पूर्व मंत्री दिलीप रे सहित अन्य दोषियों को दी जाए उम्रकैद की सजा
कोयला घोटाले से जुड़े एक मामले में पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री दिलीप रे सहित अन्य दोषियों की सजा पर बुधवार को राउज एवेन्यू की विशेष अदालत में बहस हुई। इस दौरान सीबीआइ की तरफ से मांग की गई दिलीप रे सहित सभी दोषियों को उम्र कैद की सजा दी जाए।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली :
कोयला घोटाले से जुड़े एक मामले में पूर्व केंद्रीय कोयला राज्य मंत्री दिलीप रे सहित अन्य दोषियों की सजा पर बुधवार को राउज एवेन्यू की विशेष अदालत में बहस हुई। इस दौरान सीबीआइ की तरफ से दिलीप रे सहित सभी दोषियों को उम्रकैद की सजा देने की मांग की गई। साथ ही जुर्माना भी लगाया जाए। वहीं बचाव पक्ष ने दोषियों की उम्र का लिहाज करते हुए कम से कम सजा देने की गुहार लगाई। विशेष न्यायाधीश भरत पराशर ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद सजा पर फैसला 26 अक्टूबर के लिए सुरक्षित रख लिया। साथ ही दोषियों को आदेश दिया कि शारीरिक तौर पर अदालत में पेश होना होगा।
विगत 6 अक्टूबर को विशेष अदालत ने दिलीप रे के अलावा कोयला मंत्रालय के दो वरिष्ठ अधिकारियों प्रदीप कुमार बनर्जी और नित्यानंद गौतम, कास्त्रों टेक्नोलॉजी लिमिटेड (सीटीएल) और इसके निदेशक महेंद्र कुमार अग्रवाला को दोषी ठहराया था। दिलीप रे अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में कोयला राज्य मंत्री थे और मूल रूप से भुवनेश्वर के रहने वाले हैं। 1999 में झारखंड के गिरिडीह में 'ब्रह्मडीह कोयला ब्लॉक' के आवंटन में अनियमितता से जुड़े मामले में दिलीप रे को दोषी मानते हुए विशेष अदालत ने कहा था कि गलत इरादे से कानूनी प्रावधानों को ताक पर रखा गया। दिलीप रे ने धोखेबाजी से सीटीएल को कोयला ब्लॉक का आवंटन किया। विशेष अदालत ने कहा था कि तत्कालीन अधिकारियों ने भी कानून के दायरे से बाहर जाकर कार्य किया और अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन ठीक से नहीं किया। क्या है मामला
सीबीआइ ने आरोपपत्र में कहा था कि मई 1998 में सीटीएल ने कोयला ब्लॉक आवंटित करने के लिए मंत्रालय में आवेदन किया था। कोल इंडिया लिमिटेड ने मंत्रालय को सूचित किया कि जिस जगह पर खनन के लिए आवेदन किया गया है, वहां खतरा है। वह खान क्षेत्र पानी से भरा हुआ है। अप्रैल 1999 में कंपनी ने फिर से आवेदन किया और मंत्री दिलीप रे को नए आवेदन पर शीघ्रता से विचार करने की बात कही। मई 1999 में आवेदन फाइल दिलीप रे के मंत्रालय से तत्कालीन केंद्रीय कोयला सचिव के पास आई और वहां से तत्कालीन अतिरिक्त सचिव नित्यानंद गौतम के पास भेजी गई। गौतम ने अपने पिछले अवलोकन से यू टर्न ले लिया और कोयला ब्लॉक सीटीएल को आवंटित करने की सिफारिश की। सीटीएल को कोयला ब्लॉक मिल गया, लेकिन अनुमति के बिना ही वहां पर खनन किया गया था।