कपिल और मेरे बीच बोर्ड के कुछ अधिकारियों ने गलतफहमी पैदा करने की कोशिश की थी : गावस्कर
EXCLUSIVE सुनील गावस्कर ने कपिल देव के साथ अपने मतभेद पर खुलकर दैनिक जागरण को बताया।
भारतीय क्रिकेट टीम ने कपिल देव की अगुआई में 25 जून 1983 को पहली बार विश्व कप जीता था। भारत ने तब दो बार की विश्व चैंपियन वेस्टइंडीज को 43 रन से हराया था। उस दौर में वनडे क्रिकेट में एक टीम 60 ओवर खेलती थी। भारतीय टीम पहले बल्लेबाजी करते हुए 54.4 ओवर में सिर्फ 183 रन ही बना सकी, जवाब में उसने अपराजेय मानी जाने वाली कैरेबियाई टीम को 52 ओवर में सिर्फ 140 रन पर ढेर कर पहली बार विश्व कप ट्रॉफी को चूमा था। भारतीय टीम की इस विश्व विजय के आज 37 साल पूरे हो गए हैं।
विश्व कप की इस खिताबी जीत के बाद से ही न सिर्फ भारत में क्रिकेट के प्रति लोगों का नजरिया और जुनून बदला, बल्कि विश्व क्रिकेट में भी भारत की पहचान एक महाशक्ति के रूप में स्थापित होनी शुरू हुई। वैसे तो इस विश्व विजयी भारतीय टीम में मोहिंदर अमरनाथ, मदन लाल, संदीप पाटिल, दिलीप वेंगसरकर, सैयद किरमानी, रवि शास्त्री, रोजर बिन्नी जैसे खिलाड़ी थे, लेकिन इस जीत के सबसे बड़े हीरो कप्तान कपिल देव थे।
लिटिल मास्टर सुनील गावस्कर भारतीय टीम के सबसे बड़े और सबसे प्रतिष्ठित खिलाड़ी थे। 1983 की विश्व कप जीत और कपिल देव से अपने रिश्तों को लेकर सुनील गावस्कर ने अभिषेक त्रिपाठी से खुलकर बात की। खास बात यह है कि गावस्कर ने कहा कि उन्होंने इससे पहले कभी ये बातें सार्वजनिक नहीं कीं। पेश हैं इस बातचीत के प्रमुख अंश -
-1983 विश्व कप जीतने के पहले और बाद में आपने क्या अंतर देखा? क्या आप मानते हैं कि विश्व कप जीतने के कारण ही क्रिकेट भारत का सबसे पसंदीदा खेल बना?
--सिर्फ खेल का अनुसरण करने वाले ही इस सवाल का जवाब दे सकते हैं, जहां तक हमारी बात है तो हम विश्व कप जीतने के बाद अगली चुनौती के लिए आगे की तरफ देख रहे थे।
-लॉर्ड्स की बालकनी में जब आपके हाथ में ट्रॉफी थी तो क्या सोच रहे थे आप लोग?
--जब हम लॉर्ड्स की बालकनी में थे और वहां मौजूद भारतीयों के चेहरों पर खुशी देख रहे थे तो हम सोच रहे थे कि भारत में जश्न का माहौल कैसा होगा। हमने उस विश्व कप को दुनिया भर के करोड़ों भारतीयों की शुभकामनाओं और आशीर्वाद के आधार पर जीता। वह ट्रॉफी उनके लिए थी।
-कपिल से अपनी दोस्ती और संबंधों के बारे में बताएं। आपकी पहली मुलाकात कब हुई?
--मैं विनम्रता के साथ कहता हूं कि मेरे विचार से भारत ने जितने भी क्रिकेटर पैदा किए हैं, कपिल उनमें सबसे महान और मैच विजेता हैं, क्योंकि वह आपको बल्ले और गेंद दोनों से मैच जिता सकते थे। मुझे याद है कि मैं उनके खिलाफ पहली बार 1978 में चेन्नई के एमए चिदंबरम स्टेडियम में विल्स ट्रॉफी मैच में खेला था। हम ऑस्ट्रेलिया के दौरे से लौटे थे। कपिल एवं एक और प्रतिभाशाली ऑलराउंडर राजेंद्र जडेजा ने मुंबई के खिलाफ जीवंत पिच पर गेंदबाजी की शुरुआत की थी।
कपिल अच्छी आउटस्विंग गेंदबाजी कर रहे थे, लेकिन गेंदबाजी क्रीज के थोड़ी बाहर से, इसलिए मैं उनकी गेंदों को आसानी से छोड़ पा रहा था। जब मैं उनके छोर की ओर पहुंचा तो मैंने सुझाव दिया कि उन्हें स्टंप के करीब जाकर गेंदबाजी करनी चाहिए और इससे उनकी उन्हीं गेंदों को खेलना मुश्किल हो जाएगा। उनके साथी यह सोचकर उनके पास पहुंच गए कि मैं उन्हें स्लेज कर रहा हूं, लेकिन उन्होंने उन्हें सबको दूर भगा दिया। उन्होंने अगले ओवर से स्टंप्स के करीब से गेंदबाजी शुरू की और मुंबई के सभी बल्लेबाजों को परेशान किया।
यह पहला मौका था जब मैं उनसे पहली बार मिला था। हम दोनों एक दूसरे के खिलाफ खेल रहे थे लेकिन इसके बावजूद मैंने उनकी मदद की। मैंने पहले ही मैच में उनकी मदद की, यह बात उनके दिमाग में रही शायद इसीलिए उन्होंने मेरा हमेशा सम्मान किया। उसी साल बाद भारतीय टीम जब पाकिस्तान दौरे पर गई, उससे पहले हमने केन्या में एक निजी दौरा किया था जिसमें टाइगर पटौदी (कप्टन), जीआर विश्वनाथ, वेंगसरकर, पार्थ शर्मा, यजुवेंद्र सिंह आदि थे। मैंने कपिल का नाम उस दौरे के लिए सुझाया था। वह बल्ले और गेंद दोनों से बेहतरीन थे और यह हमें तब पता चला जब हमने पहली बार उन्हें बल्लेबाजी करते और दिलेरी के साथ छक्के मारते हुए देखा।
-उस समय आप दोनों के बीच कुछ गलतफहमियों की खबरें आईं। क्या सच्चाई थी उसमें?
-बोर्ड के कुछ अधिकारियों और उसी समय रिटायर हुए कुछ खिलाडि़यों ने मीडिया के साथियों के साथ हमारे बीच गलतफहमी पैदा करने की कोशिश की, लेकिन हम दोनों भारतीय क्रिकेट के लिए प्रतिबद्ध थे और हमने उसका असर अपने खेल पर नहीं पड़ने दिया।
-आपको कपिल की कौन सी चीजें अच्छी लगती थीं? उनके खेल ने भारतीय क्रिकेट को कैसे बदला?
--वह खुलकर बोलने वाले इंसान हैं। उन्होंने दिखाया कि भारतीय पिचों पर भी कोई तेज गेंदबाजी कर सकता है और विकेट ले सकता है और अगर आज भारत को तेज गेंदबाजी की संपदा मिली है तो यह सिर्फ इसलिए क्योंकि कपिल ने युवाओं को दिखाया कि वे भी ऐसा कर सकते हैं। गेंदबाजी के लंबे स्पैल के बावजूद उनका लगातार ऊर्जावान बने रहना वास्तव में असाधारण था। वह दिन के अंत में उसी गति से गेंदबाजी करते थे जैसे सुबह करते थे। हम दोनों का केवल एक ही उद्देश्य था और वह था अच्छा प्रदर्शन कर भारत की मदद करना।
हमारा नजरिया अलग हो सकता है, लेकिन टीम के लिए हमारे मनोभाव एक समान थे। जिस तरह से रोहित शर्मा, चेतेश्वर पुजारा, विराट कोहली और अंजिक्य रहाणे के दृष्टिकोण अलग हो सकते हैं, लेकिन टीम के प्रति मनोभाव एक समान हैं। ऐसा ही मेरे और कपिल के बीच था। जब हम स्लिप में एक-दूसरे के नजदीक खड़े होते थे तो हम इस बारे में बात करते थे कि बल्लेबाज को कैसे आउट किया जाए। जब वह कुछ ओवर गेंदबाजी करके आते थे तो मैंने अपने पैरों से उनके पैर दबाने का भी लुत्फ उठाया। मैं ऐसा कर सकता था क्योंकि मैं रबर के तलवे के जूते पहनता था। तब मैंने शायद ही कभी स्पाइक्स के जूते पहने हों। जब बारिश हुई होती थी या आउटफील्ड फिसलन भरी होती थी तभी मैं स्पाइक्स वाले जूते पहनता था।
-1983 विश्व कप पर अब फिल्म भी आ रही है। आज भी उस टीम के कौन-कौन से खिलाड़ी आपके संपर्क में हैं? क्या बातें होती हैं?
--हां, हम सभी उत्साहित हैं कि फिल्म 83 जल्द आए। मैं बहुत ज्यादा तकनीकी व्यक्ति नहीं हूं, लेकिन मैंने टीम का एक व्हाट्स एप ग्रुप बनाया है और सभी सदस्य उस ग्रुप में रोजना संपर्क में रहते हैं।