सरकार निराश, पर प्रभावित नहीं होगा दिल्ली का विकास
मई 2015 को इस केस की शुरुआत हुई। मई 2015 से लेकर अगस्त 2015 तक यह केस हाई कोर्ट में चला। हाई कोर्ट के बाद जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में गया तो पहले ही दिन हमारे वकील ने कहा था क्योंकि यह कॉन्सि्टट्यूशन से जुड़ा मामला है,
वीके शुक्ला, नई दिल्ली
आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार ने चार साल पूरे कर लिए हैं। इस दौरान उसने कई उतार-चढ़ाव देखे। शुरू से ही दिल्ली सरकार का राजनिवास और केंद्र सरकार से टकराव रहा है। अफसर भी इस लड़ाई में दिल्ली सरकार के साथ नहीं रहे। ऐसे में सरकार कई माह तक दिल्ली विधानसभा से चली। आप प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज का कहना है कि आंदोलन के समय रामलीला मैदान में जनता के लिए जिस तरह हमें केंद्र सरकार से लड़ना पड़ा था, उसी तरह सत्ता में रहकर अब जनता के लिए हमारी सरकार को उपराज्यपाल और केंद्र सरकार से लड़ना पड़ रहा है।
चार साल पूरे होने पर अधिकारों को लेकर उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार के बीच छिड़ी जंग के बीच सुप्रीम कोर्ट के गुरुवार को आए फैसले से दिल्ली सरकार को निराशा हुई है, लेकिन सरकार ने यह भी साफ कर दिया है कि दिल्ली का विकास प्रभावित नहीं होने दिया जाएगा। कुछ समस्याएं आगे भी खड़ी होंगी, लेकिन सरकार जिस तरह से जनता के लिए लड़ती आई है आगे भी लड़ती रहेगी। दिल्ली की स्थिति का आकलन करें तो चार साल पहले 14 फरवरी 2015 में पूर्ण बहुमत के साथ आम आदमी पार्टी सत्ता में आई थी। लोगों ने अर¨वद केजरीवाल पर भरोसा जताया था। जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए आप ने सत्ता संभालने के पहले दिन से ही रणनीति बनानी शुरू कर दी थी। एक सप्ताह के अंदर ही कई बड़े फैसले लिए गए थे। कुछ मामलों में अफसरों ने सरकार के फैसलों पर नियम और कानून का हवाला देकर असहमति जताई और यहीं से सरकार और अफसरों के बीच टकराव शुरू हुआ। सरकार टकराव का बड़ा कारण अधिकारियों के तबादले और नियुक्ति का अधिकार न होना मानती रही है। अधिकारों की इस लड़ाई में सरकार के कई फैसले अधर में लटक गए। एक मामले में सरकार ने दो दानिक्स अधिकारियों को निलंबित किया तो उपराज्यपाल ने इन्हें बहाल कर दिया। सरकार ने खेती की जमीन का सर्किल रेट 53 लाख प्रति एकड़ से बढ़ाकर 3 करोड़ किया तो उपराज्यपाल ने इसे निरस्त किया। दिल्ली इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमीशन (डीईआरसी) के चेयरमैन के पद पर नियुक्ति को लेकर भी यही स्थिति रही। सरकार के फैसले पर उपराज्यपाल ने रोक लगाई। दिल्ली सरकार द्वारा बनाए गए जांच आयोग भी अस्तित्व में नहीं आ सके। सरकार द्वारा पास किए गए 12 विधेयक आज भी केंद्र सरकार के पास लंबित हैं।
इसी तरह के हो रहे टकराव के चलते दिल्ली सरकार ने अदालत की शरण ली थी। अधिकारों को लेकर मई 2015 में सरकार हाई कोर्ट पहुंची। वहां अगस्त 2015 तक यह केस चला। हाई कोर्ट के बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट में गया। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। नवंबर 2017 में पीठ के समक्ष बहस पूरी हुई। जुलाई 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया। आदेश में कहा गया कि भूमि, कानून-व्यवस्था और पुलिस सिर्फ तीन आरक्षित विषय हैं, यानी ये उपराज्यपाल के अधीन हैं। आप नेता आतिशी कहती हैं कि सुप्रीम कोर्ट की पीठ के इस आदेश से स्पष्ट होता है कि सर्विसेज इसमें शामिल नहीं है, जबकि गृह मंत्रालय के 2015 के नोटिफिकेशन में इसका क्लेम किया गया था। जुलाई 2018 के आदेश के बाद मामले को दोबारा से डिवीजन बेंच के समक्ष भेज दिया गया और नवंबर 2018 तक डिवीजन बेंच के समक्ष मामले की सुनवाई चली। फरवरी 2019 में आदेश आया, जिसमें कहा गया है कि बेंच के दोनों जजों के इस पर मत अलग-अलग हैं। अब तीन जजों की बेंच को यह मामला ट्रांसफर कर दिया गया।