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सुनील गावस्कर की बात जिसे मुश्ताक अली करते थे पसंद, युवाओं में नहीं वो बेखौफ अंदाज

जुलाई 10 2022 को सनी उर्फ लिटिल मास्टर 73 वर्ष के हो रहे हैं। गावस्कर के अंदर तेज गेंदबाजों का सामना करने को लेकर किसी तरह का कोई डर नहीं था। उनको अपनी बल्लेबाजी पर पूरा भरोसा था इसी वजह से उन्होंने दिग्गजों का सामना किया।

By Viplove KumarEdited By: Published: Wed, 06 Jul 2022 06:34 PM (IST)Updated: Wed, 06 Jul 2022 06:34 PM (IST)
सुनील गावस्कर की बात जिसे मुश्ताक अली करते थे पसंद, युवाओं में नहीं वो बेखौफ अंदाज
पूर्व भारतीय कप्तान सुनील गावस्कर (फोटो ट्विटर पेज)

नवीन जैन। पद्मश्री क्रिकेटर इन्दौर निवासी स्वर्गीय कैप्टन मुश्ताक अली साहब ने एक बार मुझसे इंटरव्यू देते हुए पूछा था कि आजकल के बॉयज हेलमेट ऊर्फ़ कनटोप सिर पर क्यों लगाते है? जवाब में मैंने कहा सुरक्षा कवच के रूप में ही तो इस्तेमाल किया जाता है। मुश्ताक साहब ने हंसते हुए पूछा सनी ऊर्फ़ सुनील गावस्कर तो कभी हेलमेट नहीं लगाता। उसे अपनी जान प्यारी नही है? वो अपने किताबी क्रिकेट के ज्ञान और हौसले की वजह से दुनिया के तमाम तूफानी गेंदबाजों की बॉल्स को रास्ता दिखाता है।

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कहने का मतलब सुनील गावस्कर का होना यानी आत्मविश्वास और रिस्क लेने से भरपूर खिलाड़ी का होना है।जुलाई 10, 2022 को सनी उर्फ लिटिल मास्टर 73 वर्ष के हो रहे हैं। जब वे 1971 में अजीत वाडेकर की कैप्टनशिप में वेस्ट इंडीज गए थे, तब मीडिया में यह खबर भी आई थी, कि वाडेकर उनसे नई गेंद से कुछ शुरुआती ओवर भी फिंकवा सकते हैं। 

आबिद अली ,एकनाथ सोलकर और डी गोविन्दराज से औपचारिकता पूरी करवा ली जाती थी। भारतीय टीम किसी विदेशी टीम को उसी की धरती पर पहली बार फ़तेह करके आई थी ,तो उस पूरी पटकथा के सफ़ल लेखक जावेद अख़्तर और सलीम खान की सफल जोड़ी की तरह सुनील गावस्कर,और दीलिप सरदेसाई माने गए थे ,लेकिन एक और नाम बताया जाता रहा ,सलीम दुर्रानी का। दुरानी साहब ने इस दौरे में अपनी लगातार दो तेज स्पिन गेंदों से महान क्लाइव लॉयड और फिर दूसरी ही गेंद में सर गेरी सोबर्स के विकेट चटका कर मैच का भविष्य ही बदल दिया था। इस सफलता से उपजी खुशी के मारे सीधे सादे कहे जाने वाले अफगानिस्तान में पैदा हुए सलीम दुर्रानी गेंदबाजी छोर पर देर तक नाचते रहे। फिर स्लिप में खड़े सुनील गावस्कर ने उनसे कहा, अंकल ,जश्न पूरा हो गया हो तो मैच को आगे बढ़ने दें।

सनी के आंकड़े हैं जैसे उन्होंने 125 टेस्ट मैचेस में पहली बार 10122 रनों का एवरेस्ट खड़ा किया । वन डे मैचेस में 3092 बनाए । पहली बार जब कपिल देव के नेतृत्व वाली टीम ने 1983 में वर्ल्ड कप जीता, तो उस टोली में सनी भी थे। खुशी का ऐसा माहौल बना कि लोग इंडियन प्लेयर्स के जूते ,बैट ,ग्लवज़ ,स्टम्स ,बेल्स तक ले भागे। इस जलसे में सनी और कुछ अन्य खिलाड़ी ऐसे रमे ,कि भूखे ही सोना पड़ा ,क्योंकि तब तक उक्त शहर के सभी रेस्त्रां बंद हो चुके थे।सनी का पसंदीदा स्ट्रोक स्ट्रेट ड्राइव रहा ,लेकिन उनके पुल ,और हुक भी फिल्डर्स को कम से कम मौका देते थे। वे अपनी पारी की जमावट वैसे ही किया करते थे जैसे दुनिया की सबसे अच्छी बुनकर मानी जाने वाली चिड़िया ,गोरैया अपना घोसला बनाती है।

सनी का सैकडा इसलिए भी लगभग तय रहता था ,कि वे कभी नाइटिन नर्वसनेस का शिकार नहीं हुए।उनमें इतना आत्म संयम रहा कि दर्शकों ,और कमेंटेटर्स की उनके 90 रनों पर पहुंचने के बाद दिलों की धड़कन तेज हो जाती थी ,लेकिन सनी तो स्टेडियम में लगे स्कोर बोर्ड की तरफ़ देखना ही बंद कर देते थे। कई बार जब वे एक रन ऊर्फ़ स्नीक चुराते तब स्टेंडिंग ओवेशन से उन्हें पता चलता चलो आज का पहला किला जीत लिया। सनी को आक्रामक बल्लेबाजी अक्सर पसंद नहीं रही। ये काम उनके साथ आए सलामी बल्लेबाज स्व. चेतन चौहान, भारत वंशी लंदन निवासी फारुख इंजीनियर अच्छे से कर लेते थे।

स्व. रामनाथ पारकर में काफी कुछ संभावनाएं दिखाई दी थीं ,मग़र असमय उनका निधन हो गया। आज सोच के हैरत होती है ,कि सनी के ज़माने में माइकल होल्डिंग ,डेनिस लिली ,थॉमसन जैसे तेज बॉलर हुआ करते थे ,जिनकी स्पीड से ज़्यादा डरावनी उनकी बॉडी लैंग्वेज होती थी ,लेकिन सनी एक ही फ्लिक में उनके सारे गुस्से या इरादों पर पानी फेर दिया कर देते थे।कभी कभी यह भी हुआ ,कि हवा ,रोशनी या आवाज़ से भी कदाचित तेज गति गेंद से सुनील गावस्कर का बल्ला या हाथ से छूटकर गली या स्लिप फिंक जाता। ये भी होता ,कि बॉल को अटेंड करने के लिए फ्रंट फुट पर खड़े सनी का बेट बेक फुट के भी पीछे चला जाता, लेकिन यह भी लगभग तय रहता था , कि अगली एक दो गेंदों में चौके से बॉलर की रसीद सनी काट ही देंगे।

पाकिस्तान की टीम ,तो क्रिकेट के मैदान को भी भारत के खिलाफ जंग का मैदान बना देने के लिए बदनाम रही। अक्सर सुनील गावस्कर के लिए फिल्डर चीखते ,सिर फोड़ दे रे इसका । सचिन तेंदुलकर का स्वागत इन शब्दों में होता , आज तो स्ट्रैचर पर सीधे हॉस्पिटल जाओगे। पाकिस्तान की मूल दिक्कतें बड़ी नैसर्गिक हैं । उनमें से एक यह भी एक गरजने वाले बादल अक्सर बरसते नहीं। और ,गुस्से में आए सनकियों का जवाब हंसकर या अपने काम की सफलता से दिया जाता है ।इसीलिए ,आगे के सालों में सुनील गावस्कर ,और सचिन तेंदुलकर पाकिस्तानी अवाम के दिलों पर लता मंगेशकर की तरह ही राज करने लगे।

इस पड़ोसी मुल्क की आतंकी हरकतों के चलते सालों तक भारत ने उससे क्रिकेट रिश्ते तोड़ लिए।कुछ सालों के बाद सुनील गावस्कर भारत सरकार की क्रिकेट डिप्लोमेसी के तहत टीम लेकर पाकिस्तान गए। मैचेस ,तो अच्छे से हुए ,मग़र पाकिस्तान के हुक्मरान हरदम कोई न कोई नया फच्चर फंसाते रहने को आज तक अभिशप्त हैं। क्रिकेट को भद्र ,सुसंस्कृत ,और सभ्य लोगों का खेल माना जाता रहा । इसके चलते फिरते उदाहरण सुनील गावस्कर रहे हैं। हां ,एक बार पाकिस्तान में ही उनके अंपायर से वे इतने गुस्साए थे ,कि जैसे तैसे बात सम्हाली गई । कोलकाता टेस्ट में धीमे खेलने पर उनपर अंडे फल और जूट चप्पल फेंके गए।

सुनील गावस्कर ने इस अपमान का जवाब सिर्फ़ यह कहकर दिया , कि अब इस शहर में दुबारा आना नहीं होगा ।यूं, सनी के प्रति पूरी दुनिया में बेहद सम्मान रहा है ।एक बार इंग्लैंड में एक मध्यम तेज गति के बॉलर ने रन लेते समय धक्का मारकर पिच पर गिरा दिया । सुनील , तो चुप रहे ,लेकिन दुनिया भर के मीडिया ने उक्त बॉलर की चमड़ी उधेड़कर रख दी। इंग्लैंड के दौरे में एक बार जब उन्होंने सेंचुरी पूरी कर ली ,तो एक बिकनी धारी युवती भागकर उनसे गलबहियां करने वाली थीं ,कि सनी ,ने तो हाथ से पूरा मुंह झुककर छिपा लिया ,मगर इस घटना का ज़िक्र ,और फोटो खूब वायरल हुए ।सुनील कमाल के हाजिर जवाब भी रहे हैं।

किसी पत्रकार ने पूछा, आपका दस हज़ार रनों का रेकॉर्ड ,तो टूट गया ? अब ? हांं ,भई ,तो क्या हुआ ? एवरेस्ट को सबसे पहले तेनसिंग नोरगे ,और एडमंड हिलेरी ने फ़तेह किया था। उसके बाद तो युवतियां तक वहाँ पहुँच गई ,लेकिन सबसे पहले नाम किसका लिया जाता है ?एक पाकिस्तानी रिपोर्टर ने पूछा नूरजहां को जानते हैं आप ।नहीं जनाब , मैं तो लता मंगेशकर को जानता हूँ। सुनील गावस्कर कहते हैं रहे हैं , कि वे क्रिकेटर नहीं होते, तो अपनी बुआ की तरह डॉक्टर होते या राइटर।

उनकी ये दोनों कामनाएं यूं पूरी हुई कि वे गरीब बच्चों की सर्जरी में मदद देते हैं । साथ ही सनी डेज ,रन्स एण्ड रुइन्स ,आइडियलस आदि किताबें भी लिख चुके हैं। उनका स्तम्भ लेखन और हिंदी अंग्रेजी में आंखों देखा है सुनाना किसी आर्केस्ट्रा के सुनने जैसा आनंद देता है। उनका लिखा ,और बोला एक वाक्य प्रत्येक पीढी के काम है ,कि सफलताओं के सैकड़ों माता पिता होते हैं ,लेकिन असफलता ? दरअसल ,असफलता अनाथ होती है ,अनाथ। 


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