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हादसे के वक्त रायपुर ही क्यों बन जाता है एकमात्र सहारा!

रायपुर से लगे जिलों व कस्बों में कोई बड़ा सरकारी अस्पताल नहीं है, जो अस्पताल हैं वहां उपकरण, स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स नहीं हैं।

By Krishan KumarEdited By: Published: Wed, 19 Sep 2018 06:00 AM (IST)Updated: Wed, 19 Sep 2018 06:00 AM (IST)
हादसे के वक्त रायपुर ही क्यों बन जाता है एकमात्र सहारा!

राजधानी के चारों तरफ हाइवे पर होने वाले हादसे के वक्त घायलों को केवल रायपुर शहर ही सहारा दिखता है। भले ही वे रायपुर से 50-60 किमी दूर क्यों न हादसा हुआ हो। इसका कारण यह है कि रायपुर से लगे जिलों व कस्बों में कोई बड़ा सरकारी अस्पताल न होना। जो अस्पताल हैं वहां उपकरण, स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स नहीं हैं। कई बार अधिक खून बह जाने के कारण भी रायपुर पहुंचते-पहुंचते जान चली जाती है या घायल की हालत गंभीर हो जाती है। ऐसे में यदि एक निर्धारित दूरियों पर सर्व-सुविधायुक्त सरकारी अस्पताल खोले जाएं तो न सिर्फ जान बच सकती है, बल्कि डॉ. भीमराव आंबेडकर अस्पताल में दिनों-दिन बढ़ता मरीजों का लोड भी कम हो सकेगा। माय सिटी माय प्राइड की राउंड टेबल कांफ्रेंस में यह बात सामने आई थी कि राजधानी के आसपास, विशेष कर हाईवे पर सुविधायुक्त अस्पताल होना चाहिए।

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सर्दी-जुखाम-खांसी से लेकर छोटी-छोटी बीमारियों के लिए भी मरीज सीधे आंबेडकर अस्पताल दौड़ता है। जबकि इन बीमारियों के इलाज के लिए क्षेत्र में छोटे-छोटे क्लीनिक होने चाहिए, जहां मरीजों को हर एक इलाज मिल सके। वे संतुष्ट हों। बड़े अस्पतालों को उन जगहों पर खोलने की आवश्यकता है जहां आबादी अधिक है और हादसे अधिक होते हैं। खासकर हाइवे पर। यह कहना गलत नहीं होगा कि समूचे प्रदेश में आंबेडकर अस्पताल जैसी सुविधाएं कहीं नहीं हैं। इसलिए यह समूचे प्रदेश का रेफर सेंटर बन गया हैं। स्वास्थ्य आयुक्त आर. प्रसन्ना का कहना है कि डॉक्टर्स की भर्ती प्रक्रिया, उपकरणों की खरीदी जारी है।

108 के भरोसे ही- हाइवे या फिर धमतरी, खरोरा, बलौदाबाजार, बेमेतरा, भाटापारा, तिल्दा, राजनांदगांव को जोड़ने वाले हाईवे पर अगर हादसा होता है तो मरीजों को सीधे रायपुर आंबेडकर अस्पताल ही भेजा जाता है। इसके लिए 108 एंबुलेंस की सेवा है। यह सुविधा 2012 में शुरू हुई, इसके पहले तो यह भी विकल्प नहीं था। अब 108 देरी से पहुंचे तो मरीज का अस्पताल तक सांस चलते पहुंच पाना मुमकिन ही नहीं।

सारी सुविधा रायपुर में
राज्य सरकार ने सारी सुविधा रायपुर में ही दे दी हैं। 1121 बिस्तरों वाला आंबेडकर अस्पताल, 400 बिस्तर वाला डीकेएस सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल (उद्घाटन 27 सितंबर को), पंडरी में नव-निर्मित 100 बिस्तरों वाला अस्पताल, 100 बिस्तर का पुलिस अस्पताल है ही। भाठागांव, गुढ़ियारी में सौ-सौ बिस्तर के दो अस्पताल प्रस्तावित है। माना बस्ती में 100 बिस्तर का सिविल अस्पताल बन चुका है। आंबेडकर अस्पताल में ही डॉक्टर-स्टाफ की भारी कमी है, तो शेष अस्पतालों में मैनपॉवर का अंदाजा लगाया जा सकता है। वर्तमान में पुलिस लाइन अस्पताल में जिला अस्पताल चल रहा है, जबकि इसे नए अस्पताल में शिफ्टिंग हो ही जानी थी, लेकिन स्टाफ की कमी है। सिविल अस्पताल माना 100 बिस्तर का है लेकिन 20 बिस्तर से अधिक का नहीं हो पा रहा है। ये सुविधाएं तो ठीक हैं इनके साथ-साथ दूसरे क्षेत्रों में भी सुविधाओं का विस्तार होना जरूरी है।

क्षेत्र और उनकी दूरी
धरसींवा, 25 किमी- यह रायपुर-बिलासपुर हाइवे पर है और सबसे ज्यादा भारी वाहन इसी रोड पर चलते हैं। यहां सिर्फ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र है।
अभनपुर, 28 किमी- रायपुर-जगदलपुर मार्ग में पड़ने वाले अभनपुर में भी बड़ी संख्या में हादसे होते हैं। अभनपुर में भी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र है। सुविधा भी हैं लेकिन इन्हें और भी बढ़ने की जरूरत है। सुविधा अच्छी हो तो मरीजों को प्राथमिक उपचार के बाद रायपुर रेफर किया जा सकता है। अभी सड़क हादसे में घायल हुए मरीजों को सीधे रायपुर रेफर किए जाते हैं।


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