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दिल्ली में लोग सड़क पर चलते हुए दाएं-बाएं देख कर डाल देते हैं जनहित याचिका, हाई कोर्ट ने की खिंचाई

मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की खंडपीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा कि दिल्ली में एक चलन दिखाई दे रहा है कि लोग सड़क पर चलते हुए दाएं व बाएं देखते हैं बिना किसी तैयारी और आधार के जनहित याचिका दायर कर देते हैं।

By Mangal YadavEdited By: Published: Wed, 23 Feb 2022 09:26 PM (IST)Updated: Wed, 23 Feb 2022 09:26 PM (IST)
दिल्ली हाई कोर्ट ने की याचिकाकर्ता की खिंचाई

नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। आधारहीन याचिका दायर करने पर बुधवार को दिल्ली हाई कोर्ट ने एक याचिकाकर्ता की खिंचाई की। मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की खंडपीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा कि दिल्ली में एक चलन दिखाई दे रहा है कि लोग सड़क पर चलते हुए दाएं व बाएं देखते हैं, बिना किसी तैयारी और आधार के जनहित याचिका दायर कर देते हैं। इस पर याचिकाकर्ता के वकील ने याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी, जिसे खंडपीठ ने स्वीकार कर लिया।

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एक व्यक्ति ने याचिका में आरोप लगाया कि शाहीन बाग इलाके में अवैध निर्माण जारी है और अधिकारी इसमें शामिल हैं। याचिका में आरोपों को लेकर किसी तरह का साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया था। इस पर याचिकाकर्ता की खिंचाई करते हुए खंडपीठ ने कहा कि इस याचिका का मकसद जनहित नहीं है, बल्कि धमकाना और धन उगाही करना है। खंडपीठ ने इस सुनवाई के दौरान जनहित याचिकाएं दायर करने को लेकर चल रहे चलन पर भी टिप्पणी की।बाद में याचिकाकर्ता के वकील ने याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी, जिसे अदालत ने स्वीकार किया।

संसद या विधानसभा को कानून पारित करने का निर्देश नहीं दिया जा सकताः हाई कोर्ट

वहीं, व्हिसल ब्लोअर संरक्षण अधिनियम 2014 को एक अधिसूचना के जरिये क्रियान्वित करने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश देने का अनुरोध करने वाली याचिका दिल्ली हाई कोर्ट ने खारिज कर दी। मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की खंडपीठ ने कहा कि कानून बनाना संसद या विधानसभा का कार्य है। कोर्ट इन्हें कानून पारित करने के लिए नहीं दे सकता।गुरु तेग बहादुर (जीटीबी) अस्पताल में वरिष्ठ मुख्य चिकित्सा अधिकारी के तौर पर तैनात डा. मुहम्मद एजाज उर रहमान ने जनहित याचिका दायर की थी। उसमें कहा गया था कि व्हिसल ब्लोअर संरक्षण अधिनियम को एक अधिसूचना जारी कर लागू करने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश दिया जाए।

खंडपीठ ने कहा कि कानून और कुछ नहीं बल्कि लोगों की इच्छा होती है। विधायिका लोगों की इच्छा को लागू करते हैं। कोर्ट संसद या विधानसभा के संप्रभु कार्य के लिए कोई नोटिस जारी नहीं कर सकता। खंडपीठ ने कहा कि ऐसे बहुत से कानून हैं जिन्हें संसद ने पारित किया, लेकिन अभी तक उन्हें लागू नहीं किया गया। पीठ ने कहा कि कानून बनाना संसद के विवेक पर निर्भर करता है, इसलिए वह प्राधिकारियों को कानून बनाने का निर्देश नहीं दे सकते।


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