दिग्गज नपे, लेकिन मयंक पारिख बचे- फिर बीसीसीआइ के पदाधिकारियों तक पहुंची शिकायत
बीसीसीआइ के एक अधिकारी ने नवनियुक्त अध्यक्ष सौरव गांगुली को पत्र लिखकर मयंक पारिख के हितों के टकराव के मसले पर ध्यान देने का अनुरोध किया है।
अभिषेक त्रिपाठी, नई दिल्ली। बीसीसीआइ को सौरव गांगुली की अध्यक्षता वाली नई टीम तो मिल गई है लेकिन इस टीम के सामने अभी भी कुछ पुरानी समस्याएं मुंह खोले बैठी हैं। मुंबई क्रिकेट संघ (एमसीए) के आधिकारिक हस्ताक्षरकर्ता मयंक पारिख द्वारा छह क्लबों की मिलकियत का मुद्दा भी इनमें से एक है।
बीसीसीआइ के एक अधिकारी ने नवनियुक्त अध्यक्ष सौरव गांगुली को पत्र लिखकर मयंक पारिख के हितों के टकराव के मसले पर ध्यान देने का अनुरोध किया है। दरअसल पारिख मुंबई में छह क्लब चलाते हैं और वह मुंबई क्रिकेट संघ (एमसीए) से जुड़े हुए भी हैं जबकि नियमों के मुताबिक बोर्ड से जुड़े रहने के दौरान ना तो उनके पास वोटिंग का अधिकार है और ना ही वह किसी उपसमिति में भाग ले सकते हैं।
अधिकारी ने आरोप लगाया है कि पारिख को बीसीसीआइ में मौजूद कुछ लोगों का साथ मिल रहा है जिसकी वजह से उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। पारिख के शुभचिंतकों को यह जानने की जरूरत है कि पूर्व भारतीय कप्तान और 100 से ज्यादा टेस्ट खेल चुके दिलीप वेंगसरकर केवल एक क्लब की मिलकियत रखते हैं लेकिन उनका क्लब मुंबई की क्रिकेट के विकास में पारिख के क्लबों से ज्यादा सक्रिय भूमिका निभाता है। बहुत लोगों को लगता है कि बीसीसीआइ और एमसीए में पारिख को शह देने वालों की संख्या ज्यादा है जो हमेशा उनका बचाव करते हैं।
अधिकारी ने इस पत्र में आगे लिखा है कि कुछ ऐसे ही मामले में हैदराबाद क्रिकेट संघ में क्लब की मिलकियत रखने की वजह से दिवंगत डा. एमवी श्रीधर को इस्तीफा देना पड़ा था। इस मामले को 2017 में भी उठाया गया था। पारिख के मसले को इससे पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त प्रशासकों की समिति (सीओए) की सदस्य डायना इडुल्डी के माध्यम से बोर्ड के सामने रखने की कोशिश की गई लेकिन बीसीसीआइ की बैठकों में इस पर कोई चर्चा नहीं की गई।
बीसीसीआइ के सीईओ राहुल जौहरी और कानूनी टीम को इसकी दो लाइन की रिपोर्ट बोर्ड के आधिकारिक पेज पर साझा करने में जून 2019 तक का समय लग गया। इस देरी की वजह निश्चित ही जौहरी और कानूनी टीम से पूछी जानी चाहिए। बीसीसीआइ का संविधान साफ कहता है कि हितों के टकराव का मसला नैतिक अधिकारी या लोकपाल के पास भेजा जाना चाहिए लेकिन हैरानी की बात है कि जौहरी या कानूनी टीम ने इसे मध्य प्रदेश क्रिकेट संघ के आजीवन सदस्य संजीव गुप्ता के ईमेल लिखे जाने से पहले तक आगे नहीं बढ़ाया गया।
साथ ही अधिकारी ने हितों के टकराव के कुछ मसलों का हवाला भी दिया और बताया है कि कैसे पूर्व भारतीय कप्तान सुनील गावस्कर ने अपना पद छोड़ दिया था। अधिकारी ने इस पत्र में लिखा है कि सीओए को जानकारी मिली थी कि गावस्कर एक खेल प्रबंधन करने वाली कंपनी में साझेदार हैं लेकिन उन्होंने हितों के टकराव से बचने के लिए कंपनी से अपने शेयर हटा लिए थे। जौहरी और कानूनी टीम ने जाहिर कर दिया कि वे पारिख के मामले में उन्हें सहयोग कर रहे हैं।
भारतीय टीम प्रबंधन द्वारा ईमेल के माध्यम से पारिख के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने के बावजूद उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई बल्कि उन्हें भारत-ए के साथ रखा गया था। तब मैनेजर के खिलाफ खिलाडि़यों को हवाई यात्रा में टिकटों को लेकर, होटल में खान-पान और रहन-सहन को लेकर शिकायत दर्ज कराई गई थी। इसके बाद उस मसले को दुरुस्त करने के लिए क्रिकेट प्रबंधक अधिकारी और संचालन प्रबंधक को ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड भेजना पड़ा था।
इस पत्र में आरोप लगाया गया है कि अगर बीसीसीआइ से पारिख को शह नहीं मिली होती तो अब तक वह नहीं बच पाता और उनकी जगह कोई और होता तो वह अपनी नौकरी गंवा चुका होता। अधिकारी ने लिखा कि पारिख को बिना किसी काम किए पैसे मिल रहे हैं और 18 महीनों बाद भी अब तक उन्हें कोई काम नहीं सौंपा गया है। अब देखना दिलचस्प होगा कि गांगुली की नई टीम पारिख के मामले का निपटारा कैसे करती है।
गांगुली, सचिन तेंदुलकर और वीवीएस लक्ष्मण ने कुल मिलाकर 1300 मैच खेले हैं और 64000 से ज्यादा रन बनाए हैं लेकिन ये भी बीसीसीआइ संविधान के हिसाब से हितों के टकराव के मसले से दो-चार हुए लेकिन सीओए के नेतृत्व में काम कर रहे अधिकारियों ने इस तरह का रवैया अपनाया जैसे पारिख के छह क्लबों का मामला हितों के टकराव के अंदर नहीं आता है।