साइबर ठगों के गिरोह में शामिल था एक मामूली डाकिया, जानिए कैसे करता था उनको बड़ी मदद
रानी बाग थाना पुलिस ने उसके दो साथियों को भी दबोचा है। जांच में पता चला है कि आरोपित डाकिया फर्जी पते पर खुले बैंक खातों के डेबिट कार्ड साइबर ठगों को मुहैया कराता था। आरोपित पीडि़तों से इसी फर्जी बैंक खातों में पैसा जमा करवाते थे।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा ने साइबर ठगों की मदद करने के आरोप में राजस्थान के अलवर क्षेत्र से एक डाकिये को गिरफ्तार किया है। वहीं, रानी बाग थाना पुलिस ने उसके दो साथियों को भी दबोचा है। जांच में पता चला है कि आरोपित डाकिया फर्जी पते पर खुले बैंक खातों के डेबिट कार्ड साइबर ठगों को मुहैया कराता था। आरोपित पीडि़तों से इसी फर्जी बैंक खातों में पैसा जमा करवाते थे।
रानी बाग निवासी नंदिनी ने रानी बाग थाने में आक्सीजन सिलेंडर देने के नाम पर 48 हजार रुपये की ठगी का मामला दर्ज कराया था। मामले की जांच के लिए डीसीपी मोनिका भारद्वाज की देखरेख में एसीपी राजेश कुमार और इंस्पेक्टर लोकेंद्र चौहान की टीम ने छानबीन शुरू की। जांच के लिए पुलिस टीम राजस्थान के अलवर और भरतपुर पहुंची। यहां पहुंचने पर पुलिस को पता चला कि भरतपुर के गनोरी गांव से यह जालसाज सक्रिय हैं। इस दौरान पुलिस ठगों के बैंक खाते पर दिए गए पते पर भी गई, लेकिन यह पता फर्जी निकला। इसके बाद पुलिस ने मुखबिर को सक्रिय करने के साथ ही क्षेत्र के डाकिये शिव लाल शर्मा पर नजर रखना शुरू की।
जांच में पता चला कि डाकिया भी इस गिरोह का हिस्सा है। इसके बाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया। शिव लाल से पूछताछ में बताया कि वह फर्जी पते पर खोले गए बैंक खाते के डेबिट कार्ड रफीक को देता था। रफीक उसके पास मुश्ताक को डेबिट कार्ड लेने के लिए भेजता था। प्रत्येक कार्ड के बदले वह दो सौ रुपये लेता था। शिव लाल ने यह भी बताया कि उसके पास 30 डेबिट कार्ड और हैं, जो उसे मुश्ताक को देने हैं, जबकि डाक विभाग इनकी डिलीवरी दिखा चुका था। उसकी निशानदेही पर पुलिस टीम ने यह डेबिट कार्ड उसके घर से जब्त कर लिए। इस मामले में रानी बाग पुलिस ने भी लोगों को कॉल करने वाले आरोपित मनोज और एटीएम से रुपये निकालने वाले डाल चंद को गिरफ्तार कर लिया। पुलिस इस मामले में शामिल अन्य आरोपितों के बारे में भी पता लगा रही है।
गरीबों के आधार नंबर से खोलते थे बैंक खाता :
पूछताछ में पता चला कि ठग बैंक खाता आनलाइन खोलते थे। खाता खोलने के लिए वह गरीब लोगों के आधार नंबर, पैन नंबर व मोबाइल नंबर का इस्तेमाल करते थे, जबकि पता फर्जी भरते थे। खाता खुलने के बाद जब डेबिट कार्ड आता था, तो डाकिया उसे इन जालसाजों तक पहुंचा देता था। बैंक खाते का कुछ समय तक इस्तेमाल करने के बाद आरोपित 40 से 50 हजार रुपये में उसे दूसरे गिरोह को बेच देते थे।