दोनों कृत्रिम पैरों से पर्वत लांघ रहे चित्रसेन, तीन महाद्वीपों की सबसे ऊंची चोटी पर तिरंगा फहराकर कायम किया रिकार्ड
चित्रसेन साहू ने तंजानिया में माउंट किलिमंजारो आस्ट्रेलिया में माउंट कोजीअस्को और रूस में माउंट एलब्रुस फतह कर रिकार्ड कायम किया है। यह उपलब्धि हासिल करने वाले वह देश के पहले डबल एंप्यूटी है। उन्होंने बताया कि दोनों पैर कृत्रिम होने की वजह से पर्वतारोहण में बहुत कठिनाइयां आती हैं।
वाकेश कुमार साहू, रायपुर: छत्तीसगढ़ के जिला बालोद निवासी चित्रसेन साहू के दोनों पैर कृत्रिम हैं, मगर उनका सपना दुनिया भर के पर्वतों के शिखर पर पहुंचने का है। वह अब तक तीन महाद्वीपों की सबसे ऊंची चोटी फतह पर तिरंगा फहराकर देश-दुनिया को प्लास्टिक मुक्त बनाने और दिव्यांगों को अपने पैरों पर खड़ा होने का संदेश दे चुके हैं। छत्तीसगढ़ के ब्लेड रनर, हाफ ह्यूमन रोबो के नाम से ख्यात चित्रसेन ने कहीं से प्रशिक्षण नहीं लिया है। प्रशिक्षण केंद्रों ने मना कर दिया तो हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने राज्य के ही छोटे पर्वतों पर चढऩा शुरू किया।
चित्रसेन साहू ने तंजानिया में माउंट किलिमंजारो, आस्ट्रेलिया में माउंट कोजीअस्को और रूस में माउंट एलब्रुस फतह कर रिकार्ड कायम किया है। यह उपलब्धि हासिल करने वाले वह देश के पहले डबल एंप्यूटी है। उन्होंने बताया कि दोनों पैर कृत्रिम होने की वजह से पर्वतारोहण में बहुत कठिनाइयां आती हैं।
चार जून 2014 को बिलासपुर से अपने घर बालोद जाने के लिए ट्रेन से आ रहे थे। भाटापारा स्टेशन में पानी लेने के लिए उतरे। उसी समय ट्रेन का हार्न बजा तो चढऩे के लिए दौड़ पड़े, लेकिन पैर फिसलकर ट्रेन के बीच फंस गया। उनका एक पैर काट दिया गया। फिर 24 दिन बाद इंफेक्शन के कारण दूसरा पैर भी काटना पड़ा। वह अभी शासकीय नौकरी में हैं।
मिलिए, मध्यप्रदेश के 'स्टीफन हाकिंग', सुबोध जोशी से
ईश्वर शर्मा, इंदौर/उज्जैन! महान विज्ञानी स्टीफन हाकिंग की कहानी हम सबने सुनी है कि उन्होंने पूरा शरीर नाकाम होने के बावजूद दिमाग की ताकत से ब्रह्मांड के रहस्य सुलझाने के प्रयास किए। मध्य प्रदेश के उज्जैन निवासी सुबोध जोशी भी ऐसे ही शख्स हैं, जिनका सिर्फ दिमाग और दाएं हाथ का अंगूठा काम करता है, बाकी शरीर निस्तेज है। मांसपेशियों को शिथिल कर नाकाम कर देने वाली मस्क्युलर डिस्ट्राफी बीमारी से पीडि़त जोशी ने भी अपने दिमाग की ताकत का सकारात्मक उपयोग किया। उन्होंने दिमाग को इतना योग्य बनाया कि अब अमेजन जैसी दिग्गज अमेरिकी कंपनी सहित भारतीय टेक कंपनी विप्रो व अन्य 10 कंपनियां तथा अजीम प्रेमजी फाउंडेशन जैसे गैर सरकारी संगठन अपने महत्वपूर्ण दस्तावेजों के अनुवाद इनसे कराते हैं।