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दुनिया में 'काले शब्द' तक को नकारात्मकता से देखा गया : सुनील गावस्कर

सुनील गावस्कर ने कहा कि क्यों हमेशा काले शब्द के साथ नकारात्मक शब्दों को जोड़ा जाता है?

By Sanjay SavernEdited By: Published: Sat, 11 Jul 2020 10:23 PM (IST)Updated: Sat, 11 Jul 2020 10:23 PM (IST)
दुनिया में 'काले शब्द' तक को नकारात्मकता से देखा गया : सुनील गावस्कर
दुनिया में 'काले शब्द' तक को नकारात्मकता से देखा गया : सुनील गावस्कर

सुनील गावस्कर का कॉलम :

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मुझसे मेरे दोस्त ने पूछा था कि कैसा लगता है एक साल और उम्र बढ़ जाना और ऐसा कोई जवाब नहीं है जो अंतर पैदा करता हो, लेकिन कई दिन तक करता है और यह आपको प्रभावित कर सकता है। भगवान की कृपा से अभी तक ऐसा नहीं है और उम्मीद है कि आने वाले कई दिनों में भी ऐसा नहीं होगा। एक चीज तय है और वह यह है कि जन्मदिन पर तोहफे की आशा अब पहले से काफी कम हो गई है। मैं जो एक सीधी रेखा नहीं खींच सकता हूं, मुझे अपने नाती-पोतों की ओर से एक शानदार पेंटिंग मिली है और तन्मय सबनीस से एक बेहतरीन स्क्रेच भी मिला।

लेकिन सर्वश्रेष्ठ तोहफा मुझे उस दिन बाद में माइकल होल्डिंग की ओर से मिला, जिन्होंने नस्लवाद के खिलाफ एक कड़ा संदेश दिया। जिस ब्रेन वॉश की होल्डिंग ने बात की है, वह सदियों से व्यवस्थित ढंग से की गई है और इसको बराबर होने में भी इतना ही समय लग जाएगा। शायद नहीं क्योंकि यह हमारे नाती-पोतों का वक्त होगा, लेकिन जैसा कि होल्डिंग ने कह कि अगर इस ओर छोटा कदम भी उठाया जाए और इसी रफ्तार के साथ चला जाए तो बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है।

मैं नस्लवाद पर होल्डिंग के मत के लंबे समय से जानता हूं। मैदान पर उग्र विरोधी होने के बावजूद हम लंबे वर्षो से अच्छे दोस्त बन गए हैं और इसके अलावा प्रत्येक गर्मियों में लंदन में साथ में खाना भी खाते हैं। हम क्रिकेट पर बात करते हैं लेकिन ज्यादातर जिंदगी और उसके उतार चढ़ाव पर बात करते हैं। उतार-चढ़ाव की जगह निष्पक्षता शब्द बोलना ज्यादा सही रहेग। लेकिन दोबारा जिस तरह का ब्रेन वॉश पिछले लंबे वर्षो से होता आया है।

अच्छे या बुरे को दर्शाने के लिए रंग का संदर्भ धारणा है कि अंधेरा बुरा और उजाला अच्छा है। क्यों हमेशा काले शब्द के साथ नकारात्मक शब्दों को जोड़ा जाता है? ब्लैकमेल्ड, ब्लैकबॉल्ड, ब्लैकलिस्टेड, यह तीन उदाहरण काफी हैं। मुझे लगता है कि पाठक इतने समझदार जरूर हैं कि वे कुछ शब्द ओर निकाल लेंगे, लेकिन इन शब्दों का इस्तेमाल मैंने सिर्फ इसीलिए किया क्योंकि यहां बात ब्रेनवॉशिंग की बात चल रही है।

अपने कॉलम में मैं क्रिकेट के उदाहरण की कोशिश करता आया हूं कि कैसे हारने के बाद इंग्लैंड, ऑस्टेलिया और दक्षिण अफ्रीका की टीम में अश्वेत खिलाड़ी को टीम से बाहर कर दिया जाता है। हार के लिए अश्वेत खिलाड़ी को बलि का बकरा बनाया जाता है। ऐसा इसीलिए भी होता है क्याोंकि इन देशों की सफेद मीडिया ही ऐसी हवा बनाती है कि यह इंसान में कौशल नहीं है, साथ ही मानसिक रूप से भी इतना मजबूत नहीं है। यह काले इंसान के लिए रूढ़ीवादी धारणा है, क्योंकि श्वतों की तरह वह कसम नहीं खाता है या उनकी तरह खेलने के बाद बार में लोगों का साथी नहीं बनता है। अब क्योंकि वह इंसान अन्य श्वेतों की तरह नहीं कर रहा है तो वह मानसिक रूप से कमजोर है या कुछ और।

यही मुझे नासिर हुसैन के हालिया बयान पर लाता है, जिसमें उन्होंने कहा कि भारतीय टीम सौरव गांगुली की कप्तानी में मजबूत बनी। यानि नासिर यह कहना चाहते थे कि उससे पहले की टीम विरोधियों को गुड मॉर्निग कहती थी और उन्हें देखकर मुस्कुराती थी? देखिए यह धरणा कि अगर आप किसी के सामने अच्छे हैं तो आप कमजोर हैं। जब तक आप विरोधियों जैसा नहीं करते अप तब तक मजबूत नहीं हैं। क्या वह यह सलाह दे रहे हैं कि सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़, वीरेंद्र सहवाग, वीवीएस लक्ष्मण, अनिल कुंबले, हरभजन सिंह जैसे नाम मजबूत नहीं थे? सिर्फ इसीलिए कि वह किसी से मतलब रखे बिना अपने काम पर ध्यान देते थे? क्या इसीलिए वह कमजोर थे?

और वह पिछली सदी के आठवें और नौवें दशक की टीमों के बारे में कितना जानते हैं? जो घर ही नहीं विदेशी धरती पर भी जीत दर्ज करती थीं। हां, गांगुली एक शीर्ष कप्तान हैं जो भारतीय क्रिकेट को नए शिखर पर लेकर गए, लेकिन यह कहना कि अन्य टीम मजबूत नहीं थी, बेवकूफी भरा है।

दुखद, किसी ने उन्हें तब शो पर रोका नहीं। हालांकि अब यह समय है कि जब भी कोई विशेषज्ञ अपनी राय देता है तो टीवी पर लड़के सिर्फ सिर हिलाते हैं और इस बात का विरोध नहीं करना इस धारणा को मजबूत करता है कि हम अच्छे हैं और अंत में हम मजबूत नहीं हैं।

यह भी समय है कि हमारे ऑनलाइन काम करने वाले लड़कों ने पड़ोसियों से कमेंट लेना बंद कर दिया है। जो हमारे क्रिकेटरें के प्रति बहुत कृपालु हैं और उन्हीं की काबिलियत पर सवाल उठाते हैं। अपने लिए खेलना टीम के लिए नहीं, कुछ ऐसे ही कमेंट उनके देशों में अंक पा जाते हैं और वे जानते हैं कि उन्हें भारत में भी टीवी पर आना है और मात्र नजरों में आने के लिए ऐसा करना दुख की बात है और यह सोचने पर मजबूर करत है कि क्या हम अपने ही दुश्मन हैं? जो भी एडिटर्स इस तरह के कमेंट के जगह देते हैं वे इन्हें नजरअंदाज ही करें और कभी भी इस तरह के कमेंट को अखबारों में जगह नहीं दें, जो अपने ही खिलाडि़यों की आलोचना करते हों, यह भारतीय क्रिकेट की बेहतरी के लिए अच्छा कदम होगा।


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