Batla House Encounter Case: बाटला हाउस मामले के दोषी आरिज खान को फांसी की सजा, 11 लाख का जुर्माना भी
2008 Batla House Encounter Case दोषी करार दिए गए मुजफ्फरनगर निवासी आतंकी आरिज खान मुठभेड़ के बाद तत्काल फरार हो गया था जिसे फरवरी 2018 में गिरफ्तार किया गया था। बीटेक पास आरिज को विस्फोटक विशेषज्ञ माना जाता है। उसे इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा की हत्या का दोषी पाया।
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। बाटला हाउस एनकाउंटर मामले में साकेत कोर्ट ने सोमवार को इंडियन मुजाहिदीन (आइएम) के आतंकी आरिज खान उर्फ जुनैद उर्फ अन्ना उर्फ सलीम को फांसी की सजा सुना दी। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश संदीप यादव ने इसे रेयरेस्ट आफ द रेयर केस माना और आरिज पर 11 लाख रुपये का अर्थदंड भी लगाया है। इसमें से 10 लाख रुपये दिल्ली पुलिस के शहीद इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा के परिवार को व एक लाख रुपये राज्य सरकार को दिए जाएंगे। यह मुआवजा जांच अधिकारी द्वारा आरिज की वित्तीय स्थिति पर पेश रिपोर्ट के आधार पर लगाया गया है।
कोर्ट ने कहा कि चूंकि यह मुआवजा पर्याप्त नहीं है, इसलिए डिस्टि्रक्ट लीगल सर्विस अथारिटी (डीएलएसए) को पीडि़त परिवार के लिए अतिरिक्त मुआवजे का प्रबंध करने की सिफारिश की जा रही है। कोर्ट ने अलग-अलग धाराओं में सजा दी है। सभी सजा एक के बाद एक चलेंगी। सजा पर बहस करते हुए दिल्ली पुलिस के अतिरिक्त लोक अभियोजक एटी अंसारी ने कहा कि यह कोई सामान्य मामला नहीं है। यह अपनी ड्यूटी कर रहे पुलिसकर्मी की हत्या का मामला है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का जिक्र करते हुए कहा कि दरअसल, यह किसी व्यक्ति पर नहीं बल्कि पूरे महकमे पर हमला है। इसलिए दोषी को फांसी दी जानी चाहिए। वहीं, बचाव पक्ष के वकील ने फैसले के खिलाफ ऊपरी अदालत में अपील करने की बात कही है।
मुजफ्फरनगर निवासी आरिज खान मुठभेड़ के बाद फरार हो गया था, जिसे फरवरी, 2018 में गिरफ्तार किया गया था। बीटेक पास आरिज को विस्फोटक विशेषज्ञ माना जाता है।
इन धाराओं में ठहराया गया दोषी
- 302 (हत्या) : फांसी की सजा, 10 लाख रुपये जुर्माना
- 307 (हत्या का प्रयास) : उम्रकैद, 20 हजार रुपये जुर्माना
- धारा 186 (सरकारी कर्मचारी के काम में बाधा पहुंचाना) : तीन माह
- 353 (सरकारी कर्मचारी पर हमला करना) : दो साल
- 333 (सरकारी कर्मचारी को गंभीर रूप से चोटिल करना) : 10 साल की कैद, 20 हजार रुपये जुर्माना
- 174 ए (भगोड़ा घोषित होने के बावजूद पेश न होना) : सात साल की कैद, 10 हजार रुपये जुर्माना
- शस्त्र अधिनियम की धारा 27 : तीन साल की सजा, 50 हजार रुपये का जुर्माना
यह है मामला
दिल्ली समेत देश के कई राज्यों में हुए बम धमाकों की जांच कर रही दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल खुफिया सूचना पर 19 सितंबर, 2008 राजधानी के जामिया नगर स्थित बाटला हाउस के मकान नंबर-108, एल-18 में पहुंची थी। वहां एनकाउंटर में इंडियन मुजाहिदीन के दो आतंकी आतिफ अमीन और मुहम्मद साजिद मारे गए थे। इस कार्रवाई में स्पेशल सेल के इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा शहीद हो गए थे। आरिज खान उर्फ जुनैद व शहजाद अहमद उर्फ पप्पू फरार हो गए थे, जबकि जीशान को वहीं गिरफ्तार कर लिया गया था। शहजाद को बाद में गिरफ्तार किया गया और मोहन चंद शर्मा की हत्या समेत अन्य अपराध में उसे जुलाई, 2013 में आजीवन कारावास की सजा हो चुकी है। आरिज खान को स्पेशल सेल ने 2018 में भारत-नेपाल की सीमा से गिरफ्तार किया था।
दोनों पक्षों ने ऐसे रखा अपना पक्ष
बचाव पक्ष की दलील
बचाव पक्ष के वकील एमएस खान ने यह कहते हुए फांसी की सजा का विरोध किया कि यह घटना पूर्व नियोजित नहीं थी। जो हुआ वह सब अचानक हो गया। आरिज को कम से कम सजा दी जाए क्योंकि उसकी आयु काफी कम है। इसी मामले में एक दोषी को पहले ही उम्रकैद की सजा मिली है, इसलिए आरिज को फांसी की सजा देना न्यायोचित नहीं होगा।
अभियोजन पक्ष की दलील
पुलिस की ओर से अतिरिक्त लोक अभियोजक एटी अंसारी ने दलील दी कि एनकाउंटर में मारे गए दो आतंकियों के हाथ से गन पाउडर रेसिड्यू मिला था। इससे साबित हो चुका है कि इन्होंने पहले पुलिस पर फायरिंग की थी। अगर पुलिस ने पहले फायरिंग की होती तो शायद आरिज व उसके साथी जिंदा ही नहीं बचते। इन लोगों ने कोई पहली बार फायरिंग नहीं की थी। ये हमेशा हथियार रखते थे और ट्रिगर फ्रेंडली थे। इन लोगों के पास हथियार थे और वे उसे चलाने के लिए तैयार थे। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि यह घटना पूर्व नियोजित नहीं थी। एक अन्य दोषी शहजाद को कामन इंटेशन में उम्रकैद की सजा को मिली है, जबकि साबित हो चुका है कि आरिज ने खुद इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा पर गोली चलाई, इसलिए उसे फांसी की सजा दी जानी चाहिए। अगर आरिज को फांसी की सजा नहीं मिली तो उन लोगों के साथ अन्याय होगा जो लोग अपनी जान की परवाह किए बिना देश व समाज के लिए अपना कर्तव्य निभाते हैं।
मुठभेड़ के बाद विभिन्न प्रदेशों में छिपता रहा था आरिज
आरिज, मुठभेड़ के बाद पहले तो एक महीने तक विभिन्न प्रदेशों में छिपता रहा। इसके बाद वह नेपाल भाग गया और अब्दुल सुभान कुरैशी उर्फ तौकीर (इंडियन मुजाहिदीन का सह संस्थापक) के साथ पहचान छिपाकर रहने लगा था।
कुछ साल बाद दोनों सऊदी अरब चले गए। इसके बाद आइएम के पाकिस्तान में बैठे आकाओं इकबाल भटकल व रियाज भटकल ने दोनों को वापस भारत जाकर आइएम व सिमी को नए सिरे से संगठित करने के निर्देश दिए थे। इसके बाद दोनों 2018 के मार्च से भारत आने-जाने लगे थे। इसी क्रम में सेल ने पहले कुरैशी और फिर आरिज को दबोच लिया था। आरिज आइएम के आजमगढ़ माड्यूल का सक्रिय आतंकी है।
आरिज ने नेपाल की ही युवती से शादी भी कर ली थी। आरिज व कुरैशी को किसी रिश्तेदार ने शरण नहीं दी। एक महीने तक पुलिस से बचने के लिए दोनों ने देशभर में ट्रेनों व बसों में ही सफर कर समय बिताया। इसके बाद दोनों नेपाल भाग गए। वहां एक ही जगह रहकर दोनों ने फर्जी दस्तावेजों के जरिये नेपाल की नागरिकता प्राप्त कर ली।
वहां एक युवक निजाम खान के सहयोग से उन्हें नेपाल में किराये पर घर मिल गया। इसके कुछ माह बाद उन्होंने मतदाता पहचान पत्र व पासपोर्ट भी बनवा लिए। आरिज ने नेपाल की ही युवती से शादी भी कर ली थी। उसने पत्नी को बताया था कि एक विवाद में फंसने के कारण वह उसे पैतृक घर नहीं ले जा सकता है।