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शौर्यगाथा : 'लौटते समय हमारे पास थे दुश्मनों के छह शव'

फोटो नंबर 25 यूटीएम 3 गौतम कुमार मिश्रा पश्चिमी दिल्ली कारगिल युद्ध के दौरान 11 मई को चार जाट रेजीमेंट के कैप्टन सौरव कालिया के नेतृत्व में एक सैन्य टूकड़ी कारगिल चौकी संख्या 5299 की ओर बजरंग पोस्ट की ओर निकली। इस दल का अचानक की रेजीमेंट से संपर्क टूट गया। संपर्क की कई नाकाम कोशिश के बाद यह तय हुआ कि एक खोजी दल इस टूकड़ी के बारे में पता लगाने जाएगा। 12 मई को संपर्क टूटने के बाद रेजीमेंट के 2

By JagranEdited By: Published: Sat, 25 Jul 2020 06:40 PM (IST)Updated: Sat, 25 Jul 2020 06:40 PM (IST)
शौर्यगाथा : 'लौटते समय हमारे पास थे दुश्मनों के छह शव'
शौर्यगाथा : 'लौटते समय हमारे पास थे दुश्मनों के छह शव'

गौतम कुमार मिश्रा, पश्चिमी दिल्ली : कारगिल युद्ध के दौरान 11 मई को चार जाट रेजीमेंट के कैप्टन सौरभ कालिया के नेतृत्व में एक सैन्य टुकड़ी कारगिल चौकी संख्या 5299 बजरंग पोस्ट की ओर निकली। इस दल का अचानक ही रेजीमेंट से संपर्क टूट गया। संपर्क की कई नाकाम कोशिश के बाद यह तय हुआ कि एक खोजी दल इस टुकड़ी के बारे में पता लगाने जाएगा। 12 मई को संपर्क टूटने के बाद रेजीमेंट के 28 जवानों की घातक प्लाटून (कमांडो प्लाटून) सौरभ कालिया व अन्य साथियों की खोज में निकला। घातक प्लाटून को तीन हिस्सों में विभाजित किया गया। एक हिस्से में सिपाही राजेश हुड्डा भी शामिल थे। राजेश ने कहा कि वह उस रात को कभी नहीं भूल सकते। द्वारका स्थित कारगिल अपार्टमेंट में रहने वाले राजेश हुड्डा कारगिल युद्ध से जुड़ी यादों को बयां करते हुए आज भी जोश से भर जाते हैं।

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राजेश बताते हैं कि 12 मई की रात को हम नौ बजे पहाड़ियों की ओर निकले। 13 मई को हम बजरंग पोस्ट पहुंचे। वहां जमीन पर खून के धब्बे पड़े थे। इन धब्बों को देखने के बाद पूरी प्लाटून का खून खौल उठा। खोजी अभियान के लिए निकले दल ने अचानक रणनीति में परिवर्तन कर इस अभियान को आक्रामक रुप देने का फैसला किया। रणनीति के तहत हमलोगों ने तीन अलग- अलग दल बनाए। एक का कार्य था आक्रमण करना दूसरे का काम कवर करना व तीसरे दल को रिजर्व के तौर रखा गया। मैं आक्रामक दल में था। हम जैसे ही पहाड़ियों की तरफ बढ़े ,तोप के गोले बरसने शुरू हो गए। कैप्टन अमित भारद्वाज वहीं शहीद हो गए। हमारे साथी पिकू व जगत सिंह को गोलियां लगीं। दल के सदस्य घटते जा रहे थे। लेकिन, संख्या जिस रफ्तार से घट रही थी हमारी आक्रामकता व जोश में बढ़ोतरी भी उसी अनुपात हो रही थी। ऊपर चढ़ने के दौरान अचानक दुश्मनों से दल का मुठभेड़ हुआ। हमने दुश्मन के दांत खट्टे कर दिए। आमने-सामने की लड़ाई में दुश्मन ने मेरी बांह पर प्रहार किया, लेकिन मैंने हार नहीं मानी। इसी बीच घुटने में गोली लगी। हम लड़ते रहे। दुश्मन भाग खड़े हुए। इसके बाद कैप्टन सौरभ कालिया को हम लोगों ने काफी ढूंढा, लेकिन उनका पता नहीं चला। अंत में हम जब पहाड़ियों से पोस्ट पर पहुंचे हमारे साथ दुश्मनों के छह शव थे।

विरासत में मिली वीरता :

कारगिल युद्ध में शौर्य का प्रदर्शन करने वाले राजेश घायल होने पर सेना से मेडिकल बोर्ड की सिफारिश पर सेवानिवृत्त हुए। राजेश के पिता रामनारायण भी सेना में बतौर सूबेदार तैनात थे। श्रीलंका में गए शांति सेना में वे शामिल थे। वहां दुश्मनों से लड़ते हुए वे वर्ष 1989 में वीरगति को प्राप्त हुए। अब राजेश की बेटी साक्षी व बेटा अखिल इस विरासत को आगे बढ़ाने की दिशा में कार्य कर रहे हैं। इनकी बेटी साक्षी सेना मेडिकल सेवा में चिकित्सक के पद पर भर्ती होना चाहती है। राजेश के बेटे अखिल अभी आइआइटी में पढ़ रहे हैं। वे भी पढ़ाई पूरी करने के बाद सेना से जुड़ना चाहते हैं।


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