खुलासाः AIIMS में रिसर्च पर विचार देने के लिए आजाद नहीं डॉक्टर
वैसे तो एम्स में हमेशा कोई न कोई शोध चलता रहता है। लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इस संस्थान में डॉक्टरों को किसी शोध पर विचार व्यक्त करने की भी आजादी नहीं है। यदि डॉक्टर अपनी सोच के मुताबिक किसी बीमारी के बारे में कोई शोध करना चाहें
नई दिल्ली (रणविजय सिंह)। वैसे तो एम्स में हमेशा कोई न कोई शोध चलता रहता है। लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इस संस्थान में डॉक्टरों को किसी शोध पर विचार व्यक्त करने की भी आजादी नहीं है। यदि डॉक्टर अपनी सोच के मुताबिक किसी बीमारी के बारे में कोई शोध करना चाहें तो वे नहीं कर सकते।
इस बात का खुलासा संसदीय स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में किया है। समिति ने इस रिपोर्ट में एम्स के कामकाज पर गंभीर सवाल उठाए हैं और कहा है कि स्वायत्तशासी संस्था होने के बावजूद एम्स के प्रशासनिक मामलों में बाहरी हस्तक्षेप बढ़ गया है।
इसके चलते संस्थान की आंतरिक प्रशासनिक व्यवस्था लचर हो गई है। रिपोर्ट में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री को एम्स का अध्यक्ष मनोनित किए जाने के प्रावधान पर भी सवाल खड़ा करते हुए उन्हें संस्थान का अध्यक्ष नहीं बनाने की सिफारिश की गई है।
33 सांसदों वाली इस समिति द्वारा तैयार इस रिपोर्ट को अगस्त में संसद के दोनों सदनों में प्रस्तुत किया गया था। रिपोर्ट में कहा गया है कि स्वायत्तशासी संस्था होने के बावजूद एम्स को अपनी विस्तार योजनाओं की स्वीकृति के लिए वर्षो संघर्ष करना पड़ता है।
कागजी कार्रवाई में ही काफी मूल्यवान समय बर्बाद हो जाता है। एम्स को सामान्य सरकारी प्रक्रिया से अलग रखना होगा। इसके विकास को तेज करने के लिए यह जरूरी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि राजनीतिक हस्तक्षेप से एम्स की साख घटेगी।
वित्तीय स्वायत्तता से भी ज्यादा महत्वपूर्ण बौद्धिक स्वायत्तता है। इसकी कमी के चलते वरिष्ठ प्रोफेसरों में असंतोष है। वे शोध पर विचार नहीं दे सकते। इसके चलते कई प्रोफेसर राष्ट्रीय महत्व के इस संस्थान को छोड़ भी रहे हैं। ऐसे में एम्स को अपने नियम-कानून और आचार संहिता खुद तैयार करने चाहिए।
अनावश्यक सरकारी निर्देशों को मानने की कोई आवश्यकता नहीं है। स्वायत्तशासी होने के नाते एम्स के संचालन के लिए गवर्निग बॉडी (जीबी), इंस्टीट्यूट बॉडी (आइबी) और पांच अन्य समितियां बनाई गई हैं। इन समितियों के कार्यकलाप के बारे में संसदीय स्थायी समिति ने विशेषज्ञों से उनके विचार मांगे थे।
इस आधार पर रिपोर्ट में कहा गया है कि एम्स का आंतिरिक प्रशासन कमजोर हो चुका है और बाहरी हस्तक्षेप के कारण संस्थान की प्रशासनिक व्यवस्था खराब हो चुकी है। इसमें सुधार की जरूरत है।
फैसले का हक निदेशक और अध्यक्ष के हाथों में सीमित
रिपोर्ट के अनुसार एम्स की समितियों की बैठक के लिए कोई निश्चित समय निर्धारित नहीं है। इसके चलते फैसले का हक संस्थान के अध्यक्ष और निदेशक तक ही सीमित है। बैठक के अभाव में अध्यक्ष की स्वीकृति से निदेशक द्वारा ही फैसले लिए जाते हैं।
बाद में उसे स्वीकृति के लिए इंस्टीट्यूट बॉडी और गवर्निग बॉडी में लाया जाता है। इसके चलते योजनाओं में देरी होती है। प्रोफेसरों की नियुक्ति होने के बाद उसकी स्वीकृति के लिए उसे आइबी, जीबी में लाया जाता है।