सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं व व्यवस्था की होगी पड़ताल
दिल्ली के सरकारी अस्पतालों की मूलभूत सुविधाओं कर्मचारियों की कमी और उपहरणों की स्थिति की विशेषज्ञों की कमेटी पड़ताल करेगी। एक महिला की जनहित याचिका पर मुख्य न्यायमूर्ति राजेंद्र मेनन व न्यायमूर्ति एजे भंभानी की पीठ ने सभी सरकारी अस्पतालों की मूलभूत सुविधाओं डॉक्टरों-कर्मचारियों की कमी एवं अन्य जरूरतों का परीक्षण करने के लिए
- सभी अस्पतालों के निरीक्षण के लिए कमेटी गठित करने का कोर्ट ने दिया आदेश
- अस्पताल की लापरवाही से बच्चे की मौत के बाद महिला ने दायर की थी याचिका विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली
दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में मूलभूत सुविधाओं, कर्मचारियों की कमी और उपकरणों की स्थिति की विशेषज्ञों की कमेटी पड़ताल करेगी। एक महिला की जनहित याचिका पर मुख्य न्यायमूर्ति राजेंद्र मेनन व न्यायमूर्ति एजे भंभानी की पीठ ने सभी सरकारी अस्पतालों की मूलभूत सुविधाओं, डॉक्टरों-कर्मचारियों की कमी एवं अन्य जरूरतों का परीक्षण करने के लिए विशेषज्ञों की कमेटी गठित करने के निर्देश दिए हैं।
यह कमेटी सभी अस्पतालों का निरीक्षण कर व्यापक रिपोर्ट अदालत को सौंपेगी। इस रिपोर्ट के आधार पर मुख्य पीठ मामले में अग्रिम आदेश जारी करेगी। मुख्य रूप से लोक नायक अस्पताल, जीबी पंत अस्पताल, डीडीयू अस्पताल, गुरुतेग बहादुर अस्पताल और बीआर अम्बेडकर अस्पताल सवालों के घेरे में हैं।
याचिकाकर्ता महिला मधुबाला की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार के अधिवक्ता ने अदालत से दिल्ली सरकार के प्रधान सचिव की अध्यक्षता में कमेटी बनाने की अपील की। हालांकि मुख्य पीठ ने इस अपील को ठुकराते हुए उन्हें कमेटी के लिए नाम सुझाने को कहा। साथ ही मुख्य पीठ ने याचिकाकर्ता के अधिवक्ता प्रशांत मनचंदा से कमेटी के लिए विशेषज्ञ, सामाजिक कार्यकर्ता, नौकरशाह और शिक्षक का नाम सुझाने का भी सुझाव दिया। यह सूची याचिकाकर्ता की तरफ से अगली तारीख पर अदालत को सौंपनी है। दिल्ली सरकार की तरफ से 6 मार्च को हाई कोर्ट में प्रगति रिपोर्ट दाखिल की गई थी। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता प्रशांत मनचंदा ने बताया कि रिपोर्ट में सरकार ने स्वीकार किया था कि सरकारी अस्पतालों में 2700 डॉक्टर, पैरा-मेडिकल, नर्स समेत अन्य कर्मचारियों की कमी है। इसमें 600 डॉक्टर, 800 पैरा मेडिकल स्टाफ और बाकी अन्य कर्मचारी हैं। साथ ही यह भी माना था कि जीबी पंत अस्पताल के 70 फीसद उपकरण काम नहीं कर रहे हैं। इसके लिए वर्ष 2017 में निविदा निकाली गई थी, लेकिन अब तक खरीदे नहीं जा सके। डीडीयू अस्पताल में सीटी स्कैन ही नहीं है। कर्मचारी एवं उपकरणों की यही दशा कमोबेश अन्य अस्पतालों में भी है। यह था मामला
नौ महीने की गर्भवती मधुबाला को जीटीबी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। ऑपरेशन थिएटर नहीं मिलने के कारण गर्भ में ही उनके बच्चे की मौत हो गई थी। इतना ही नहीं अस्पताल की लापरवाही के कारण तीन दिन तक उनका मृत बच्चा उनके पेट में ही रहा और उनकी जान को भी खतरा हो गया। हालांकि, वह किसी तरह बच गईं। अस्पताल की लापरवाही को उजागर करने के लिए मधुबाला ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी।