सही समय पर मिला इलाज तो बची बच्ची की जान
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली : छोटी उम्र के बच्चों में स्ट्रोक आने की घटनाएं अमूमन सुनने में नहीं आती हैं
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली : छोटी उम्र के बच्चों में स्ट्रोक आने की घटनाएं अमूमन सुनने में नहीं आती हैं, लेकिन बीती एक मई को नौ साल की बच्ची एक्यूट आर्टीरियल इस्केमिक स्ट्रोक का शिकार हो गई। इस दौरान वह स्कूल में थी। हालांकि, अध्यापकों और माता-पिता की सूझबूझ के चलते उसे सही समय पर इलाज मिल सका, जिस कारण न केवल उसे बचा लिया गया, बल्कि वह अपंग होने से भी बच गई।
मरीज के पिता ने बताया, 'जब वह सुबह स्कूल गई, तब बिल्कुल ठीक थी। मगर, उसकी अध्यापिका ने उसमें कुछ अजीब व्यवहार नोटिस किया। वह अपने बाएं हाथ से बैग तक नहीं उठा पा रही थी। अचानक उसका संतुलन बिगड़ गया और वह गिर गई। अध्यापिका ने उसे कोई भी दवा देने के बजाय तुरंत लेटाया और हमें सूचित किया।'
उन्होंने बताया कि वह बच्ची को स्थानीय अस्पताल ले गए। एमआरआइ कराने पर दाएं फोटो-पैरीटल रीजन में एक्यूट इन्फरेक्शन का पता चला। आम बोलचाल की भाषा में कहें तो ऐसा धमनियों में ब्लॉक होने के कारण होता है। इससे दिमाग के कुछ हिस्सों को खून की आपूर्ति रुक जाती है। बाद में उसे इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल ले गए।
अपोलो अस्पताल में आपातकालीन विभाग की प्रमुख डॉ. प्रियदर्शिनी पाल सिंह ने बताया, 'स्ट्रोक के बाद करीब चार घंटे की अवधि को गोल्डन पीरियड कहा जा सकता है। इस अवधि के अंदर सही इलाज मिलने पर मरीज के जीवित रहने और पूरी तरह से ठीक होने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।'
डॉ. वीबी गुप्ता ने कहा कि बच्चों में स्ट्रोक के मामले बहुत कम देखे जाते हैं। बहुत से लोगों ने ऐसा सुना तक नहीं होगा। जान बचा लेने के बाद भी बच्चा जीवन भर के लिए अपंग हो जाता है, क्योंकि माता-पिता इसके बारे में जागरूक नहीं होते हैं और समय पर बच्चे को अस्पताल नहीं पहुंचाया जाता है।
बुधवार को बच्ची को जब अस्पताल से छुट्टी दी गई, तब उसके चेहरे पर मुस्कान थी। उसके पिता ने बताया, 'इतनी दर्दनाक घटना के बाद भी मेरी बच्ची बेहद सकारात्मक है, लेकिन लोग जब असंवेदनशील टिप्पणी करते हैं तो उसका हौसला कम हो जाता है।'