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सचिन तेंदुलकर की बल्लेबाजी देखने स्कूल से भाग गए थे सुरेश रैना, इंटरव्यू में खुलासा

सुरेश रैना ने इस बात का खुलासा किया है कि उन्होंने बचपन में अपने स्टार की शारजाह की पारी देखने के लिए स्कूल से छुट्टी मारी थी।

By Viplove KumarEdited By: Published: Mon, 01 Jun 2020 06:20 PM (IST)Updated: Mon, 01 Jun 2020 06:20 PM (IST)
सचिन तेंदुलकर की बल्लेबाजी देखने स्कूल से भाग गए थे सुरेश रैना, इंटरव्यू में खुलासा
सचिन तेंदुलकर की बल्लेबाजी देखने स्कूल से भाग गए थे सुरेश रैना, इंटरव्यू में खुलासा

नई दिल्ली, जेएनएन। भारतीय क्रिकेट टीम के महान बल्लेबाजों में शुमार सचिन तेंदुलकर की बल्लेबाजी का हर कोई दीवाना था। टीम इंडिया के बल्लेबाज सुरेश रैना ने इस बात का खुलासा किया है कि उन्होंने बचपन में अपने स्टार की शारजाह की पारी देखने के लिए स्कूल से छुट्टी मारी थी। रैना ने यादों को ताजा करते हुए बताया कि वो मास्टर ब्लास्टर के कितने बड़े फैन थे।

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साल 1998 सचिन के करियर के बेहतरीन सालों मे से एक रहा था। उन्होंने इस साल वनडे इंटरनेशनल में कुल 9 शतक जमाया थ। शारजाह में सचिन ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ लगातार शतकीय पारी खेली थी। रैना ने इस बात का खुलासा किया है कि उन्होंने सचिन की पारियों को देखने के लिए स्कूल से छुट्टी मारी थी।

टाइम्स ऑफ इंडिया से रैना ने बताया, "हमारे पास घर पर एक पुराना टीवी हुआ करता था, लेकिन इसमें सिर्फ एक दूरदर्शन चैनल ही आता था। हम स्कूल की आखिरी दो पीरियड को छोड़कर भागा करते थे, क्योंकि तब शारजाह में टूर्नामेंट खेला जा रहा था। सचिन पा जी उस दौर में पारी की शुरुआत किया करते थे। हम तब सिर्फ सचिन पा जी या तो फिर द्रविड़ भाई की बल्लेबाजी देखते थे। सचिन आउट होते थे और हम देखना छोड़ देते थे।"

सचिन ने इस सीरीज के आखिरी दो मुकाबलों में लगातार शतक जड़ा था। फाइनल से पहले 143 रन की पारी जिसे ‘The Desert Storm’ के नाम से जाना जाता है। यह मैच भारत हार गया था, लेकिन टीम फाइनल में पहुंची थी। इसके बाद फाइनल में उन्होंने 134 रन की बेमिसाल पारी खेली थी जिससे टीम ऑस्ट्रेलिया को हरा कोका कोला कप पर कब्जा करने में कामयाब हुई थी।

"हम तब बच्चे थे। मैं तो सिर्फ 12 साल का ही था उस समय और सातवीं क्लास में पढ़ता था। सचिन तेंदुलकर बहुत बड़ा नाम था। पा जी ने दो शतक बनाए थे। माइकल कासप्रोविज की गेंद पर छक्के जड़े थे। इन सबसे उपर टोनी ग्रेग का कमेंट्री, जो कि खुद एक बड़ा नाम था। जिस फॉर्म में पा जी थे और जैसी कमेंट्री उसमें हुई, वह काबिलेतारीफ थी। हालांकि, हमारी अंग्रेजी उतनी अच्छी नहीं थी, लेकिन उस आवाज से उत्साह बढ़ने जाता था और जोश कुछ ज्यादा ही बढ़ता था।" 


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