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सौरव गांगुली के कार्यकाल को बढ़ाने की तैयारी में BCCI, बदले जाएंगे बोर्ड के नियम

BCCI सौरव गांगुली के कार्यकाल को बढ़ाने की तैयारी में है। गांगुली फिलहाल भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष हैं।

By Vikash GaurEdited By: Published: Tue, 26 Nov 2019 08:57 AM (IST)Updated: Tue, 26 Nov 2019 08:57 AM (IST)
सौरव गांगुली के कार्यकाल को बढ़ाने की तैयारी में BCCI, बदले जाएंगे बोर्ड के नियम
सौरव गांगुली के कार्यकाल को बढ़ाने की तैयारी में BCCI, बदले जाएंगे बोर्ड के नियम

नई दिल्ली, जागरण स्पेशल। भारत में हुए पहले डे-नाइट टेस्ट मैच के सफल आयोजन का बहुत बड़ा श्रेय भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआइ) के नवनियुक्त अध्यक्ष सौरव गांगुली को जाता है। गांगुली ने 23 अक्टूबर को बीसीसीआइ के 39वें अध्यक्ष के रूप में कमान संभाली थी। गांगुली का इस पद पर कार्यकाल नौ महीने के लिए है, लेकिन उन्होंने कुछ ही दिनों में ये साबित कर दिया है कि वे काफी अच्छी सोच भारतीय क्रिकेट को ऊपर ले जाने के लिए रखते हैं।

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सौरव गांगुली ने करीब एक महीने के अपने कार्यकाल के दौरान ही बांग्लादेश क्रिकेट बोर्ड और भारतीय कप्तान विराट कोहली को ना सिर्फ गुलाबी गेंद से टेस्ट मैच खेलने के लिए मनाया, बल्कि कोलकाता के ईडन गार्डस की मेजबानी में इसका भव्य आयोजन भी करवाया। ऐसे में अब इस बात पर चर्चा शुरू हो गई है कि जब गांगुली के पास बतौर खिलाड़ी, कप्तान और प्रशासक के रूप में अपार अनुभव है तो बीसीसीआई उसका फायदा सिर्फ नौ महीने ही क्यों उठाए।

गांगुली या उनके जैसे अनुभवी प्रशासकों का फायदा लंबे समय तक लेने के लिए कूलिंग ऑफ पीरियड (दो कार्यकाल के बाद विश्राम का समय) के नियम को बदलने पर विचार किया जाए। गांगुली की अगुआई में वर्तमान पदाधिकारियों ने पिछले महीने ही पदभार संभाला था जिससे सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त प्रशासकों की समिति (सीओए) का 33 महीने का कार्यकाल समाप्त हो गया था।

गांगुली के अध्यक्ष बनने के बाद बीसीसीआई की पहली वार्षिक आम बैठक (एजीएम) एक दिसंबर को होनी है। लेकिन, उससे पहले बीसीसीआइ कोषाध्यक्ष अरण धूमल ने सोमवार को कहा कि आगामी एजीएम में पदाधिकारियों के 70 साल की उम्र सीमा को बदलने के बारे में विचार नहीं किया जाएगा, लेकिन कूलिंग ऑफ पीरियड के नियम को बदलने पर विचार किया जाएगा, क्योंकि इससे अधिकारियों के अनुभव का सही फायदा होगा।

एजीएम के लिए जारी कार्यसूची में बोर्ड ने मौजूदा संविधान में महत्वपूर्ण बदलाव करने का प्रस्ताव दिया है, जिससे सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त लोढ़ा समिति की सिफारिशों पर आधारित सुधारों पर असर पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनुमोदित नए कानून के मुताबिक बीसीसीआइ या राज्य संघों में तीन साल के कार्यकाल को दो बार पूरा करने वाले पदाधिकारी को तीन साल तक 'कूलिंग ऑफ पीरियड' में रहना होगा। बीसीसीआई के नए पदाधिकारी चाहते हैं कि 'कूलिंग ऑफ पीरियड' का नियम उन पर लागू हो, जिन्होंने बोर्ड या राज्य संघ में तीन-तीन साल के दो कार्यकाल पूरे किए हैं, यानी बोर्ड और राज्य संघ के कार्यकाल को एक साथ नहीं जोड़ा जाना चाहिए।

धूमल ने कहा, "हमने उम्र की सीमा में कोई बदलाव नहीं किया है। उसे पहले की तरह रहने दिया है। कूलिंग ऑफ पीरियड के मामले में हमारा मानना यह है कि अगर किसी ने राज्य संघ में काम का अनुभव हासिल किया है तो उस अनुभव का फायदा खेल के हित में होना चाहिए। अगर वह बीसीसीआई के लिए योगदान कर सकता है तो उसे ऐसा करना चाहिए। राज्य संघ में दो कार्यकाल पूरा करने के बाद अगर किसी का कूलिंग ऑफ पीरियड 67 वषर्ष की उम्र में शुरू होता है तो इस अवधि के खत्म होने तक वह 70 साल का हो जाएगा और बीसीसीआई के लिए कोई योगदान नहीं कर सकेगा।"

बीसीसीआइ चाहता है कि अध्यक्ष और सचिव को कूलिंग ऑफ पीरियड से पहले लगातार दो कार्यकाल, जबकि कोषषाध्यक्ष और अन्य पदाधिकारियों को तीन कार्यकाल मिलने चाहिए। उन्होंने कहा, "आप ने पिछले महीने बीसीसीआई के चुनावों में देखा होगा। निर्वाचन नामावली में शामिल 38 सदस्यों में सिर्फ चार या पांच के पास इससे पूर्व किसी बैठक में शामिल होने का अनुभव था। ऐसे में किसी ने अगर राज्य संघ में अनुभव हासिल किया है तो उस अनुभव का लाभ बीसीसीआई को मिलना चाहिए। आपने (लोढ़ा समिति के सुधारों के मुताबिक) एक चाल में कई राज्यों में सभी पदाधिकारियों को अयोग्य घोषिषत कर दिया।"

धूमल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी लोढ़ा समिति की कुछ सिफारिशों में छूट दी है जिसमें एक राज्य, एक वोट शामिल है। उन्होंने कहा, "हम एजीएम में पारित हुए सभी संशोधनों को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष रखेंगे। कुछ चीजों में हम व्यावहारिक कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं जिसके बारे में उन्हें अवगत कराएंगे। अगर न्यायालय हमारे संशोधनों से सहमत होता है तो हम उसे लागू करेंगे।" 

धूमल से जब पूछा गया कि अगर संशोधनों को मंजूरी मिल जाती है तो क्या लोढ़ा सुधार से समझौता किया जाएगा? तो उन्होंने कहा, "कई सिफारिशों को सुप्रीम कोर्ट ने खुद ही हटा दिया। वे समझ रहे थे कि एक राज्य एक वोट के संबंध में तकनीकी कठिनाइयां हैं। हमारे पास अधिकतर सिफारिशों को लेकर कोई समस्या नहीं है, लेकिन कुछ के साथ तकनीकी दिक्कतें हैं।"


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