। शिकायतकर्ता ने भी आरोपितों का नाम एफआइआर में दर्ज नहीं कराया था। ऐसे में उसे असीमित समय से जेल में रखना उचित नहीं।