शोर मचाकर किसान करते थे टिड्डियों का मुकाबला
दिल्ली देहात के लोगों की याद में टिड्डियों के हमले से जुड़ी बातें एक बार फिर ताजा हो गई हैं।
जागरण संवाददाता, पश्चिमी दिल्ली : दिल्ली देहात के लोगों की याद में टिड्डियों के हमले से जुड़ी बातें एक बार फिर ताजा हो गई हैं। छावला गांव के बुजुर्ग किसान सूरज भान बताते हैं कि उन्हें याद है कि जब टिड्डियों का झुंड हमला करता था, तब आसमान काला हो जाता था। ऐसा लगता था मानो काले बादल छाए हों। हर तरफ टिड्डी ही टिड्डी नजर आती थी। करीब तीन से चार घंटे तक इनका प्रकोप रहता था। इसके बाद ये डेरा डालती थी और हरियाली चट कर जाती थी।
कैर गांव के बुजुर्ग अमर सिंह बताते हैं कि वर्ष 1952 में टिड्डियों के दल ने दिल्ली पर धावा बोला था। तब टिड्डियों के दल ने खेत के खेत साफ कर दिए थे। यहां तक कि जिस पेड़ पर टिड्डियां डेरा जमाती थी, उसके सारे पत्ते खा जाती थी। अमर सिंह बताते हैं कि इसके सात या आठ वर्ष बाद फिर टिड्डियों ने दिल्ली पर हमला बोला था। तब ऐसे होता था टिड्डियों का मुकाबला
छावला गांव के सुल्तान सिंह बताते हैं कि जैसे ही किसानों का पता लगता था कि टिड्डियों ने खेत में डेरा जमा दिया है, सभी लोग अपने-अपने घर से निकलकर शोर मचाने में जुट जाते थे। ढोल-नगाड़े, पीपा, कनस्तर, थाली, जिस किसान को जो भी मिलता, उसका इस्तेमाल शोर मचाने में किया जाता था। कई बार यह तरकीब काम करती थी और कई बार काम नहीं करती थी। ढांसा गांव के खजान सिंह बताते हैं कि जिस खेत में टिड्डियां डेरा डालती थी, उस खेत से कुछ गज की दूरी पर किसान खाई खोदते थे, जैसे ही टिड्डियां उड़कर खाई में पहुंचती थी, किसान वहां मिट्टी डाल देते थे। तब इस तरह की कोशिश दिल्ली देहात में खूब हुई।