ऑटोमेटेड ट्रैक पर टेस्ट देने से ही मिलेगा ड्राइविंग लाइसेंस
दिल्ली में जनवरी से सभी अथॉरिटी में ऑटोमेटेड ड्राइविग ट्रैक शुरू हो जाएंगे। इसके बाद दिल्ली में ड्राइविग लाइसेंस बनवाना आसान नहीं होगा। दिल्ली में ड्राइविग में दक्ष लोगों को ही लाइसेंस मिल सकेगा। इस साल के अंत तक दिल्ली की सभी अथॉरिटी में ऑटोमेटेड ड्राइविग टेस्ट सेंटर का काम पूरा हो जाएगा। यानी मैन्युअल ड्राइविग टेस्ट सिस्टम पूरी खत्म हो जाएगा।
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली : दिल्ली में जनवरी से सभी अथॉरिटी (परिवहन कार्यालयों) में ऑटोमेटेड ड्राइविग ट्रैक शुरू हो जाएंगे। इसके बाद मैन्युअल ड्राइविग टेस्ट सिस्टम पूरी खत्म हो जाएगा और ऑटोमेटेड ट्रैक पर टेस्ट देने वालों को ही ड्राइविंग लाइसेंस मिल सकेगा।
लोनी रोड, राजा गार्डन और रोहिणी में ऑटोमेटेड ड्राइविग टेस्ट सेंटर तैयार हो गए हैं। जल्द ही इनका उद्घाटन होने जा रहा है। द्वारका, लाडो सराय और हरिनगर में सेंटर तैयार करने का अंतिम चरण में है। यहां का कार्य दिसंबर के अंत तक पूरा हो जाएगा। इससे पहले वजीरपुर, बुराड़ी, सूरजमल विहार, मयूर विहार और सराय काले खां में ऑटोमेटेड ड्राइविग टेस्ट सेंटर काम कर रहे हैं। ऐसे में इसी साल ड्राइविग लाइसेंस में मैन्युअल सिस्टम पूरी तरह खत्म हो जाएगा। विभाग का मानना है कि नए सिस्टम से ड्राइविग टेस्ट को पारदर्शी बनाने में मदद मिलेगी।
थोड़ी सी हुई चूक तो हो जाएंगे फेल
परिवहन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं अथॉरिटी से जुड़े एक अधिकारी कहते हैं कि यह व्यवस्था अच्छी तो है, मगर सिस्टम में कई जमीनी बातों पर ध्यान नहीं दिया गया है। सिस्टम में लगा सेंसर एक-एक सेकेंड के समय को पकड़ता है। अगर आप दो सेकेंड भी लेट हुए तो सिस्टम आप को फेल कर देगा। चक्कर लगाने के लिए जो समय निर्धारित है उससे पहले भी यदि दूरी को आप ने तय कर लिया तो भी सिस्टम आप को फेल कर देगा। गुरु हनुमान सोसायटी ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय महासचिव अतुल रणजीत कुमार ने मांग की है कि सिस्टम न समझ पाने के कारण अनुभवी चालक भी ऑटोमेटेड ट्रैक पर टेस्ट देने के दौरान फेल हो जाते हैं। उन्होंने मांग की है कि टेस्ट देने से पहले ट्रायल की व्यवस्था की जाए। इस बारे में उन्होंने परिवहन मंत्री को पत्र लिखा है।
एक ऑटोमेटेड ट्रैक बनाने में एक करोड़ रुपये खर्च
2018 में सबसे पहले शेख सराय अथॉरिटी में आने वाले आवेदकों का ऑटोमेटेड टेस्ट लिया जाना शुरू किया गया था। दिल्ली में 13 अथॉरिटी हैं। एक ऑटोमेटेड ट्रैक बनाने में एक करोड़ रुपये खर्च हो रहा है। जिसमें अलग-अलग जगह कई तरह के सेंसर के अलावा ट्रैक पर 50 मीटर की ऊंचाई पर आठ सीसीटीवी कैमरे लगाए जाते हैं, जो टेस्ट देने वालों की कमियां पकड़ते हैं। इस प्रक्रिया को अपनाने के पीछे मकसद यह है कि इससे केवल योग्य व्यक्ति को ही लाइसेंस मिले। ऑटोमेटेड ट्रैक पर टेस्ट देने वालों में रोजाना करीब 40 से 50 फीसद लोग फेल हो जाते हैं। उन्हें तैयारी के बाद अगली बार फिर मौका दिया जाता है।