'कम्युनिटी पुलिसिंग' से मजबूत होगी रायपुर की पुलिस, ये योजनाएं कब होंगी दोबारा शुरू ?
गुलाबी गैंग से जुड़ी महिलाओं का कहना है कि उनकी शिकायतों पर अब कोई नहीं सुनवाई नहीं हो रही है। मोहल्ले के छोटे-बड़े विवाद फिर से होने लगे है।
रायपुर। नईदुनिया प्रतिनिधि: जनता अक्सर पुलिस से दूर भागती है। खुद पर भी संकट आ जाए, तो वह पुलिस से संपर्क करने से पहले सौ बार सोचती है। पुलिस के प्रति विश्वसनीयता के इस गहरे संकट को दूर करना होगा। तभी जनता और पुलिस की नजदीकी बढ़ेगी। इससे दोनों को फायदा होगा। जनता पूरे भरोसे के साथ पुलिस से मदद मांग सकती है, बल्कि पुलिस भी उनसे जरुरी सूचनाएं ले सकेगी। यह हुआ तो अपराधियों की ताकत आधी रह जाएगी। हर पल पुलिस को सूचना मिल जाने का खतरा सताता रहेगा। 'माय सिटी माय प्राइड' की राउंड टेबल कांफ्रेंस में यह विषय आया था कि पुलिस को 'पुलिस मित्र' बनाकर जनता का भरोसा जीतना चाहिए।
राजधानी में बढ़ते अपराध और अवैध कारोबार को रोकने के मकसद से तीन साल पहले रायपुर पुलिस ने शहर के 70 से अधिक मोहल्लों में पांच हजार से अधिक महिलाओं का 'गुलाबी गैंग' बनाया गया था। कम्युनिटी पुलिसिंग के तहत महिलाओं की टीम बनाकर मोहल्ले में होने वाले अवैध कारोबार, झगड़े, संदिग्ध घूमने वाले लोगों और मामूली विवाद पर थाने पहुंचने वालों को मोहल्ले में ही बैठाकर उनकी समस्याओं का समाधान कर लिया जाता था।
उस वक्त पुलिस अफसरों का पूरा सहयोग मिलने से मोहल्ले की महिलाएं सक्रिय थी और लगातार पुलिस से संपर्क में रहने के कारण हर छोटी-बड़ी सूचनाएं पुलिस को मिल जाया करती थी, लेकिन अब परिस्थितियां बदल गई है। दरअसल पुराने अफसरों का दूसरे जिलों में तबादला हो जाने और नए अफसरों के रायपुर आने से गुलाबी गैंग को अब पहले की तरह थाना पुलिस से तव्वजो मिलना बंद हो गया है। लिहाजा गुलाबी गैंग की सक्रियता अब नाममात्र की होकर रह गई।
नहीं सुनता कोई
गुलाबी गैंग से जुड़ी महिलाओं का कहना है कि उनकी शिकायतों पर अब कोई नहीं सुनवाई नहीं हो रही है। मोहल्ले के छोटे-बड़े विवाद फिर से होने लगे है। शिकायत करने पुलिस अफसर भी ध्यान नहीं देते। थाने जाने पर भगा दिया जाता है। ऐसे में फिर से मोहल्ले में अवैध गतिविधियां संचालित होने लगी है।
पुलिस मित्र भी हुए दूर
कम्युनिटी पुलिस को बढ़ावा देते हुए आम जनता से सीधे जुड़ने का सबसे अच्छा माध्यम संवाद है। वार्डों में होने वाली आपराधिक गतिविधियों को रोकने के लिए उसी वार्ड की महिलाओं का गुलाबी गैंग और पुलिस मित्र बनाकर अपराध रोकने की जिम्मेदारी दी गई थी। रायपुर के पूर्व एसपी रहे दीपांशु काबरा, बद्रीनारायण मीणा, डा.संजीव शुक्ला के कार्यकाल में कम्युनिटी पुलिसिंग को बढ़ावा देने की दिशा में बेहतर काम हुए थे।
समय-समय पर पुलिस अधिकारी वार्ड में बैठक लेकर आम जनता की शिकायतों को दूर कर उनका हौंसला बढ़ाते थे। इसके बेहतर नतीजे सामने आए। जो लोग कभी पुलिस की गाड़ी देखकर ही घरों में दुबक जाते थे,वे खुलकर सामने आकर शिकायत करने लगे थे।
बैठकों का सिलसिला खत्म
राजातालाब में बार-बार फैलने वाली अशांति का सिलसिला आम जनता से पुलिस के अच्छे व्यवहार के कारण ही हमेशा के लिए खत्म हो गई। लेकिन इन अफसरों के जिले से तबादला होने के बाद नए अफसरों के आते ही वार्ड और मोहल्लों में आम जनता के साथ बैठकों का सिलसिला खत्म हो गया। इसका खामियाजा यह हुआ कि पुलिस मित्र से पुलिस अफसरों की दूरियां बढ़ गई।
कागजों तक सीमित शांति समिति
राजधानी में विभिन्न समाज, संगठन से जुड़े लोगों को की एक समिति, शांति समिति बनाई गई है। यह समिति भी कागजी हो चुकी है और केवल त्योहार के वक्त बैठक की औपचारिकता निभाई जाती है। बैठकों में गिने-चुने सदस्य ही शामिल होकर अपने विचार रखते है। कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ने पर कभी भी समिति के सदस्य अपनी भूमिका निभाने सामने नहीं आते है।
डियर जिंदगी अभियान से जगी उम्मीद
कम्युनिटी पुलिसिंग को बढ़ाना देने रायपुर पुलिस इन दिनों 'डियर जिंदगी' नाम से जनजागरूकता अभियान चला रही है। इसके तहत झुग्गी-झोपड़ी बस्तियों, मोहल्लों में नशा करने वाले पुरुष-महिलाओं, अपराधियों को अपराध का रास्ता छोड़कर स्वाभिमान की जिंदगी जीने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।
इस अभियान में पुलिस अफसर खुद भाग लेकर लोगों को नशा मुक्त और अपराध से दूर रहकर सभ्य समाज के निर्माण में योगदान देने और पुलिस का सहयोग करने का शपथ भी दिला रहे ह। इस अभियान से एक बार फिर से उम्मीद की किरण दिखाई दे रही है।