AAP विधायक भी सहमे, RS उम्मीदवारों के साथ नहीं पहुंचे चुनाव आयोग के दफ्तर
दरअसल, जब चयनित प्रत्याशी चुनाव आयोग के दफ्तार पहुंचे तो उम्मीद की जा रही थी उनके साथ आप के 15 विधायक भी होंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
नई दिल्ली [ आशुतोष झा ] । इन दिनों दिल्ली के सियासी गलियारों में आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सीट के लिए चयनित तीनों प्रत्याशियों की चर्चा आम है। पार्टी के अंदर और बाहर इसको लेकर घमासान मचा है। विपक्ष की नजरें भी इस पर टिकी है। ऐसे में एक और मामला सामने आ गया, जिसने आप के अंदर मची खलबली की तस्वीर और साफ कर दिया है।
दरअसल, जब चयनित प्रत्याशी चुनाव आयोग के दफ्तार पहुंचे तो उम्मीद की जा रही थी उनके साथ आप के 15 विधायक भी होंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। विधायक उनके साथ नहीं पहुंचे। इससे कयासबाजी का दौर तेज हो गया।
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इसके पीछे विधायकों का डर एक बड़ी वजह हो सकता है। जिस तरह से दिल्ली की राज्यसभा की तीन सीटों के लिए उम्मीदवारों के नाम का ऐलान हुआ, ऐसे में पार्टी के विधायकों को अभी से पत्ता कटने का डर सता रहा है। दिल्ली विधानसभा चुनाव में अभी दो वर्ष शेष है, लेकिन यह भय उनको अभी से सता रहा है कि कहीं विधानसभा चुनाव में उनका पत्ता न कट जाए।
अब इन विधायकों को आप नेता कुमार विश्वास की उक्त टिप्पणी याद आ रही है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र की उम्मीद सिर्फ सरकार में नहीं करनी चाहिए, राजनीतिक दल के अंदर भी इसकी गुंजाइश बनी रहनी चाहिए। लोकतंत्र में चुनाव सिर्फ सरकार बनाने की प्रक्रिया नहीं है। इससे राजनीतिक दलों की नीतियों, संगठन और नेतृत्व की परीक्षा भी होती है।
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चुनाव राजनीतिक दलों के चाल, चरित्र और चेहरे को भी साफ करते हैं। राज्यसभा की तीन सीटों के लिए प्रत्याशियों के चुनाव की प्रक्रिया ने आम आदमी पार्टी के इसी चेहरे को साफ करने का काम किया है। आप नेता कुमार विश्वास कहते हैं कि लोकतंत्र की उम्मीद सिर्फ सरकार में नहीं करनी चाहिए, राजनीतिक दलों में भी इसकी गुंजाइश बनी रहनी चाहिए।
राज्यसभा की तीनों सीटों के लिए पार्टी ने जिन्हें टिकट दिया, शीर्ष नेताओं को छोड़ दें तो अधिकांश को उनकी भनक तक नहीं लगी। लोकतंत्र के असली मायने और स्वराज की बात समझाने वाली पार्टी से इन दिनों यह सवाल सबसे ज्यादा पूछा जा रहा है कि आप में हो क्या रहा है ?
विधानसभा चुनाव होने में भले ही दो वर्ष का समय है, लेकिन इसकी तैयारी कम से कम छह महीने पहले होने लगेगी। आप के मौजूदा विधायकों का यह पहला पूरा कार्यकाल होगा। कुछ विधानसभा क्षेत्रों को छोड़ दें तो अधिकांश क्षेत्र के लोग विधायक के कामकाज से अधिक संतुष्ट नहीं हैं।
ऐसे में यह जरूरी नहीं कि वे मौजूदा विधायक, जिसे अगली बार टिकट मिलता है तो उसे ही वोट देंगे। नहीं तो पार्टी ने जिस तरह राज्यसभा के लिए पैराशूट उम्मीदवारों को टिकट दिया, अगले चुनाव में उसने विकल्प बनाने के संकेत दे दिए हैं।
यह बात आम आदमी पार्टी के समर्थक, वोटर तो पूछ ही रहे हैं, दूसरे दल के नेता और समर्थकों की भी इसमें दिलचस्पी बनी हुई है कि पार्टी मौजूदा विधायकों पर दोबारा दांव खेलेगी या नहीं। कुमार विश्वास राज्यसभा का टिकट चाहते थे, लेकिन उन्हें न देने का फैसला पार्टी में पहले ही हो चुका था।
आशुतोष खुद सार्वजनिक रूप से इन्कार कर चुके थे। संजय सिंह, सुशील गुप्ता और एनडी गुप्ता को पार्टी का राज्यसभा टिकट मिला, तो सुशील के नाम पर पीएसी की बैठक में खुद आशुतोष ने आपत्ति जताई। आशुतोष का कहना था कि दौलतमंद सुशील गुप्ता के नाम पर विरोधी हमलावर हो जाएंगे।
इससे पार्टी की छवि को जबरदस्त नुकसान होगा। ज्यादातर लोग कहेंगे कि आप ने दौलतमंद शख्स को तवज्जो दी, लेकिन यह मानने वाले नेताओं की संख्या ज्यादा निकली कि माल्या जैसों को संसद भेजने वाले हम पर किस मुंह से हमला करेंगे। पार्टी ने वही किया, जिसकी उम्मीद नहीं थी। इससे अंदरखाने पार्टी विधायक अभी से सशंकित हैं।