नोएडा प्राधिकरण के एक पूर्व अधिकारी ने बिल्डर और अधिकारियों की खोली पोल, बोले दोनों ही देखते हैं सिर्फ निजी स्वार्थ
नोएडा सहित एनसीआर के अन्य शहरों में चल रहे बिल्डर और अधिकारियों के गठजोड़ से एक बात तो साफ है कि दोनों ही ईमानदार नहीं हैं और दोनों ने सिर्फ अपने निजी स्वार्थ को ही देखा है। ऐसा नहीं है कि देश में ईमानदार अधिकारियों की कमी है।
दिल्ली/ नोएडा [लोकेश चौहान]। आइएएस अधिकारियों के चयन की एक प्रक्रिया है। उन्हें नौकरी इसलिए दी जाती है कि वह जनहित और देशहित में कार्य करेंगे। संविधान में प्रविधान किया गया है कि आइएएस अधिकारियों की नौकरी नहीं ली जाएगी, क्योंकि उनसे उम्मीद की जाती है कि वह ईमानदार हैं। उनकी जिम्मेदारी बनती है कि वह जो भी कार्य करें, वह किसी भी व्यक्ति विशेष को लाभ पहुंचाने के बजाय समाज और जनहित में हो। सरकार उन्हें इसलिए तैनात करती है क्योंकि उनसे ईमानदारी, निष्पक्षता और पारदर्शिता की उम्मीद होती है।
नोएडा सहित एनसीआर के अन्य शहरों में चल रहे बिल्डर और अधिकारियों के गठजोड़ से एक बात तो साफ है कि दोनों ही ईमानदार नहीं हैं और दोनों ने सिर्फ अपने निजी स्वार्थ को ही देखा है। ऐसा नहीं है कि देश में ईमानदार अधिकारियों की कमी है, लेकिन उनकी संख्या कम है और वे भ्रष्ट सिस्टम का हिस्सा न होने के चलते बार-बार स्थानांतरण की कार्रवाई झेलते हैं। ऐसा नहीं कह सकते कि इसके लिए सकार जिम्मेदार है। सरकार के कुछ नुमाइंदे होते हैं जो लालच का बीज बोते हैं और भ्रष्टाचार का पेड़ फलने-फूलने लगता है। ये किसी एक व्यक्ति के जरिये हल होने वाली समस्या नहीं है। यह सभी की जिम्मेदारी है कि सही काम किया जाए।
खास तौर पर जो फैसले बड़े हैं और अधिक लोगों को प्रभावित करते हैं, उन बड़ी चीजों का ध्यान रखना चाहिए। यह जिम्मेदारी तो अधिकारी से लेकर सरकार तक की है। कौन सरकार कैसे काम कर रही है, यह तो लोगों के सामने रहता है, लेकिन कौन अधिकारी कैसे काम कर रहा है इस पर सरकार को नजर रखनी चाहिए तो कौन बिल्डर कैसे काम कर रहा है इस पर अधिकारियों को नजर रखनी चाहिए। लेकिन हालात कुछ और ही बन रहे हैं। एक दूसरे के काम पर नजर रखकर उसे गलत करने से रोकने के बजाय गठजोड़ कर लिया जाता है ताकि गलत करने वालों पर कार्रवाई किए जाने के बजाय उन्हें बचाने के रास्ते खोजे जाएं।
अतिमहत्वाकांक्षी पर लगे लगाम
अधिकारियों को बेदाग छवि बनाकर कार्य करना चाहिए। ऐसा तभी संभव है जब निजी स्वार्थ न हो, अनावश्यक कमाई की इच्छा न हो, लोगों को परेशान करके अपना सुख खरीदने की मंशा न हो। यह जिम्मेदारी उन सभी लोगों की है, जिन पर लोगों को सुविधाएं देने की जिम्मेदारी है। यह जिम्मेदारी नीचे से शुरू होकर ऊपर तक जाती है। निकायों से लेकर सरकार में बैठे अधिकारियों तक जिम्मेदारी तय होनी चाहिए।
किसी भी अधिकारी के गलत कृत्य के बारे में सरकार को पता लगता है तो तत्काल कार्रवाई होनी चाहिए। एक ऐसा वातावरण बनाना चाहिए कि किसी भी परियोजना के अप्रूवल, इंफ्रास्ट्रक्चर बिल्डर संबंधी निर्माण या कोई भी कार्य में पारदर्शिता हो। बिल्डरों के अपने लालच के साथ अतिमहत्वकांक्षा को भी कम करने की जरूरत है। वह इमारत किसी काम की नहीं हो सकती, जो किसी के सपनों को कुचलकर बनाई गई हो।
हकीकत का आईना दिखाने की है जरूरत
बिल्डर इस बात को मान चुके हैं कि वे पैसे के बल पर कोई भी कार्य करा सकते हैं। वहीं अधिकारी इतने भ्रष्ट हो चुके हैं कि वे सरकार के चंद नुमाइंदों को खुश करके जैसा चाहे वैसा कार्य करा सकते हैं। बिल्डर परियोजनाओं के पूरे न होने का सबसे बड़ा कारण यह रहा है कि निरंकुश अधिकारियों ने बिल्डरों को संरक्षण दिया और बिल्डरों ने पैसे के बल पर अधिकारियों के दायित्वों को दबा दिया।
बिल्डरों को पता था कि वे अपनी परियोजना में जो चाहे बदलाव कर लें, उसे देर-सवेर मंजूरी मिल ही जाएगी। अधिकारी फाइल को लटकाकर इस इंतजार में बैठे रहते हैं कि कब उनकी जेब गर्म हो। बिल्डरों के साथ अधिकारियों के इस भ्रम को तोड़ने के साथ उन्हें हकीकत का आइना दिखाने की जरूरत है। बिल्डरों के साथ भ्रष्ट अधिकारियों को इस बात का एहसास कराया जाना चाहिए कि गलत तो गलत है, उसकी कोई माफी नहीं होनी चाहिए। जानबूझकर की गई गलती अपराध है। उसके लिए माफी नहीं दंड मिलना चाहिए, जिन लोगों के साथ अन्याय हुआ है, उन्हें न्याय के साथ उनका हक भी मिलना चाहिए।
(बृजेश कुमार, सेवानिवृत्त आइएएस अधिकारी व नोएडा प्राधिकरण के पूर्व अध्यक्ष और मुख्य कार्यपालक अधिकारी)