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इतिहास के झरोखे से- 1984 में कांग्रेस की लहर को भांप गए थे चौधरी चरण सिंह

नवीन गौतम बाहरी दिल्ली लोकदल के संस्थापक पूर्व प्रधानमंत्री चौ. चरण सिंह भले ही देश भर में

By JagranEdited By: Published: Wed, 10 Apr 2019 08:14 PM (IST)Updated: Wed, 10 Apr 2019 08:14 PM (IST)
इतिहास के झरोखे से- 1984 में कांग्रेस की लहर को  भांप गए थे चौधरी चरण सिंह
इतिहास के झरोखे से- 1984 में कांग्रेस की लहर को भांप गए थे चौधरी चरण सिंह

नवीन गौतम, बाहरी दिल्ली

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लोकदल के संस्थापक पूर्व प्रधानमंत्री चौ. चरण सिंह भले ही देश भर में कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोलते रहे हों, मगर वर्ष 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए लोकसभा चुनाव में वह नहीं चाहते थे कि उनके करीबी लोग लोकसभा चुनाव लड़ें। वह नजदीकी लोगों को एक बात ही समझा रहे थे कि कि इंदिरा गांधी की मौत के बाद माहौल बिल्कुल भी अनुकूल नहीं है। चौधरी चरण सिंह के जीवन काल में उनके साथ लंबे अर्से तक जुड़े रहे पूर्व सांसद चौ. तारीफ सिंह ने जागरण से अपने अनुभव को साझा करते हुए बताया कि इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस के प्रति उपजी सहानुभूति की लहर को चौधरी साहब ने अच्छी तरह से समझ लिया था। आत्मीयता दिखाते हुए मुझे साफ कह दिया था कि लोकसभा चुनाव मत लड़ो। किसी और को लड़ने दो। वह पार्टी फंड में दो लाख रुपये भी देगा और चुनाव का पूरा खर्चा भी उठा लेगा। उन्होंने साफ कहा था मत लड़ों चुनाव हार जाएगा। मेरी खुद की गारंटी नहीं है कि मैं जीत पाऊंगा, इसलिए फिर सलाह दे रहा हूं मत चुनाव लड़। घर परिवार देख वरना घर भी बिक जाएगा, मगर मैं नहीं माना, मैं अड़ गया। उन्होंने कहा ठीक है लड़ ले। लोकदल उम्मीदवार के तौर पर कांग्रेस विरोधी सभी दलों ने समर्थन दिया। मैं लड़ा, मेरे लिए चौधरी साहब चुनाव प्रचार करने लिए आए भी। पहले बाहरी दिल्ली संसदीय क्षेत्र ही देश का सबसे बड़ा संसदीय क्षेत्र होता था। उनकी रैली नजफगढ़ में रखी गई थी, जिसमें करीब दो लाख रुपये की थैली भेंट की गई। कुछ अन्य जगह भी उन्हें सिक्कों से भरी थैली भेंट की गई, जिसे चौधरी साहब मेरे चुनाव खर्च के लिए ही मुझे दे गए थे। उनकी बात सत्य हुई और मैं चुनाव हार गया। देश में दिग्गज चुनाव हारे थे। मुझे चुनाव लड़ने की जिद थी और सोच लिया था लोकसभा में पहुंचना है। फिर वर्ष 1989 में कांग्रेस के खिलाफ कांग्रेस विरोधी दलों का गठबंधन हुआ, जिसमें जनता दल को एक सीट मिली थी और भाजपा को छह सीट मिली थीं। उस दौरान मैंने कांग्रेस के चौ. भरत सिंह से अपनी हार का बदला ले लिया था। भाजपा ने दिल्ली में चार व कांग्रेस ने दो सीटें जीती थीं और जनता दल उम्मीदवार के रूप में मैने जीत हासिल की थी। वर्ष 1991 में हुए लोकसभा के चुनाव में जनता दल और भाजपा अलग-अलग होकर लड़े। मुकाबला त्रिकोणीय था। बाहरी दिल्ली से कांग्रेस ने सज्जन कुमार को उतारा। मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू किए जाने के कारण जाट बहुत नाराज थे और पिछड़ा वर्ग भी साथ नहीं आ सका था। भाजपा ने साहिब सिंह वर्मा को उम्मीदवार बनाया था, तब मुझे और साहिब सिंह वर्मा को हार का सामना करना पड़ा था। चौ. तारीफ सिंह बताते हैं कि चौधरी चरण सिंह का लगाव दिल्ली के गांवों से उसी प्रकार था, जिस प्रकार से उनका लगाव पश्चिम उत्तर प्रदेश के अपने गांवों से था। यही वजह थी कि वह न केवल लोकसभा के चुनाव में दिलचस्पी लेते थे, अपितु नगर निगम व महानगर परिषद में भी उन्होंने कांग्रेस विरोधी दलों के साथ गठबंधन करके अपने उम्मीदवार उतारे थे और नगर निगम व महा परिषद में रोहताश डबास, दीपचंद डबास, पीतम सिंह डागर आदि नेता महानगर परिषद में पहुंचे थे।


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