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दिल्ली हाई कोर्ट की अहम टिप्पणी, वैवाहिक साथी के 'नहीं' का सम्मान किया जाना चाहिए

पीठ ने दुष्कर्म कानून के तहत अपवाद को लेकर उठाई गई चुनौती पर विचार करते हुए पूछा कि एक पति को अपनी पत्नी के साथ गैर-सहमति वाले यौन कृत्य के लिए अभियोजन से बचाने वाला कानून क्या लिंग-तटस्थ होने पर भी असंवैधानिक माना जा सकता है।

By Vineet TripathiEdited By: Prateek KumarPublished: Fri, 21 Jan 2022 07:45 AM (IST)Updated: Fri, 21 Jan 2022 08:56 AM (IST)
दिल्ली हाई कोर्ट की अहम टिप्पणी, वैवाहिक साथी के 'नहीं' का सम्मान किया जाना चाहिए
वैवाहिक दुष्कर्म के अपराधीकरण की मांग वाली याचिका पर अदालत मित्र ने दी दलील

नई दिल्ली [विनीत त्रिपाठी]। वैवाहिक दुष्कर्म के अपराधीकरण की मांग को लेकर दायर विभिन्न याचिका पर सुनवाई के दौरान अदालत मित्र व वरिष्ठ अधिवक्ता रेबेका जान ने कहा कि एक वैवाहिक साथी के 'नहीं' का सम्मान किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि हम मामूली मामलों के बारे में बात नहीं कर रहे हैं। दुष्कर्म अपने आप में एक गंभीर अपराध है। जान ने पूछा कि क्या वैवाहिक अधिकारों की अपेक्षाएं हो सकती हैं और क्या यह अपेक्षा पत्नी की सहमति के बिना संभोग करने के अधिकार में तब्दील हो जाती है?

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न्यायमूर्ति राजीव शकधर व न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की पीठ ने दुष्कर्म कानून के तहत अपवाद को लेकर उठाई गई चुनौती पर विचार करते हुए पूछा कि एक पति को अपनी पत्नी के साथ गैर-सहमति वाले यौन कृत्य के लिए अभियोजन से बचाने वाला कानून क्या लिंग-तटस्थ होने पर भी असंवैधानिक माना जा सकता है। पीठ के सवाल पर अदालत मित्र व वरिष्ठ अधिवक्ता रेबेका जान ने कहा कि वह शुक्रवार को इसका जवाब देने का प्रयास करेंगी। उन्होंने कहा कि मुझे इसकी बारीकियां देखने दें और मैं किसी न किसी तरह से दोनों सवालों के जवाब देने की कोशिश करूंगी। मैं कल इन सवालों के जवाब देने के लिए वापस आऊंगी। मामले में सुनवाई जारी रहेगी।

उन्होंने इसके बाद अपनी दलील पेश करते हुए कहा कि शादी में हर पुरुष या यौन कृत्य को यहां दंडित करने की मांग नहीं की जाती है। जिस चीज को दंडित करने और मुख्य परिभाषा के पूर्वावलोकन के की मांग की जा रही है वह केवल पत्नी के साथ यौन संबंध रखने का कार्य है।

उन्होंने कहा कि एक अदालत मित्र के रूप में मेरा उत्तर यह है कि संबंध या सार्थक वैवाहिक संबंधों की अपेक्षा परस्पर हो सकती है। एकतरफा अपेक्षा भी हो सकती है। उसे भी दंडित नहीं किया जा सकता क्योंकि यह केवल एक अपेक्षा है। यदि वह अपेक्षा पूरी नहीं होती है, तो पति या पत्नी को नागरिक उपचार का सहारा लेने का पूरा अधिकार है।


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