मां ने लगा दी थी क्रिकेट खेलने पर पाबंदी फिर भी बने क्रिकेटर
नमन ओझा बचपन में मैदान में कपड़े बहुत ज्यादा गंदे करते थे, जिसके चलते मम्मी ने उनके क्रिकेट खेलने पर प्रतिबंध लगा दिया था।
इंदौर, किरण वाईकर। मध्य प्रदेश के नमन ओझा ने शुक्रवार को कोलंबो में श्रीलंका के खिलाफ टेस्ट पदार्पण किया। लेकिन बचपन में मैदान में कपड़े बहुत ज्यादा गंदे करने के कारण घरवालों ने उनके क्रिकेट खेलने पर पाबंदी लगा दी थी। यदि अरूण सिंह सर ने हस्तक्षेप नहीं किया होता तो, हो सकता है कि वे फिर शायद कभी क्रिकेट नहीं खेल पाते।
मम्मी ने लगा दी थी क्रिकेट खेलने पर पाबंदी
नमन बचपन में रतलाम में पोलो ग्राउंड मैदान में टेनिस बॉल से क्रिकेट खेला करते थे। मैदान में डाइव लगाने की आदत के कारण उनके कपड़े रोज बहुत ज्यादा गंदे हो जाया करते थे, जिसके चलते उनकी मम्मी ने क्रिकेट खेलने पर रोक लगा दी थी। चूंकि अरूण सिंह उनकी प्रतिभा से वाकिफ हो चुके थे, इसलिए उन्होंने नमन के माता-पिता को राजी कर उनकी क्रिकेट प्रैक्टिस शुरु करवाई।
रतलाम से इंदौर का सफर
नमन ने रतलाम से अरूण सिंह के मार्गदर्शन में अपने क्रिकेट करियर की शुरुआत की। 10वीं तक की पढ़ाई के बाद वे इंदौर आ गए और सीसीआई में दिग्गज कोच संजय जगदाले के मार्गदर्शन में क्रिकेट की बारीकियां सीखना शुरू किया। इसी दौरान समय-समय पर उन्हें नितिन कुलकर्णी और मुकेश साहनी का मार्गदर्शन मिला।
विशेषज्ञों की सलाह से निखरा खेल
नमन की तरक्की में बड़ा हाथ नियमित कोचेस का है, लेकिन स्पेशलाइज्ड ट्रेनिंग के महत्व को भी नहीं नकारा जा सकता है। उनकी विकेटकीपिंग की खामियों को जहां पूर्व भारतीय विकेटकीपर किरण मोरे ने दूर किया तो बल्लेबाजी को मजबूत बनाया प्रवीण आमरे ने। इसके अलावा राहुल द्रविड़ के प्रेरणादायी मार्गदर्शन ने समय-समय पर उनके जोश और जुनून को बनाए रखा।
गीले पिच पर प्रेक्टिस
कोचेस के मुताबिक नमन कभी भी पिच की स्थिति को लेकर शिकायत नहीं करते हैं। उनकी तैयारी एकदम अलग टाइप की होती है। वे सुबह 7 बजे गीले पिच पर बल्लेबाजी का अभ्यास करते हैं। चूंकि उस वक्त पिच पर नमी बहुत ज्यादा होती है, इसलिए तेज गेंदबाजों को बहुत मिलती है। इस तरह अपने लिए कठिन परिस्थितियों में बल्लेबाजी के अभ्यास की वजह से ही वे ऑस्ट्रेलियाई पिचों पर खूब रन बना पाए।
उन्मुक्त बल्लेबाजी
नमन को अपनी आक्रामक और उन्मुक्त बल्लेबाजी के लिए जाना जाता है। उनमें यह गुण शुरू से ही था, जिसे कुशल प्रशिक्षकों की देखरेख में तराशा गया। वैसे समय बढ़ने के साथ-साथ वे अपने खेल में लचीचापन लाए और जरूरत पड़ने पर वे विकेट पर किस तरह टिक सकते हैं इसका नमूना उन्होंने ऑस्ट्रेलिया ‘ए’ के खिलाफ दिया था।
लक्ष्य से भटके नहीं
नमन क्रिकेट की वजह से अल्पायु में ही रतलाम से इंदौर आ गए थे। इसके चलते उनके माता-पिता वंदना और विनय को काफी बलिदान करना पड़ा। कई वर्षों तक नमन इंदौर में अकेले रहे और शनिवार-रविवार को उनकी मां इंदौर आकर उनके लिए सप्ताह भर की व्यवस्था कर देती थी। अकेले रहने के बावजूद कभी नमन ने अपने ध्यान को क्रिकेट से भटकने नहीं दिया और इसी के परिणाम स्वरूप वे इस मुकाम तक पहुंच पाए।
साभार : नई दुनिया