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दिल्ली के एक जागरूक किसान ने कहा- कृषि कानूनों को पहले पढ़ें, फिर बनाएं अपनी राय

दिल्ली के किसान का कहना है कि इस कानून से सबसे पहले बिचौलिए की छुट्टी हो जाएगी साथ ही कांट्रैक्ट फार्मिंग से किसानों को दोगुना लाभ भी मिलेगा। कांट्रैक्ट फार्मिंग का कानून तो आज बना है लेकिन इसका चलन कई वर्षों से है और किसान इसका लाभ लेते आए हैं।

By JP YadavEdited By: Published: Sat, 05 Dec 2020 01:39 PM (IST)Updated: Sat, 05 Dec 2020 01:39 PM (IST)
दिल्ली के एक जागरूक किसान ने कहा- कृषि कानूनों को पहले पढ़ें, फिर बनाएं अपनी राय
किसानों के बीच संवाद की कमी हुई है, जिस कारण आज यह परिस्थिति उत्पन्न हो गई।

नई दिल्ली [भगवान झा]। कृषि कानूनों के विरोध में एक तरफ राजधानी दिल्ली के बॉर्डर पर पंजाब से आए किसान आंदोलन कर रहे हैं, वहीं दिल्ली के ग्रामीण इलाकों में इन कानूनों का समर्थन करने वालों की भी कमी नहीं है। उनका मानना है कि कहीं न कहीं सरकार व आंदोलन कर रहे किसानों के बीच संवाद की कमी हुई है, जिस कारण आज यह परिस्थिति उत्पन्न हो गई।

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दिल्ली के छावला गांव के किसान जय भगवान शौखंदा ने बताया कि केंद्र सरकार की ओर से बनाए गए कानूनों में किसानों के फायदे ही फायदे हैं। सबसे पहले बिचौलिए की छुट्टी हो जाएगी, साथ ही कांट्रैक्ट फार्मिंग से किसानों को दोगुना लाभ भी मिलेगा। उन्होंने कहा कि कांट्रैक्ट फार्मिंग का कानून तो आज बना है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में इसका चलन कई वर्षों से है और किसान इसका लाभ लेते आए हैं।

एक उदाहरण के तौर पर शौखंदा ने बताया कि करीब तीन वर्ष पूर्व झटीकरा गांव में सही कीमत नहीं मिलने के चलते चने की खेती बंद हो गई थी। तभी एक कंपनी आई और किसानों से चने की खेती करने का आग्रह किया। साथ ही इस बात का आश्वासन दिया कि जो भी फसल होगी उसकी खरीद की जाएगी। इसके बाद इस गांव का एक किसान आठ एकड़ में चने की खेती करने लगा और उसे भरपूर लाभ मिल रहा है। इसकी देखादेखी अन्य किसान भी अब इस दिशा में सक्रिय हुए हैं।

उन्होंने कहा कि मैं अभी तक गेहूं व धान की फसल ही उगाता रहा हूं, लेकिन नए कृषि कानून से हम अब आगे की तरफ देख रहे हैं। किसान इस प्रयास में जुटे हैं कि कोई कंपनी मिले जिसके हिसाब से खेती करें। यह सब अब संभव हो जाएगा।

उन्होंने कहा कि कांट्रैक्ट फार्मिंग से किसानों को नई फसल उगाने के लिए प्रोत्साहन मिलने के साथ ही उन्हें इसका अनुभव भी मिलेगा। बॉर्डर पर हो रहे आंदोलन पर शौखंदा ने कहा कि किसान कृषि कानूनों को पढ़ें और इसके बाद निष्कर्ष निकालें। समय के साथ हर क्षेत्र में सुधार समय की मांग है और केंद्र सरकार ने इसी को देखते हुए कृषि कानून बनाए हैं।

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