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DDCA चुनाव से भाग रहे निदेशक, BCCI से की एडहॉक कमेटी बनाने की सिफारिश

DDCA के निदेशक चाहते हैं कि संघ के चुनाव नहीं हों बल्कि एडहॉक कमेटी अगले सत्र तक के लिए बना दी जाए।

By Vikash GaurEdited By: Published: Wed, 27 May 2020 08:14 AM (IST)Updated: Wed, 27 May 2020 08:14 AM (IST)
DDCA चुनाव से भाग रहे निदेशक, BCCI से की एडहॉक कमेटी बनाने की सिफारिश
DDCA चुनाव से भाग रहे निदेशक, BCCI से की एडहॉक कमेटी बनाने की सिफारिश

नई दिल्ली, अभिषेक त्रिपाठी। दूसरे गुट पर दिल्ली एवं जिला क्रिकेट संघ (डीडीसीए) में एडहॉक कमेटी बनवाने का आरोप लगाने वाले निलंबित संयुक्त सचिव राजन मनचंदा और निदेशक आलोक मित्तल, अपूर्व जैन, नितिन गुप्ता, रेनू खन्ना व सुधीर अग्रवाल ने अपनी सर्वोच्च संस्था भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआइ) को 23 मई को पत्र लिखकर कहा है कि वह राज्य संघ में अगली वार्षिक आम सभा या चुनाव तक एडहॉक कमेटी बनाने सहित किसी भी निर्णय को मानने को तैयार हैं।

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मालूम हो कि हाल ही में डीडीसीए के लोकपाल दीपक वर्मा ने अध्यक्ष और कोषाध्यक्ष के साथ दो निदेशक पद पर चुनाव कराने का आदेश दिया था। उन्होंने डीडीसीए के चुनाव अधिकारी और पूर्व चुनाव आयुक्त नवीन चावला को कहा था कि अगर यह चुनाव 30 जून के बाद होते हैं तो फिर चार निदेशकों के चुनाव कराए जाएं क्योंकि तब तक दो और निदेशकों का कार्यकाल खत्म हो चुका होगा।

राजन, आलोक मित्तल, अपूर्व, नितिन, रेनू और सुधीर ने बीसीसीआइ को लिखा कि शीर्ष परिषद के 12 सदस्य दो जुलाई 2018 को आम चुनाव में चुने गए थे। इससे अलग चार नामित निदेशक भी चुने गए थे। ऐसे में डीडीसीए में 16 निदेशक हो जाते हैं। 29 नवंबर 2019 को डीडीसीए अध्यक्ष रजत शर्मा ने इस्तीफा दे दिया था। ठीक समय पर उसके चुनाव होने चाहिए।

इस साल दो फरवरी को लोकपाल दीपक वर्मा ने कोषाध्यक्ष ओपी शर्मा को बर्खास्त कर दिया था। उनके इस फैसले पर पहले से ही सवाल खड़े हो रहे हैं। 19 फरवरी को शीर्ष परिषद के तीन नामित निदेशकों का कार्यकाल खत्म हो गया है। 29 फरवरी को ट्रायल कोर्ट ने डीडीसीए के उपाध्यक्ष राकेश बंसल और सचिव विनोद तिहारा को निलंबित कर दिया था। ऐसे में अब आठ बोर्ड निदेशक बचे हैं, जबकि एक सीएसी के नामित निदेशक हैं। शीर्ष परिषद में अभी नौ ही सदस्य हैं।

सदस्यों ने कहा कि यह सारा मामला डीडीसीए में कानूनी प्रक्रिया में किए जा रहे खर्च से शुरू हुआ है। जो पैसा क्रिकेटरों पर खर्च होना चाहिए था, वह वकीलों और लोकपाल पर खर्च हो रहा है। अभी तक शीर्ष परिषद ने लोकपाल की फीस देने के लिए किसी करार पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। ना ही किसी कानूनी कमेटी के खर्चो के लिए कोई हामी भरी गई है। इसके बारे में जब भारद्वाज को कहा गया तो उन्होंने कानूनी प्रक्रिया में सभी को फंसाने की धमकी दी।

वहीं डीडीसीए के एक अधिकारी ने कहा कि यह तो एडहॉक कमेटी की मांग करना तो राज्य संघ के साथ विश्वासघात है। जब लोकपाल चुनाव की घोषणा कर चुके हैं तो ये लोग उससे डर क्यों रहे हैं। इन्हें उन पदों पर अपने गुट के सदस्यों के हारने का डर सता रहा है। इन्होंने पत्र में सबकुछ लिखा लेकिन यह क्यों नहीं बताया कि राजन मनचंदा को पिछली एजीएम में लड़ाई के कारण लोकपाल निलंबित कर चुके हैं।


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