पशुओं के बाड़े में लड़कों संग करती थीं क्रिकेट का अभ्यास, बनी T20 यूपी टीम की कप्तान
चुनौतियों ने रास्ता रोकने की कोशिश की लेकिन प्रतिभा के ‘बाउंसर’ से उसने हर मुश्किल को ‘क्लीन बोल्ड’ कर दिया।
अश्वनी त्रिपाठी, सहारनपुर। मेधा के अंकुरण के लिए संसाधनों का होना आवश्यक नहीं..। यदि मन में विश्वास और इरादों में दृढ़ता हो तो चुनौतियों का फलक भी झुकने लगता है। उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के अति पिछड़े गांव झबीरण की बिटिया नीशु चौधरी ने इसे साबित भी किया है। उसने संसाधनों की कमी के बीच क्रिकेट के गुर सीखे, यहां तक कि पशुओं के बाड़े में लड़कों के साथ क्रिकेट का अभ्यास किया। चुनौतियों ने रास्ता रोकने की कोशिश की, लेकिन प्रतिभा के ‘बाउंसर’ से उसने हर मुश्किल को ‘क्लीन बोल्ड’ कर दिया। नेतृत्व क्षमता के कारण आलराउंडर नीशू को उत्तर प्रदेश की सीनियर महिला टी-20 क्रिकेट टीम का कप्तान बनाया गया है।
पशुओं के बाड़े में क्रिकेट खेलना किया प्रारंभ
सहारनपुर के सरसावा कस्बे से लगा हुआ गांव है झबीरण। यहां के किसान हरवीर सिंह की पुत्री नीशु ने अपनी रुचि के मुताबिक बचपन में ही क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया। उन दिनों गांव में बेटियों का क्रिकेट खेलना किसी भी अजूबे से कम नहीं था। इसलिये नीशु चौधरी ने नेट लगाकर पशुओं के बाड़े में लड़कों संग क्रिकेट खेलना प्रारंभ किया। उनके चाचा सचिन कालियर ने प्रशिक्षण में उनकी मदद की। कुछ महीनों में गेंद और बल्ला नीशु के इशारे समझने लगे। वर्ष 2007 में शीलू की प्रतिभा के कारण उनका चयन अंडर 19 महिला क्रिकेट टीम में हो गया।
नीशु की मार्गदर्शक शिक्षिका राज सिंह विशेष योगदान
शीलू के प्रशिक्षक सचिन कालियर के अनुसार अपने प्रदर्शन के बलबूते शीलू अंडर 19-मध्य भारत की टीम का हिस्सा बन गईं। सन् 2010 में नीशु का चयन यूपी की सीनियर टीम में हुआ। सन् 2011 में नीशु इंडियन चैलेंजर की टीम इंडिया रेड का हिस्सा बनीं। सन् 2018 में इनका चयन इंडियन चैलेंजर की टीम इंडिया ग्रीन में हुआ। सन् 2018 में ही टीम इंडिया ए में चयनित होकर आस्ट्रेलिया की टीम के साथ अभ्यास मैच खेलने का अवसर मिला। हाल ही में इन्हें यूपी की सीनियर महिला टी-20 क्रिकेट टीम का कप्तान चुना गया। नीशु की सफलता में इनकी माता सविता सिंह तथा इनकी मार्गदर्शक शिक्षिका राज सिंह विशेष योगदान है। वर्तमान में नीशु भारतीय रेलवे में कार्यरत हैं, तथा कानपुर में तैनात हैं।
आसान नहीं था यह मुकाम
नीशु के चाचा एवं प्रशिक्षक सचिन कालियर बताते हैं कि निशु को इस मुकाम तक पहुंचाना आसान नहीं था। गांव में इन बेटियों को क्रिकेट सिखाने की कोई व्यवस्था नहीं थी, तब गांव में ही हमने पिच बनाने का फैसला लिया, नेट खरीदकर लाए, इसमें प्रशिक्षण प्रारंभ कराया। पिच बनाने के लिये गांव में ही सीमेंट का रोलर तैयार किया, फील्ड के चारों तरफ लकड़ी की पट्टियों से मैदान की घेराबंदी की, ताकि गेंद किसी के लग न सके। अपने पैसों और संसाधनों से निशु यहां तक पहुंची। आज वह जो कुछ भी है, अपनी योग्यता के बलबूते है।
फख्र से चौड़ा है सीना
नीशु के किसान पिता हरवीर सिंह बेटी पर गर्व जताकर कहते हैं कि उनके गांव के आसपास भी क्रिकेट की कोई अकादमी नहीं थी। लड़कियों का क्रिकेट खेलना तो कोई सपने में नहीं सोच सकता था, तब उनकी बेटी बाड़े में लड़कों संग क्रिकेट खेलना शुरू किया, और आगे बढी, आज वह यूपी की मुख्य टीम की कप्तान है, यह देख उनका सीना फख्र से चौड़ा हो जाता है।