एक बार सचिन तेंदुलकर ने नहीं खेला था मैच तो गुरु आचरेकर ने जड़ा था तमाचा
रमाकांत आचरेकर ने सचिन तेंदुलकर के रूप में क्रिकेट के खेल को उसका कोहिनूर दिया।
नई दिल्ली, जेएनएन। क्रिकेट के कई नामचीन कोच हुए हैं, लेकिन रमाकांत आचरेकर सबसे अलग थे, जिन्होंने सचिन तेंदुलकर के रूप में क्रिकेट के खेल को उसका 'कोहिनूर' दिया। आचरेकर क्रिकेट कोचों की उस जमात से ताल्लुक रखते थे जो अब कम ही नजर आती है। जिसने मध्यमवर्गीय परिवारों के लड़कों को सपने देखने की हिम्मत दी और उन्हें पूरा करने का हुनर सिखाया। आधी बाजू की सूती शर्ट और सादी पतलून पहने आचरेकर देव आनंद की 'ज्वेल थीफ' मार्का कैप पहना करते थे। उन्होंने शिवाजी पार्क जिमखाना पर 14 साल के सचिन को क्रिकेट का ककहरा सिखाया।
भारत की 1983 विश्व कप जीत के बाद वह दौर था जब देश के शहर-शहर में क्रिकेट कोचिंग सेंटर की बाढ़ आ गई थी। आचरेकर में बाकी कोचों से यह फर्क था कि वह जिसे योग्य नहीं मानते थे उसे क्रिकेट की कोचिंग नहीं देते थे। सचिन और उनके बड़े भाई अजित ने कई बार बताया कि आचरेकर कैसे पेड़ के पीछे छिपकर सचिन की बल्लेबाजी देखते थे, ताकि वह खुलकर खेल सकें। क्रिकेट की किवदंतियों में शुमार वह कहानी है कि कैसे आचरेकर स्टंप के ऊपर एक रुपये का सिक्का रख देते थे और तेंदुलकर से शर्त लगाते थे कि वह बोल्ड नहीं हो, ताकि वह सिक्का उन्हें मिल सके। तेंदुलकर के पास आज भी वे सिक्के उनकी अनमोल धरोहरों के रूप में शुमार हैं।
अपने स्कूल की सीनियर टीम को एक फाइनल मैच खेलते देखते हुए तेंदुलकर ने जब एक मैच नहीं खेला तो आचरेकर ने उन्हें करारा तमाचा जड़ा था। तेंदुलकर ने कई मौकों पर आचरेकर के उन शब्दों को दोहराया है, 'तुम दर्शक दीर्घा में से ताली बजाओ, इसकी बजाय लोगों को तुम्हारा खेल देखने के लिए आना चाहिए।'तेंदुलकर ने मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम पर क्रिकेट को अलविदा कहते हुए कहा था, 'सर ने मुझसे कभी वेल प्लेड नहीं कहा, क्योंकि उनको लगता था कि मैं आत्ममुग्ध हो जाऊंगा। अब वह मुझे कह सकते हैं कि मैंने करियर में अच्छा किया, क्योंकि अब मुझे जीवन में कोई और मैच नहीं खेलना है।'