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संघ के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा- 'इंसान कट्टर होने से शैतान हो जाता है'

एक इंसान हमेशा कट्टर होने से शैतान हो जाता है और सरल बनने से हर समस्या का हल होता है, इसलिए हमें कट्टर नहीं बल्कि सच्चा बनने की जरूरत है। हमें ‘हम मजहबी और हम वतनी’ का अर्थ समझने की जरूरत है।

By JP YadavEdited By: Published: Wed, 24 Feb 2016 10:13 AM (IST)Updated: Wed, 24 Feb 2016 10:26 AM (IST)
संघ के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा- 'इंसान कट्टर होने से शैतान हो जाता है'

नई दिल्ली। एक इंसान कट्टर होने से शैतान हो जाता है और सरल बनने से हर समस्या का हल होता है, इसलिए हमें कट्टर नहीं बल्कि सच्चा बनने की जरूरत है। हमें ‘हम मजहबी और हम वतनी’ का अर्थ समझने की जरूरत है।

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उक्त बातें दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के एकेडमिक रिसर्च सेंटर में हिंदुस्तानी मुस्लिम इंटलेक्चुअल फोरम के तत्वावधान में ‘रोल ऑफ मुस्लिम इंटलेक्चुअल्स इन प्रोस्परस एंड स्ट्रांग भारत निर्माण’ विषय पर आयोजित कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी इंद्रेश कुमार ने कहीं।

उन्होंने कहा कि इंटलेक्चुअल के अलग-अलग मायने हो सकते हैं, लेकिन मेरा मानना है कि जिसका दिल और दिमाग सही है, वही इंटलेक्चुअल है। हमें ‘हम मजहबी और हम वतनी’ का अर्थ समझने की जरूरत है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बारे में उन्होंने कहा कि इस देश में सभी लोगों को बोलने की आजादी है, लेकिन मारपीट की आजादी नहीं है।

हर समस्या का समाधान संवाद से निकल सकता है। लड़ने और लड़ाने के लिए हम सब तैयार हैं, लेकिन समझने और समझाने के लिए हम तैयार नहीं हैं। लेकिन, बिना इसके शांति संभव नहीं है। उन्होंने जोर देकर कहा कि हमारे सौ मतभेद हो सकते हैं, लेकिन बैठक कर उसका समाधान भी निकल सकता है।

दुनिया आज हिंदुस्तान की तरफ देख रही है। दुनिया शांति फैलाने का रास्ता हिंदुस्तान से चाहती है। थानेदार देश बहुत हैं, लेकिन इंसानियत के देश बहुत कम हैं।

कमजोर आरएसएस से देश को खतरा: भट्ट

कार्यक्रम में उर्दू के विद्वान डॉ. एम. हबीबुल्ला भट्ट ने कहा कि आज हिंदुस्तान को अगर खतरा है तो कमजोर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) से है, जो बदलते हुए मंजर को नहीं देख पा रहा है। उन्होंने कहा कि यह समझने की जरूरत है कि अब पुरानी बात नहीं चलेगी।

हमें समय के मुताबिक बदलना होगा। उन्होंने कहा कि आज हिंदी-उर्दू का झगड़ा नहीं है। आज एक ऐसे संगठन की जरूरत है, जो समसामयिक भारत को देखें।


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