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राउंडटेबल कॉन्फ्रेंसः ड्रेनेज से जुड़ा है रायपुर शहर का स्वास्थ्य, तंबाकू और गुड़ाखू पर लगे प्रतिबंध

नगर निगम रायपुर के स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. बीके मिश्रा ने कहा कि पहले निगम के अस्पताल हुआ करते थे, जहां तांता लगा रहता था, लेकिन समय के साथ ये बंद होते चले गए।

By Nandlal SharmaEdited By: Published: Sun, 15 Jul 2018 06:00 AM (IST)Updated: Sun, 15 Jul 2018 06:00 AM (IST)
राउंडटेबल कॉन्फ्रेंसः ड्रेनेज से जुड़ा है रायपुर शहर का स्वास्थ्य, तंबाकू और गुड़ाखू पर लगे प्रतिबंध

राज्य गठन के बाद रायपुर राजधानी बना और देखते-देखते 18 साल में स्वास्थ्य के क्षेत्र में कई मील के पत्थर स्थापित हो गए। बड़े-बड़े अस्पताल, बड़ी-बड़ी मशीनें और सुपरस्पेशलिस्ट डॉक्टर्स ने सेवाएं शुरू की। आज मरीजों को कैंसर, किडनी, लीवर, ब्रेन की बीमारियों के लिए दिल्ली-मुंबई दौड़ नहीं लगानी पड़ती।

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हर इलाज अपने शहर में सरकारी, निजी अस्पतालों में मौजूद है, लेकिन अभी भी मूल-भूत कुछ ऐसी सुविधाएं हैं, जिनके अभाव में स्वास्थ्य सिस्टम रफ्तार नहीं पकड़ पा रहा है। उप स्वास्थ्य केंद्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और जिला अस्पताल इतने सुविधाजनक नहीं कि वहां हर एक बीमारी का इलाज हो। स्थिति यह है कि रायपुर जिला अस्पताल में 24 घंटे ब्लड टेस्ट की सुविधा नहीं।

'नईदुनिया', दैनिक जागरण समूह की ओर से 'मॉय सिटी मॉय प्राइड' अभियान के तहत 14 जुलाई को आयोजित राउंडटेबल कॉन्फ्रेंस में विशेषज्ञों ने शहर की स्वास्थ्य समस्याओं पर अपने विचार और सुझाव पेश किए। ताकि शासन-प्रशासन को बता सकें कि खामियां ये हैं और इन्हें इस प्रकार से दूर किया भी जा सकता है।

कांफ्रेंस में सबसे पहले मॉडरेटर डॉ. राकेश गुप्ता ने जागरण और नईदुनिया द्वारा लाए गए इस अभियान के बिंदुओं पर फोकस किया और विशेषज्ञों को बताया कि इसका उद्देश्य समस्या का समाधान तलाशना है। साथ ही नई सुविधाएं मुहैया कराना है, जिससे स्वास्थ्य सेवा मजबूत हो सके।

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राज्य संपादक आलोक मिश्रा और स्टेड हेड वीके दुबे ने विस्तार से जानकारी दी और बताया कि देश के दस शहरों में यह अभियान चल रहा है। प्रिंट मीडिया के साथ सोशल साइट पर भी इसकी मुहिम छिड़ी हुई है। अभियान के आखिर में एक रिपोर्ट तैयार की जाएगी और उसके आधार पर कार्यान्वयन भी होगा।

हादसे में आ सकती है 50 फीसद कमी
आइएमए के राज्य अध्यक्ष डॉ. अशोक त्रिपाठी का मानना है कि सड़क हादसों से होने वाली मौतों को कम करने के लिए हमें प्रत्येक नागरिक को कॉर्डियक पल्मोनरी रिसैसिटेशन (सीपीआर) के बारे में समझाना जरूरी है। अगर लोग इसके बारे में जान जाएं तो सड़क हादसों में होने वाली मौतों का आंकड़ा 50 फीसद कम किया जा सकता है। अभी तो घायल व्यक्ति को सीधे अस्पताल पहुंचाने की कवायद पहले शुरू होती है, लेकिन उसे पहले प्राथमिक उपचार दिया जा सकता है। सांस रूकने पर मुंह से सांस देना, हार्ट पंप करना प्रमुख हैं। सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि घायल व्यक्ति को अस्पताल पहुंचाने वाले से कोई पुलिसिया पूछताछ नहीं होगी। हालांकि ऐसा होता नहीं है।

संचारी रोग, गैर संचारी रोगों को दें प्राथमिकता
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की छत्तीसगढ़ इकाई के अध्यक्ष डॉक्टर अशोक त्रिपाठी ने कहा कि रायपुर की स्वास्थ्य सेवाएं देश के किसी अन्य शहर की तुलना में कमतर नहीं है। यहां सब-कुछ ठीक है, लेकिन हमें संचारी रोग, गैर संचारी रोगों के इलाज को प्राथमिकता देने की जरूरत है। कैंसर, ब्लड प्रेशर, शुगर जैसी बीमारियों के रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है। इसलिए हम सब चिंतित हैं। जहां तक सवाल स्वच्छता का है तो हमें अपनी आदतें बदलनी होगीं।

उन्होंने कहा कि नर्सिंग होम के नियम सख्त हैं, जिनकी वजह से छोटे-मझोले अस्पतालों को बंद करना पड़ रहा है। एक्ट में संशोधन की जरूरी है। मेरा यह भी मानना है कि स्वास्थ्य को लेकर सिर्फ स्वास्थ्य विभाग ही काम करे, ऐसा हरगिज नहीं होना चाहिए। सरकार के सभी विभागों को मिलकर काम करना होगा।

पं. जवाहरलाल नेहरू मेमोरियल मेडिकल कॉलेज के एनाटॉमी विभाग के प्रोफेसर डॉ. मानिक चटर्जी ने कहा कि आज शहर में ड्रेनेज नाम की कोई चीज नहीं है। हमारे-आपके शहर का गंदा पानी पता ही नहीं चलता जाता कहां है, नालियां भरी रहती हैं। अभी बरसात में नालियों का सारा पानी घरों में घुस रहा है, सड़कों पर है। यही तो शहर के स्वास्थ्य को बिगाड़ रहा है। अब देखिए स्वच्छ भारत के तहत झाड़ू लेकर सड़क की सफाई हर कोई करता है, तालाब में उतरकर हर कोई सफाई करने में जुटा रहता है, लेकिन क्या किसी को नाली की सफाई करते हुए देखते हैं? मैंने तो नहीं देखा। इसलिए समस्या की जड़ तक जाने की जरूरत है और वह है ड्रेनेज।

वहीं अस्पतालों में पैरा मेडिकल स्टाफ की जरूरत है, लेकिन सवाल ये है कि जो उपलब्ध हैं क्या हम उनका बेहतर इस्तेमाल कर पा रहे हैं? नहीं...? सवाल तो कई हैं, लेकिन सिर्फ सवाल उठाना नहीं बल्कि जवाब ढूंढ़ना प्राथमिकता होनी चाहिए।

पैरामेडिकल स्टाफ की दरकार है
रायपुर हॉस्पिटल बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. राकेश गुप्ता ने कहा कि शहर में अस्पताल बहुत हैं, अच्छे इंफ्रास्ट्रक्चर हैं, लेकिन सबसे ज्यादा कमी पैरामेडिकल स्टाफ की है। आप करोड़ों रुपये की मशीनें लगा दें, लेकिन जब मूलभूत सुविधाएं ही नहीं दे पा रहे हैं तो क्या मतलब है इन सबका।

डॉ. गुप्ता ने कहा कि आप देखिए कि आंबेडकर अस्पताल में लोगों को स्ट्रेचर, व्हीलचेयर के लिए मशक्कत करनी पड़ती है। मृतकों के परिजनों को शव ले जाने के लिए शववाहन नहीं मिलते, एंबुलेंस नहीं मिलती। सबको बैठकर रास्ता निकालना होगा कि आखिर कैसे इन छोटी-छोटी कमियों को दूर करें। सरकार को चाहिए वह सुपरस्पेशलिटी नहीं, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को मजबूत करे।

चिकित्सा शिक्षा में काम करने की जरूरत
महामारी नियंत्रण कार्यक्रम के जिला नोडल अधिकारी डॉ. आरके चंद्रवंशी ने कहा कि आज हर किसी को सिर्फ एक दिशा में फोकस कर काम करना चाहिए कि कैसे चिकित्सा शिक्षा को बेहतर बना सकते हैं। मेरा एक मोटो है- 'स्वास्थ्य को खरीदा नहीं जा सकता, स्वस्थ रख सकते हैं'। सबसे ज्यादा अनिवार्य है जागरूकता। आज जितनी भी बीमारियां हैं, चाहे वह पीलिया ही ले लीजिए सब-कुछ जागरूकता की कमी के चलते ही होती हैं।

उन्होंने कहा कि अगर हम सतर्क, जागरूक रहें तो कभी बीमार ही नहीं पड़ेंगे। आज लाइफ स्टाइल की वजह से भी बीमारियां बढ़ रही हैं। ब्लड प्रेशर, शुगर, कैंसर ये इनकी रोकथाम के लिए योजनाएं संचालित हैं। लगातार स्क्रीनिंग कैंप लगाए जा रहे हैं। जैसे ब्रेस्ट कैंसर की ही बात करें, इसे आसानी से घर पर ही महिलाएं जान सकती हैं। आज किसी भी बीमारी पर बात करने में शर्म नहीं होनी चाहिए, अगर ऐसा होगा तो शुरुआती लक्षण में ठीक होने वाली बीमारी जान ले लेगी।

निगम के सामने चुनौतियां सबसे ज्यादा
नगर निगम रायपुर के स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. बीके मिश्रा ने कहा कि पहले निगम के अस्पताल हुआ करते थे, जहां तांता लगा रहता था, लेकिन समय के साथ ये बंद होते चले गए। आज निगम के सामने डोर टू डोर कचरा कलेक्शन, मलेरिया, डेंगू, पीलिया, डॉग बाइट जैसी बड़ी चुनौतियां हैं। डोर टू डोर कचरा कलेक्शन के लिए ठेका दिया गया है, अब सिटी सैनिटेशन भी आउटसोर्स करेंगे, लेकिन इन सब में नागरिकों के सहयोग की अपेक्षा है, जो अभी तक पूरी तरह से नहीं मिलता है। सफाई को लेकर निगम हरसंभव कोशिश कर रहा है कि हर गली-मोहल्ला साफ रहे। डॉग बाइट के भी काफी केस हैं, जैसे गाय के लिए कांजी हाऊस है वैसा ही कुत्तों के लिए एक शेल्टर बनाने पर विचार चल रहा है। रायपुर की पूरी व्यवस्था निगम के हाथों में है इसलिए सुनना पड़ेगा और काम भी करना होगा। हम पूछे नहीं हटते।

अब गुणवत्ता पर बात करनी होगी
स्वास्थ्य एवं महिला उत्थान के क्षेत्र में सेवारत सुलक्षणा नंदी ने कहा कि पीने के लिए पानी की व्यवस्था नहीं हैं तो दिक्कतें होंगी, हर व्यवस्था के लिए जिम्मेदारी तय करनी होगी। मैं मानती हूं कि पांच साल में शहरी स्वास्थ्य केंद्रों में सुविधाएं बढ़ी हैं, आगे बेहतर करने के लिए सरकार के पास अभी कोई प्लानिंग नहीं है। अब गुणवत्ता पर बात करनी होगी। मैं पीएचडी कर रही हूं, लोगों से मिलती हूं।

उन्होंने कहा कि आरएसबीवाई, एमएसबीवाई कार्ड होने के बावजूद मरीजों से अस्पताल प्रबंधन पैसे मांगता है, तो फिर सुविधा का मतलब क्या हुआ? अभी हम सीएसआर फंड की बात कर रहे हैं तो विदेशों में होता है कि लोग फंड डोनेट कर देते हैं, जिन्होंने डोनेट किया है उनके नाम से संबंधित चीज फिर इमारत हो या वार्ड का नाम पड़ जाता है। उसके बाद उन्हें कोई मतलब नहीं होता। यहां भी ऐसा ही होना चाहिए। कंपनियों के पास तो मोटा-मोटा फंड होता है। उन्हें खर्च ही सीएसआर में करना है तो स्थानीय प्रशासन चाहे तो इन फंड का सही दिशा में इस्तेमाल हो सकता है।

होम्योपैथी में शोध की जरूरत
40 साल से नि:शुल्क होम्योपैथी में इलाज कर रहे डॉ. सुरेश श्रीवास्तव ने कहा कि आज तक होम्योपैथी को लेकर कोई शोधकार्य नहीं हुआ। मैं तो पढ़-पढ़कर अपने अनुभव से इलाज करता हूं, लोगों का भरोसा है। बड़े-बड़े मर्ज ठीक होते हैं और लोग दुआएं देकर जाते हैं। शोध होगा तो ही आगे इस पैथी को बेहतर दिशा मिलेगी।

तंबाखू और गुड़ाखू पर लगे प्रतिबंध
मेरा देश, एनजीओ की संचालिका जया द्विवेदी ने कहा कि तंबाखू, गुड़ाखू बीमारियों की सबसे बड़ी वजह है। इन पर सख्ती से प्रतिबंध लगना चाहिए। आप देखिए, सड़क पर अगर हम मोटरसाइकिल या फिर पैदल जा रहे हैं, पता नहीं कौन कब गाड़ी से मुंह बाहर कर थूक दे। विदेशों में तो इस पर सख्त जुर्माना है। दूध के पैकेट को अगर हम फेंके न, उसमें मिट्टी भरकर पौधरोपण करें तो यह इन पैकेट्स का बेहतर इस्तेमाल होगा। शहर में स्वास्थ्य सेवा की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने पर जोर देना होगा, तभी नतीजा सामने आएगा।

कांफ्रेंस में आए ये सुझाव
- स्वच्छता के प्रति जागरुकता बढ़ानी होगी
- अस्पतालों के निचले क्रम के स्टाफ को तकनीकी प्रशिक्षण की जरूरत
- बड़े अस्पतालों में बड़ी मशीनों के साथ छोटी बुनियादी सुविधाओं पर निगाह डालने की आवश्यकता
- होमियोपैथी जैसी पद्धति पर रिसर्च होना चाहिए, जिससे इसके नए नतीजे सामने आ सकें

चुनौतियां
- अस्पतालों में पैरा मेडिकल स्टाफ बड़ी संख्या में, इनको प्रशिक्षण देने में लगेगा लंबा वक्त
- हादसों में घायलों को तत्काल अस्पताल पहुंचाने में जनता मदद नहीं करती, जनता को भरोसा दिलाना कि ऐसा करने पर उन्हें कानूनी दायरे में नहीं लिया जाएगा
- रायपुर के आसपास स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर तरीके से विकसित करना
- स्कूलों में स्वास्थ्य शिक्षा को कोर्स में शामिल कर बच्चों को बुनियादी जानकारी देना

आरटीसी से निकले ये उपायः नागरिकों के सहयोग से हो सकते हैं ये बदलाव
- रायपुर की सबसे बड़ी सब्जी मंडल में व्यापारी बड़े पैमाने पर खराब सब्जियों को जहां-तहां फेंक देते हैं। इससे उपज रही गंदगी सबसे बड़ी समस्या के रूप में उभर कर सामने आ रही है। वहां के निवासियों और व्यापारी संघ की मदद से उन्हें जागरुक किया जा सकता है।
- खुले में शौचविहीन शहर बनाने के लिए तालाबों के आसपास रहने वाले बुजुर्गों को स्वच्छता दूत बना कर मुहिम में शामिल किया जा सकता है। उनकी बातें भली-भांति लोग समझेंगे और मंदिर के आसपास यही बुजुर्ग ज्यादा समय व्यतीत करते हैं।
- होमियोपैथी पर चिकित्सा छात्र रिसर्च कर नए नतीजे दें, जिससे इस कोर्स का भी विस्तार हो।

स्थानीय प्रशासन करेगा काम
माना या पुलिस अस्पताल और धरसींवा या अभनपुर में सुविधाओं से लैस अस्पताल की जरूरत है। इससे बड़ी आबादी को शहर का रुख नहीं करना पड़ेगा और उन्हें वहीं इलाज मुहैया हो जाएगा। 

सीएसआर फंड से हो सकते हैं ये तीन काम

- जरूरत के हिसाब से अस्पतालों में व्हील चेयर, स्ट्रेचर उपलब्ध करवाना।
- सड़क हादसे में घायल व्यक्ति को तत्काल कैसे प्राथमिक उपचार मुहैया करवा जा सके, इसके लिए हाइवे पर स्थित अस्पतालों के पैरा मेडिकल स्टाफ को विशेष रूप से प्रशिक्षण देना।
- हाथ धोने से लेकर छोटी बीमारियों से बचने के तरीकों पर स्कूलों में बच्चों को जागरुकता का पाठ पढ़ाने की मुहिम।


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