शौर्यगाथा सीरीज-- पिता की शहादत के बाद पुत्र भी कर रहा देश की रक्षा
फोटो नंबर 20 यूटीएम 13 से 16 मनीषा गर्ग पश्चिमी दिल्ली पिता की गौरव गाथा ने बेटे के मन में देश की सेवा व रक्षा के मार्ग को प्रशस्त किया जिसकी बदौलत शहादत की माटी में आज शौर्य की फसल तैयार हुई है। कारगिल युद्ध में शहीद लांस नायक बच्चन सिंह के बेटे लेफ्टिनेंट हितेश कुमार अपने पिता के पदचिन्हों पर चलते हुए 19 साल बाद उन्हीं की बटालियन द्वितीय राजपुताना राइफल में तैनात हैं और देश की रक्षा के लिए कुछ भी कर गुजरने के लिए तत्पर। वहीं दूसरा बेटा हेमंत कुमार पिता की राह पर चलने की तैयारी में जुटे हैं। 13 जून 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान लांस नायक बच्चन सिंह ने तोलोलिग पहाड़ियों पर दुश्मनों से लोहा लेते हुए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था। पिता के अदम्य साहस से जुड़ी कहानियों को सुनकर बड़े हुए हितेश का भी सपना था कि वे अपने पिता की भांति देश की सेवा के लिए अपना सर्वोच्च न्यौछावर कर दें। कहीं न कहीं उनके पिता का भी यही सपना था। द्वारका सेक्टर-1
मनीषा गर्ग, पश्चिमी दिल्ली : पिता की गौरव गाथा ने बेटे के मन में देश की सेवा व रक्षा के मार्ग को प्रशस्त किया, जिसकी बदौलत शहादत की माटी में आज शौर्य की फसल तैयार हुई है। कारगिल युद्ध में शहीद लांस नायक बच्चन सिंह के पुत्र लेफ्टिनेंट हितेश कुमार अपने पिता के पदचिन्हों पर चलते हुए 19 साल बाद उन्हीं की बटालियन द्वितीय राजपूताना राइफल में तैनात हैं और देश की रक्षा के लिए कुछ भी कर गुजरने के लिए तत्पर। वहीं, दूसरा बेटा हेमंत कुमार पिता की राह पर चलने की तैयारी में जुटे हैं।
13 जून 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान लांस नायक बच्चन सिंह ने दुश्मनों से लोहा लेते हुए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था। पिता के अदम्य साहस से जुड़ी कहानियों को सुनकर बड़े हुए हितेश का भी सपना था कि वे अपने पिता की भांति देश की सेवा के लिए अपना सर्वोच्च न्यौछावर कर दें। कहीं न कहीं उनके पिता का भी यही सपना था। द्वारका सेक्टर-18 स्थित कारगिल अपार्टमेंट निवासी व मूल रूप से बिहार के मुजफ्फरपुर की रहने वाली कामेश बाला बताती हैं कि पति की शहादत के समय हितेश व हेमंत दोनों ही पांच वर्ष के थे। दोनों जुड़वा हैं। इनके पिता का सपना था कि दोनों बेटे अफसर बने ताकि वे खुद को गौरवान्वित महसूस कर सकें। कामेश ने बताया कि असल में इस घटनाक्रम से कुछ दिन पहले ही उनसे बात हुई थी, लेकिन उन्होंने मुझे सीमा पर लड़ाई के बारे में कुछ नहीं बताया था। टीवी पर खबरों के माध्यम से मुझे युद्ध की जानकारी मिली। 13 जून को सुबह-सुबह मुझे फोन के माध्यम से उनके सर्वोच्च बलिदान की जानकारी मिली। जीवन में एकाएक मिले इस असहनीय दुख से उबरने में मुझे और बच्चों को एक साल का समय लग गया। पर जब होश संभाला तो मेरे सामने दोनों बच्चों का भविष्य था। मैंने अपने दुख को दरकिनार करते हुए दोनों बच्चों की पढ़ाई व सुनहरे भविष्य की पूरी जिम्मेदारी को संभाला। इस दौरान जीवन में कई उतार चढ़ाव आए, कई परेशानियों ने मेरे बढ़ते कदमों को रोकने का प्रयास किया, लेकिन मुझे पति के सपने को पूरा करना था। हालांकि, इस कठिन समय में परिवार का काफी सहयोग मिला। जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते गए, पिता से जुड़ी कहानियां सुनने की उनमें ललक पैदा हुई। उनमें भी पिता के समान देश सेवा का जज्बा पैदा हो इसके लिए मैंने दोनों को सैनिक स्कूल में पढ़ाया ताकि वे उस तहजीब व रंग-ढंग में खुद को ढाल सकें। कामेश बाला बताती हैं कि दो साल पहले सीडीएस की परीक्षा पास कर आज बेटा पिता के सपने को पूरा कर रहा है। मेरी अब यही ख्वाहिश है कि लेफ्टिनेंट हितेश पूरी ईमानदारी व बहादुरी के साथ देश की सेवा करें।