IND vs AUS: बुमराह 360 डिग्री वाले गेंदबाज: कैफ
बुमराह भारतीय टीम का अहम हिस्सा हैं। अगर विराट कोहली जैसे कप्तान को ऐसा गेंदबाज मिलता है तो उसके लिए काम आसान हो जाता है।
मेलबर्न, अभिषेक त्रिपाठी। ऑस्ट्रेलिया में भारतीय टीम विराट कोहली की अगुआई में इतिहास रचने की दहलीज पर खड़ी है। उसके पास ऑस्ट्रेलिया को उसके घर में हराकर सीरीज जीतने का बेहतरीन मौका है। इस मौके को बनाने में भारतीय गेंदबाजों ने सबसे अहम भूमिका निभाई है। खासतौर से तेज गेंदबाज जसप्रीत बुमराह ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया है। बुमराह के मारक यॉर्कर क्षमता और सटीक लाइन लेंथ ने विरोधी टीम को परेशान किया है। ऑस्ट्रेलिया दौरे पर भारतीय टीम के प्रदर्शन को लेकर अभिषेक त्रिपाठी ने पूर्व भारतीय क्रिकेटर मुहम्मद कैफ से बातचीत की। पेश हैं प्रमुख अंश :
बुमराह की गेंदबाजी को लेकर क्या कहेंगे? उनकी यॉर्कर गेंदों पर आपकी क्या राय है?
बुमराह की मैं जितनी तारीफ की जाए कम है। बहुत कम समय में उन्होंने टीम में अपनी जगह पक्की कर ली। बहुत ज्यादा मैच उन्होंने नहीं खेले हैं। बस नौ टेस्ट का अनुभव है। बुमराह सोच-विचार करने वाले और बहुत स्मार्ट गेंदबाज हैं। ऐसा लगता था कि वह छोटे प्रारूप के गेंदबाज हैं लेकिन उन्होंने लंबे प्रारूप में भी अपनी पहचान बना ली। टेस्ट हो, वनडे हो या टी-20 हो, उन्होंने एक जैसा प्रदर्शन किया है।
बुमराह भारतीय टीम का अहम हिस्सा हैं। अगर विराट कोहली जैसे कप्तान को ऐसा गेंदबाज मिलता है तो उसके लिए काम आसान हो जाता है। बुमराह की सबसे अच्छी बात यह है कि चाहे वह पहली गेंद डालें या आखिरी, उनकी गति एक समान रहती है। तेज गेंदबाज समय के साथ थकते चले जाते हैं, लेकिन बुमराह की स्थिरता का मैं कायल हूं। इनकी गेंदबाजी में विविधता है। मैं सही मायने में बुमराह के दिमाग का प्रशंसक हो गया हूं।
बुमराह को लगता था कि यॉर्कर पर ही ज्यादा विकेट लिए जा सकते हैं। विकेट लेने के लिए यॉर्कर ही बड़ा हथियार है ?
देखिये, एक गेंदबाज तभी यॉर्कर मारता है जब उसकी जरूरत हो। छोटे प्रारूपों में गेंदबाजों के लिए बहुत मुश्किलें होती हैं। ऐसे में एक गेंदबाज खुद को बल्लेबाज से बचाने के लिए भी यॉर्कर का इस्तेमाल करता है। हालांकि टेस्ट में यॉर्कर मारने का मतलब थोड़ा अलग होता है। यह एक आक्रामक रुख होता है जिसका प्रयोग विकेट लेने के लिए किया जाता है।
मेरा मानना है कि छोटे प्रारूपों में एक गेंदबाज रन बनने से बचने के लिए यॉर्कर का इस्तेमाल करता है और टेस्ट क्रिकेट में विकेट निकालने के लिए इसका प्रयोग करता है। हालांकि यह बहुत ध्यान से करना पड़ता है। कई बार गेंदबाज यॉर्कर मारने के चक्कर में फुलटॉस फेंक बैठता है लेकिन बुमराह बेहद सटीकता के साथ यॉर्कर डालते हैं।
यह अभ्यास से संभव होता है। बुमराह का एक्शन थोड़ा अपरंपरागत है। उनका हाथ, उनका रन-अप और उनका गेंद को फेंकने का अंदाज सबसे अलग है। इसके लिए इन्होंने कोई कोचिंग नहीं ली। उन्होंने इसका इजाद खुद किया है।
इन सबके बीच 140-145 किलोमीटर प्रति घंटे की गति को बनाए रखना बड़ी बात है। वकार यूनुस, वसीम अकरम या मौजूदा समय में इशांत शर्मा को देख लीजिए, वे दूर से भाग कर आते थे या आते हैं तब उनकी गति 140 या उससे ज्यादा होती थी लेकिन यह छोटे रन-अप के साथ ही काफी तेजी से गेंद करते हैं। बुमराह एक प्रचलन बना रहे हैं और युवा गेंदबाजों के लिए मिसाल पेश कर रहे हैं कि जरूरी नहीं कि तेज गेंदबाजी करने के लिए 20 या 30 गज से भागकर ही तेज गेंद फेंकी जाए।
कहा जाता है कि भारत के पूर्व कोच जॉन राइट ने बुमराह की खोज की थी। आप भी उनकी कोचिंग में खेल चुके हैं। जॉन किस तरह से युवाओं की तलाश करते थे?
जॉन राइट एकदम शांत स्वभाव के कोच रहे और बुमराह भी वैसी ही प्रवृति के हैं। बुमराह को विकेट लेने के बाद हमने कभी किसी के साथ नोक-झोंक करते या फिर किसी वाद-विवाद में पड़ते नहीं देखा। हम बल्लेबाजों को बहुत श्रेय देते हैं। एबी डिविलियर्स को हम कहते हैं कि वह 360 डिग्री के बल्लेबाज थे। विराट की हम इतनी तारीफ करते हैं। मुझे नहीं लगता कि जितना बल्लेबाजों को श्रेय मिलता है उतना गेंदबाजों को मिलता है।
मेरा मानना है कि बुमराह गेंदबाजी में विराट जैसी उपलब्धि हासिल कर चुके हैं। उनकी गेंदबाजी में भी 360 डिग्री वाली क्षमता है। वह स्लोअर डालते हैं, यॉर्कर डालते हैं, लंबा स्पैल डालते हैं, अच्छा क्षेत्ररक्षण करते हैं। मेरे लिए बुमराह गेंदबाजी के विराट कोहली हैं। इशांत लंबे समय से भारत के लिए खेल रहे हैं लेकिन वह अच्छी गेंदबाजी अभी कर रहे हैं लेकिन बुमराह एक साल से भी कम समय में उनके बराबर पहुंच गए हैं। जहां तक जॉन राइट की बात है तो वह कोच रहे हैं, उनके पास खिलाड़ियों को पहचानने की पैनी नजर थी।
पोंटिंग ने पुजारा के बारे में कहा कि तीसरे टेस्ट की पहली पारी में उन्होंने काफी धीमी बल्लेबाजी की। आपकी क्या राह है ?
ऐसे किसी की बल्लेबाजी को लेकर बोलना बहुत आसान है। ऑस्ट्रेलिया अपनी पहली पारी में केवल 66-67 ओवर खेल पाई और महज 151 रन बना पाई। उनका कोई भी बल्लेबाज अर्धशतक भी नहीं बना पाया। इससे पता चलता है कि बल्लेबाजी करना कितना मुश्किल था। पिच धीमी हो रही थी और गेंद में अस्थिर बाउंस देखने को मिल रहा था। रफ बन गया और गेंद घूम रही थी। पुजारा इस तरह बल्लेबाजी करते हैं कि कभी-कभी मैच बोरिंग लगने लगता है और ड्रॉ होने जा रहा है लेकिन यह टेस्ट मैच का हिस्सा है।
सीमित ओवरों की तरह टेस्ट क्रिकेट में स्ट्राइक बदलते रहने की जरूरत नहीं होती। भारत ने पहली पारी में करीब 150 ओवर की बल्लेबाजी की और ढाई के आस-पास के रन औसत से करीब साढ़े चार सौ रन बनाए तो इसमें बुराई क्या है। पुजारा जैसे बल्लेबाज की हमें जरूरत है क्योंकि ऐसे खिलाड़ी की वजह से ही हम जीत रहे हैं। पुजारा की वजह से ही हम इंग्लैंड, दक्षिण अफ्रीका और फिर एडिलेड में भी जीते जहां वह मैन ऑफ द मैच रहे। विदेशों में जब भी भारत जीता है, पुजारा की भूमिका अहम रही है। पुजारा टीम इंडिया की रीढ़ की हड्डी हैं।
पिच को लेकर आज-कल बहुत बातें चल रही हैं। हाल ही में आइसीसी ने पर्थ की विकेट को औसत रेटिंग दी जिसको लेकर सवाल उठे। इस पर क्या कहेंगे?
देखिए, विराट ने जब एमसीजी में टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी का फैसला किया तो उसने भी कहा था कि विकेट थोड़ी सूखी हुई लेकिन ऊपर हल्की घास छोड़ी गई है। यह बहुत खतरनाक संयोजन होता है। अगर मैं पिच क्यूरेटर होता तो मुझे पता होता कि गर्मी का मौसम है तो घास रखता, नमी रखता, उसका ख्याल रखते हुए मैं पिच बनाता कि यह पांच दिनों तक चले।
गेंद जब सूखी विकेट पर पड़ेगी तो रुककर आएगी और नमी पर पड़ेगी तो अच्छी गति से आएगी। इसी वजह से इस पिच पर बाउंस में असमानता देखने को मिल रही है। विकेट थोड़ी मुश्किल होनी चाहिए क्योंकि इससे मजा आता है। पिच की चुनौती बनी रहनी चाहिए तभी टेस्ट क्रिकेट में मजा आएगा। टेस्ट मैच का नतीजा आने की वजह से ही इसका रोमांच बना हुआ है।
भारत के इस टेस्ट सीरीज को जीतने की कितनी संभावना है?
मेलबर्न में जब पुजारा ने शतक मारा और भारतीय टीम ने पहली पारी करीब साढ़े चार सौ रन बनाकर घोषित की तो मेरा सीना गर्व से चौड़ा हो गया। हमने बॉक्सिंग डे टेस्ट की पहली पारी में अच्छा स्कोर किया। एक क्रिकेट प्रशंसक या क्रिकेटर के तौर पर हम चाहते हैं कि हमारी टीम विदेशों में जाकर जीते। हमारे पास ऑस्ट्रेलिया को फॉलोऑन कराने का मौका था लेकिन हमने नहीं कराया और वह भी एक जीत है। हालांकि अगर हम ऑस्ट्रेलिया को फॉलोऑन कराकर पारी के अंतर से हराते तो हमारा सीना और चौड़ा होता।
चार पांच साल बाद जब हम फिर से ऑस्ट्रेलिया का दौरा करते और मेलबर्न में खेलते तो हम कहते कि विराट कोहली की कप्तानी में हमने ऑस्ट्रेलिया को यहां पारी के अंतर से हराया था। ऐसे में मेरा मानना है कि वह मौका विराट कोहली ने गंवाया है क्योंकि यह ऑस्ट्रेलिया नई टीम है, उसके बल्लेबाज रन बना नहीं पा रहे हैं, हाल के मैचों में कोई बल्लेबाज शतक नहीं लगा पाया है। विराट ने इतिहास बनाने का मौका गंवा दिया।