AAP vs LG Tussle: विधेयक के पारित होने से पहले ही दिल्ली का सियासी पारा चढ़ा, ऐसे शुरू हुआ विवाद
उपराज्यपाल उन सभी मामलों में मंत्रिपरिषद की सहायता एवं सलाह मानने को बाध्य होंगे जिनमें दिल्ली विधानसभा को कानून बनाने का अधिकार है केंद्र सरकार ये विधेयक सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश के मुताबिक ही उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार के अधिकारों को स्पष्ट करने के लिए लेकर आई है।
नई दिल्ली जेनएएन। दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र शासन (संशोधन) विधेयक, 2021 केंद्र सरकार ने लोकसभा में पेश किया है। इस विधेयक के पारित होने से पहले ही राजधानी का सियासी पारा चढ़ गया है। दरअसल, दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी का दावा है कि यह संशोधन विधेयक चुनी हुई सरकार को कमजोर करने के लिए लाया गया है। उनका आरोप है कि केंद्र सरकार उपराज्यपाल के जरिये दिल्ली की सत्ता को नियंत्रित करना चाहती है। वहीं, भाजपा का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के जुलाई 2018 के निर्णय के बाद दिल्ली सरकार ने उपराज्यपाल के अधिकारों पर न सिर्फ अतिक्रमण किया, बल्कि उपराज्यपाल को विश्वास में लिए बिना मनमानी भी कर रही है। ऐसे में केंद्र सरकार ये विधेयक सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश के मुताबिक ही उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार के अधिकारों को स्पष्ट करने के लिए लेकर आई है।
ऐसे शुरू हुआ विवाद
दिल्ली में मुख्यमंत्री अर¨वद केजरीवाल के नेतृत्व में आप की सरकार बनने पर मुख्यमंत्री और तत्कालीन उपराज्यपाल नजीब जंग के बीच विभिन्न विषयों को लेकर खींचतान थी। इनमें उपराज्यपाल से सलाह के बिना मुख्य सचिव की नियुक्ति व उपराज्यपाल की सहमति के बिना भ्रष्टाचार के मामलों की जांच शुरू करने जैसे प्रमुख मुद्दे भी थे। इस खींचतान ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की स्थिति को लेकर कानूनी विवाद को जन्म दिया। यह कानूनी विवाद मुख्य रूप से दिल्ली के केंद्र शासित प्रदेश होने के विशेष दर्जे के मद्देनजर उपराज्यपाल की प्रशासनिक शक्तियों को लेकर था। विवाद की मूल वजह दिल्ली की विशेष प्रकृति है। यह केंद्र शासित प्रदेश है, लेकिन यहां एक राज्य जैसी चुनी हुई विधायिका भी है। संविधान का अनुच्छेद 239 उपराज्यपाल को शक्ति देता है कि वह अपनी मंत्रिपरिषद से स्वतंत्र रूप से कार्य कर सकते हैं।
1992 में दी गई थी ये व्यवस्था
वर्ष 1992 में 69वें संविधान संशोधन के जरिये विधेयक 239 को संशोधित करके विधेयक 239एए बनाया गया। इसमें दिल्ली में विधानसभा की व्यवस्था दी गई। और यह प्रविधान किया गया कि विधानसभा के पास पुलिस, पब्लिक आर्डर और जमीन के मसलों को छोड़कर अन्य सभी राज्य विषयों पर कानून बनाने का अधिकार होगा। यदि उपराज्यपाल और चुनी हुई सरकार के बीच कोई मतभेद होगा तो मामला राष्ट्रपति के पास जाएगा और राष्ट्रपति उस पर फैसला लेंगे। 69वें संशोधन के जरिये जोड़े गए प्रविधानों ने दिल्ली और केंद्र सरकार के बीच क्षेत्रधिकार को लेकर भ्रम की स्थिति पैदा कर दी। केजरीवाल और जंग के बीच विवाद होने पर मामला हाई कोर्ट पहुंचा।
केंद्र सरकार जो संशोधन कर रही है
- 15 मार्च, 2021 को केंद्र ने दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र शासन (संशोधन) विधेयक, 2021 लोकसभा में पेश किया है
- विधेयक में उपराज्यपाल की भूमिका और कुछ अधिकारों को परिभाषित किया गया है
- केंद्र सरकार के अनुसार, इस विधेयक का उद्देश्य सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आलोक में उपराज्यपाल की शक्तियों को स्पष्ट करना है
- विधानसभा द्वारा बनाए गए किसी भी कानून में सरकार का मतलब उपराज्यपाल होगा
- सभी विधायी व प्रशासनिक निर्णयों में उपराज्यपाल से मंजूरी लेना दिल्ली सरकार के लिए अनिवार्य होगा
- दिल्ली सरकार को विधायी प्रस्ताव 15 दिन पहले और प्रशासनिक प्रस्ताव सात दिन पहले उपराज्यपाल को भिजवाना होगा
- उपराज्यपाल यदि सहमत नहीं हुए तो वह अंतिम निर्णय के लिए उस प्रस्ताव को राष्ट्रपति को भी भेज सकेंगे
- यदि कोई ऐसा मामला होगा, जिसमें त्वरित निर्णय लेना होगा तो उपराज्यपाल अपने विवेक से निर्णय लेने को स्वतंत्र होंगे
- विधानसभा या उसकी कोई समिति प्रशासनिक फैसलों पर जांच नहीं बैठा सकेगी और इसके खिलाफ बनाया गया कोई भी नियम अवैध होगा
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने एकमत से कहा- (4 जुलाई, 2018)
- दिल्ली सरकार का कार्यकारी प्रमुख मुख्यमंत्री होगा, न कि उपराज्यपाल
- उपराज्यपाल उन सभी मामलों में मंत्रिपरिषद की सहायता एवं सलाह मानने को बाध्य होंगे, जिनमें दिल्ली विधानसभा को कानून बनाने का अधिकार है
- चुनी हुई सरकार को फैसले लेने के लिए उपराज्यपाल की सहमति की आवश्यकता नहीं है
- बहुत खास मामले में फाइल उपराज्यपाल के पास भेजनी होगी
हाई कोर्ट ने कहा - (4 अगस्त, 2016)
- अनुच्छेद 239एए के बावजूद दिल्ली एक केंद्र शासित प्रदेश है
- दिल्ली के लिए 239एए के तहत किए गए प्रविधान अनुच्छेद 239 का प्रभाव खत्म नहीं करते हैं
- उपराज्यपाल के पास अपनी मंत्रिपरिषद से स्वतंत्र रूप से कार्य करने का अधिकार है
- इसके तहत उपराज्यपाल की जानकारी के बिना दिल्ली सरकार द्वारा शुरू की गई सभी जांच को अवैध करार दिया गया
- इससे वाहनों को सीएनजी परमिट जारी करने संबंधी जांच और दिल्ली जिला क्रिकेट एसोसिएशन के खिलाफ वित्तीय जांच समेत अन्य जांच अवैध हो गईं
- दिल्ली सरकार ने हाई कोर्ट के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी
- फरवरी, 2017 में दो जजों की पीठ ने इस मामले को पांच सदस्यीय संविधान पीठ को सौंप दिया