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बारापुला नाले के जलशोधन के लिए लगाया प्लांट

जागरण संवाददाता, दक्षिणी दिल्ली : सराय कालेखां स्थित सूर्य घड़ी पार्क में मंगलवार को केंद्रीय विज्ञान

By JagranEdited By: Published: Tue, 18 Sep 2018 08:29 PM (IST)Updated: Tue, 18 Sep 2018 08:29 PM (IST)
बारापुला नाले के जलशोधन के लिए लगाया प्लांट
बारापुला नाले के जलशोधन के लिए लगाया प्लांट

जागरण संवाददाता, दक्षिणी दिल्ली : सराय कालेखां स्थित सूर्य घड़ी पार्क में मंगलवार को केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने जलशोधन संयंत्र (वाटर ट्रीटमेंट प्लांट) और प्रयोगशाला का उद्घाटन किया। इस प्लांट से बारापुला नाले के पानी को शोधित करके उसे ¨सचाई, निर्माण व अन्य कामों में इस्तेमाल किया जाएगा। इस प्लांट की क्षमता प्रतिदिन 10 लाख लीटर पानी को शोधित कर उससे करीब तीन टन जैव ईंधन (बायो फ्यूल) का उत्पादन करने की है।

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यह प्लांट मंत्रालय के जैव प्रौद्योगिकी विभाग (बायो फ्यूल), नीदरलैंड की कंपनी लोकल ट्रीटमेंट ऑफ अर्बन सीवेज स्ट्रीम (लोटस), आइआइटी दिल्ली और द एनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट (टेरी) के संयुक्त रूप से चलाया जा रहा है। करीब 13 किलोमीटर लंबे और तीन मीटर चौड़े बारापुला नाले से हर रोज 10 लाख लीटर पानी निकलता है। इसी पानी को ट्रीट करने के लिए यह प्लांट लगाया गया है। बतौर मुख्य अतिथि डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि इसका उद्देश्य स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत 'स्वच्छता ही सेवा' अभियान को सफल बनाना है। करीब एक साल पहले उन्होंने और अन्य वैज्ञानिकों ने इस प्लांट की नींव डाली थी। आज यह प्लांट बनकर तैयार है। उन्होंने कहा कि यह प्लांट भारत के जैव प्रौद्योगिकी और जल संरक्षण के अन्य अवसरों के लिए मील का पत्थर साबित होगा। यह प्लांट न सिर्फ नाले, सीवर के पानी से जैव ईंधन तैयार करता है बल्कि सीवर के गंदे पानी को भी साफ करता है। इस पानी का प्रयोग मुख्य रूप से उद्योग, ¨सचाई और निर्माण कार्यों में किया जाएगा। देश के कई शहर पानी की किल्लत झेल रहे हैं। इससे बचने के लिए आने वाले समय में ऐसे कदम उठाकर जल संरक्षण किया जा सकता है।

प्लांट और प्रयोगशाला के चलते इसके चारों तरफ पार्क का निर्माण किया गया है। इसमें चार बायो शौचालय हैं। वैज्ञानिकों ने बताया के कुछ समय पहले तक क्षेत्र में दलदल समान मिट्टी थी, जिसको सूखी मिट्टी से ढककर समतल किया गया। पार्क में जंगली प्रजाति के 2260 पौधे भी लगाए गए हैं, जिनका विकास पारंपरिक पौधों की अपेक्षाकृत चौगुनी तेजी से होता है। कार्यक्रम के दौरान जैव प्रौद्योगिकी विभाग की सचिव डॉ. रेणु स्वरूप, डीबीटी की एडवाइजर कंसल्टेंट डॉ. शैलजा वैद्य गुप्ता एवं अन्य वैज्ञानिक मौजूद रहे।


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