आपके PF कटौती का कुछ हिस्सा EPS में होता है जमा, कर्मचारियों को ऐसे मिलती है पेंशन
कर्मचारी पेंशन स्कीम 1995 के अनुसार नियोक्ता को कर्मचारी की सैलरी का 8.33 फीसद हिस्सा ईपीएस में योगदान करना जरूरी है
नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। कर्मचारी भविष्य निधि (EPF) सभी कर्मचारियों को रिटायरमेंट के लिए फंड एकत्रित करने में मदद करता है। 20 या उससे अधिक कर्मचारियों वाले संस्थानों को कर्मचारियों की सैलरी का 12 फीसद हिस्सा काटकर उसे ईपीएफ (कर्मचारी का पीएफ खाता) में जमा कराना होता है। इसके साथ ही इतना ही योगदान नियोक्ता को भी अपनी तरफ से कर्मचारी के खाते में जमा कराना होता है। इसमें नियोक्ता की तरफ से ईपीएफओ को दिए जाने वाला 12 फीसद का एक पार्ट कर्मचारी पेंशन स्कीम या EPS में जाता है।
EPS में कितना पैसा योगदान करना जरूरी?
कर्मचारी पेंशन स्कीम 1995 के अनुसार, नियोक्ता को कर्मचारी की सैलरी का 8.33 फीसद हिस्सा ईपीएस में योगदान करना जरूरी है। सितंबर 2014-15 के बाद से ईपीएस सिर्फ उन कर्मचारियों के लिए लागू है, जिनकी सैलरी नौकरी शुरू करते वक्त 15 हजार से कम है और वो ईपीएफ के मेंबर बन रहे हैं। जो इससे पहले ईपीएफ के मेंबर रहे हैं उनके पास ईपीएस होना जारी है।
कैसे मिलती है पेंशन: नौकरी के दौरान कर्मचारी की बेसिक सैलरी के 8.33 फीसद हिस्से के बराबर पैसा पेंशन स्कीम (ईपीएस) में जमा होता है। इसके एवज में कर्मचारी को रिटायरमेंट के बाद निश्चित मासिक पेंशन की सुविधा मिलती है। ईपीएफओ सभी कर्मचारियों के ईपीएफ अकाउंट के साथ ही ईपीएस अकाउंट को भी मैनेज करता है। यह सुविधा उन्हें मिलती है जिनका वेतन (बेसिक सैलरी+डीए) 15,000 है।
पात्रता: 10 वर्षों से अधिक समय तक काम करने के बाद कर्मचारी ईपीएस पेंशन स्कीम के पात्र हो जाते हैं, जिसकी शुरुआत 50 या 58 साल की उम्र में कर्मचारी की पसंद के हिसाब से होती है।
कब निकाल सकते हैं EPS का पैसा?
अगर आपने 10 साल से कम समय तक काम किया है और 2 माह से ज्यादा समय से बेरोजगार हैं तो आप ईपीएस का अमाउंट निकाल सकते हैं।
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