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Ind vs Eng: टीम इंडिया के खिलाफ इस रोटेशन पॉलिसी को अपनाकर इंग्लैंड कर रही है अपना नुकसान

Ind vs Eng अब यह समझ से परे नजर आता है कि जब आप विश्व टेस्ट चैंपियनशिप के फाइनल में पहुंचने के लिए सबसे अहम सीरीज खेल रहे हो तो अपने सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी को क्यों खेलने का मौका नहीं दे रहे हो।

By Sanjay SavernEdited By: Published: Sun, 28 Feb 2021 08:04 PM (IST)Updated: Sun, 28 Feb 2021 08:04 PM (IST)
Ind vs Eng: टीम इंडिया के खिलाफ इस रोटेशन पॉलिसी को अपनाकर इंग्लैंड कर रही है अपना नुकसान
इंग्लैंड टेस्ट क्रिकेट टीम के खिलाड़ी (एपी फोटो)

अभिषेक त्रिपाठी, अहमदाबाद। अभी अहमदाबाद में भारत और इंग्लैंड के बीच सीरीज का चौथा व अंतिम टेस्ट होना बाकी है। इस टेस्ट का परिणाम कुछ भी क्यों ना हो, लेकिन इतना तो तय हो चुका है कि इंग्लैंड की टीम 18 जून से लॉ‌र्ड्स में होने वाले विश्व टेस्ट चैंपियनशिप के फाइनल से बाहर हो चुकी है। इसमें कोई शक नहीं कि भारत दौरे पर भारतीय स्पिनरों ने इंग्लैंड को काफी नुकसान पहुंचाया है, लेकिन इससे ज्यादा नुकसान इंग्लैंड को पहुंचा है उसकी अपनी बनाई हुई रोटेशन पॉलिसी से। 

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पूरी दुनिया जानती है कि यदि किसी टीम को भारत में टेस्ट जीतना है तो उसे अपने सर्वश्रेष्ठ स्पिनर को अंतिम एकादश में जरूर रखना चाहिए, लेकिन शायद या तो इंग्लैंड को यह बात समझ में नहीं आती या फिर उसे अपने बाकी खिलाड़ियों पर अति आत्मविश्वास था जो उसने अहमदाबाद में खेले गए तीसरे टेस्ट मैच से पहले ही अपने सर्वश्रेष्ठ स्पिनर मोइन अली को रोटेशन पॉलिसी का हवाला देते हुए भारत दौरे पर सिर्फ एक टेस्ट मैच खिलाकर वापस इंग्लैंड भेज दिया। अहमदाबाद में मोइन के बिना खेलना इंग्लैंड को इतना भारी पड़ा कि उसे ना सिर्फ 10 विकेट से हार का सामना करना पड़ा, बल्कि वह विश्व टेस्ट चैंपियनशिप के फाइनल में पहुंचने की दौड़ से बाहर हो गया।

इंग्लैंड की टीम के भारत दौरे पर आने से पहले ही न्यूजीलैंड की टीम विश्व टेस्ट चैंपियनशिप के फाइनल में अपनी जगह पक्की कर चुकी थी। फाइनल के दूसरे स्थान के दावेदार के लिए भारत-इंग्लैंड सीरीज का परिणाम अहम मायने रखे हुए था। हालांकि, इस स्थान के लिए इंग्लैंड की टीम सबसे जोरदार दावेदार थी। इंग्लैंड को फाइनल में पहुंचने के लिए 3-0 या 3-1 से यह सीरीज जीतना जरूरी था। ऊपर से ऑस्ट्रेलिया ने दक्षिण अफ्रीका दौरे पर नहीं जाकर इंग्लैंड के लिए काम आसान ही किया था।

चेन्नई में भारत के खिलाफ पहला टेस्ट जीतने के बाद इंग्लैंड की उम्मीदों को और अधिक बल मिला था। वहीं भारत को फाइनल में पहुंचने के लिए परिणाम को 2-1 से अपने पक्ष में करना ही काफी था और भारत फिलहाल सीरीज में इसी अंतर से आगे है। भारत अगर चौथा टेस्ट ड्रॉ भी करा लेता है तो भी वह विश्व टेस्ट चैंपियनशिप के फाइनल में पहुंच जाएगा। हालांकि, ऑस्ट्रेलिया ने दक्षिण अफ्रीका नहीं जाकर अपने लिए मुश्किल जरूर खड़ी की, लेकिन यदि भारत-इंग्लैंड सीरीज ड्रॉ हो जाती है तो ऑस्ट्रेलिया की टीम बिना खेले ही फाइनल में पहुंच जाएगी।

अब यह समझ से परे नजर आता है कि जब आप विश्व टेस्ट चैंपियनशिप के फाइनल में पहुंचने के लिए सबसे अहम सीरीज खेल रहे हो तो अपने सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी को क्यों खेलने का मौका नहीं दे रहे हो। खिलाड़ी का काम मैच खेलना है और यदि सामने बहुत महत्वपूर्ण मैच है तो भी कोई खिलाड़ी तब तक खेलने से इन्कार नहीं करता जब तक कि वह गंभीर रूप से चोटिल ना हो। और सवाल यह भी उठता है कि यदि आपको अपने सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी को सबसे अहम मैच में नहीं खिलाना है तो आप उसे किसी दौरे पर ले ही क्यों जा रहे हो।

भारत आने से पहले इंग्लैंड की टीम श्रीलंका दौरे पर गई थी और वहां दो टेस्ट की सीरीज 2-0 से जीतकर भारत आई थी। हालांकि, कोरोना पॉजिटिव होने की वजह से मोइन को उस दौरे पर कोई मैच खेलने का मौका नहीं मिला और वह भारत दौरे पर पहले टेस्ट मैच में भी नहीं खेले थे। हालांकि, चेन्नई में दूसरे टेस्ट में मोइन की वापसी हुई और उन्होंने दोनों पारियों में कुल मिलाकर आठ विकेट लिए। वह उस मैच में इंग्लैंड के सबसे सफल गेंदबाज साबित हुए थे।

हालांकि, यह अलग बात है कि इसके बावजूद इंग्लैंड को उस टेस्ट में हार का मुंह देखना पड़ा था। इस मैच के बाद मोइन को रोटेशन पॉलिसी के आधार पर इंग्लैंड वापस भेज दिया गया। हो सकता था कि यदि इंग्लैंड की टीम मोइन को तीसरे टेस्ट में अंतिम एकादश में शामिल करती तो वहां मिल रही स्पिन का मोइन फायदा उठा सकते थे और उनकी मौजूदगी भारतीय बल्लेबाजों की मानसिकता पर भी असर डालती। ऐसे में मैच का परिणाम इंग्लैंड के पक्ष में भी हो सकता था। लेकिन, ऐसा लगता है कि इंग्लैंड एवं वेल्स क्रिकेट बोर्ड (ईसीबी) का मानना है कि टीम की हार या जीत से ज्यादा मायने रोटेशन पॉलिसी रखती है।

इंग्लैंड सहित अन्य टीमों के भी कई पूर्व खिलाड़ी ईसीबी की रोटेशन पॉलिसी की आलोचना कर चुके हैं। इसके बावजूद ईसीबी को इसमें कोई खामी नजर नहीं आती है। बात सिर्फ मोइन की नहीं है और भी कई खिलाड़ी हैं जो किसी मैच में अच्छा प्रदर्शन करने के बावजूद रोटेशन पॉलिसी की वजह से अगले मैच में नहीं खेल पाए। चेन्नई में पहले टेस्ट की दूसरी पारी में शानदार गेंदबाजी कर इंग्लैंड को जीत दिलाने वाले तेज गेंदबाज जेम्स एंडरसन भी रोटेशन पॉलिसी की वजह से दूसरे टेस्ट में नहीं खेल पाए थे।

रोटेशन पॉलिसी के तहत स्टुअर्ट ब्रॉड को उनकी जगह शामिल किया गया। तीसरे टेस्ट में एंडरसन की अंतिम एकादश में वापसी हुई, लेकिन स्पिन की मददगार पिच पर वह मैच में कोई विकेट नहीं ले सके। हालांकि, एंडरसन उन खिलाडि़यों में शामिल हैं जिन्होंने इस रोटेशन पॉलिसी का समर्थन किया है। लेकिन, इसकी वजह समझी जा सकती है, क्योंकि वह 38 साल के हैं और उनकी उम्र को देखते हुए उनका अब लगातार खेलना संभव नजर नहीं आता है।

एंडरसन ने इस पॉलिसी का बचाव करते हुए दूसरे टेस्ट से बाहर होने पर कहा था, 'आपको बड़ी तस्वीर देखनी चाहिए। विचार यह था कि अगर मैं चूक गया, तो इससे मुझे फिट होने और गुलाबी गेंद के टेस्ट के लिए आक्रमण करने का सबसे अच्छा मौका मिलेगा। मैं अच्छा और ताजा महसूस कर रहा हूं और अगर फिर से टीम में बुलाया जाता है तो मैं जाने के लिए तैयार हूं? जितना क्रिकेट हमें खेलने को मिलेगा, उसके लिए मैं इसे बड़ी तस्वीर में देख सकता हूं।'

जाहिर है कि एंडरसन खुद इस बात का मान रहे थे कि अब उनमें इतना दमखम नहीं बचा है कि वह लगातार खेल सकें और इसलिए उन्होंने तरोताजा होने की बात कही थी। जोस बटलर भी पहला टेस्ट खेलने के बाद रोटेशन पॉलिसी की वजह से स्वदेश लौट गए थे। बटलर, एंडरसन और मोइन से भी ज्यादा अजीब उदाहरण तो क्रिस वोक्स का नजर आता है।

इंग्लैंड के ऑलराउंडर वोक्स को दक्षिण अफ्रीका, श्रीलंका और भारत के खिलाफ सीरीज के लिए टीम में चुना गया था, लेकिन खेलने का मौका एक बार भी नहीं मिला। उन्हें बिना खेले ही रोटेशन पॉलिसी का हवाला देकर स्वदेश भेज दिया गया। हालांकि, दक्षिण अफ्रीका के डेल स्टेन और वेस्टइंडीज के कीरोन पोलार्ड उन खिलाड़ियों में शामिल हैं, जो ईसीबी की रोटेशन पॉलिसी का समर्थन कर रहे हैं। उनका मानना है कि इससे इंग्लैंड को नई पौध तैयार करने का मौका मिलेगा। लेकिन, इसमें कोई दो राय नहीं कि फिलहाल तो यह रोटेशन पॉलिसी इंग्लैंड को नुकसान पहुंचाती नजर आ रही है। 


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