आसान भाषा में समझें क्या होता है कार्टेल?
आर्थिक जगत में प्रचलित ‘कार्टेल’ शब्द मूल रूप से लैटिन भाषा के ‘कार्टा’ शब्द से निकला है जिसका अर्थ होता है लिखित करार
नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। आर्थिक जगत में प्रचलित ‘कार्टेल’ शब्द मूल रूप से लैटिन भाषा के ‘कार्टा’ शब्द से निकला है जिसका अर्थ होता है लिखित करार। लैटिन से यह शब्द इटालियन, फ्रेंच और जर्मन भाषा से होकर अंग्रेजी में कार्टेल के रूप में आया। शुरू में ‘कार्टेल’ का इस्तेमाल राजनीतिक दलों के संघों के लिए होता था। लेकिन पिछली सदी की शुरुआत से इसका प्रयोग व्यापार जगत में होने लगा। व्यापार के संदर्भ में ‘कार्टेल’ की परिभाषा इस प्रकार है : ‘उत्पादकों, विक्रेताओं, वितरकों या सेवा प्रदाताओं का ऐसा संगठन जो आपसी समझौते के माध्यम से सेवाओं या वस्तुओं के उत्पादन, वितरण, व्यापार, बिक्री और मूल्य को सीमित व नियंत्रित करता है या नियंत्रण का प्रयास करता है, उसे ‘कार्टेल’ कहते हैं।’ परिभाषा से स्पष्ट है कि इस तरह के नियंत्रण या नियंत्रण के प्रयास को कार्टेलाइजेशन कहा जाता है।
‘कार्टेल’ मुख्य रूप से तीन प्रकार का होता है। जब ‘कार्टेल’ में शामिल कंपनियां कई देशों की होती हैं और इसका असर कई देशों के बाजारों पर पड़ता है, तो उसे ‘इंटरनेशनल कार्टेल’ कहते हैं। इसका सबसे उपयुक्त उदाहरण पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन ‘ओपेक’ है। ओपेक 15 देशों का संगठन है, जिसके पास विश्व के कच्चे तेल का 80 फीसद भंडार है। यह संगठन जब चाहता है तब कच्चे तेल का उत्पादन बढ़ाता है और कम करता है। इस तरह यह अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों को नियंत्रित करता है।
‘कार्टेल’ का दूसरा रूप ‘इंपोर्ट कार्टेल’ है जिसमें किसी वस्तु को आयात करने वाली कई कंपनियां गुप्त समझौता कर लेती हैं। इसी तरह जब किसी एक देश की कई कंपनियां मिलकर अन्य देशों में सामान बेचने के लिए करार करती हैं, तो उसे ‘एक्सपोर्ट कार्टेल’ कहते हैं।
‘कार्टेल’ की सबसे बड़ी पहचान यह है कि इसकी कार्यप्रणाली अपारदर्शी होती है और यह गोपनीयता से कार्य करता है। अगर बाजार में प्रतिस्पर्धा है तो ‘कार्टेल’ पैर नहीं जमा सकता लेकिन इसका अभाव होने पर यह सहज ही पनप जाता है। ‘कार्टेल’ का सबसे अधिक नुकसान ग्राहकों को होता है। इसके चलते बाजार में प्रतिस्पर्धा खत्म हो जाती है जिससे उत्पादक अपने सामान या सेवा का मनमाना दाम वसूलते हैं।
यही वजह है कि अलग-अलग देशों ने कार्टेलाइजेशन रोकने को तंत्र बनाया है। हमारे देश में भारतीय प्रतिस्पर्धा कानून-2002 में कार्टेलाइजेशन रोकने के लिए कई तरह के प्रावधान किए गए हैं। कानून के तहत स्थापित भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआइ) ‘कार्टेल’ की शिकायतों का निवारण करता है। अगर आयोग को प्रथम दृष्टया यह विश्वास हो जाए कि मामला कार्टेलाइजेशन का है तो वह इसकी जांच का आदेश दे सकता है। अगर कंपनियां दोषी पाई जाती हैं तो उन पर बड़ा जुर्माना भी लगा सकता है।
यहां कार्टेल, मोनोपॉली और ओलिगोपॉली में फर्क समझना भी जरूरी है। बाजार में जब किसी वस्तु या सेवा को प्रदान करने वाली कंपनी अकेली होती है तो बाजार पर उसका एकाधिकार होता है। इसे मोनोपॉली कहते हैं। उदाहरण के लिए, भारत में ट्रेन सेवा सिर्फ भारतीय रेल द्वारा प्रदान की जाती है। इस तरह रेल परिवहन पर भारतीय रेल की मोनोपॉली है। वहीं, जब किसी वस्तु या सेवा को प्रदान करने वाले कुछ ही विक्रेता होते हैं तो उसे ऑलिगोपॉली कहते हैं। वे स्पर्धी विक्रेताओं की उत्पाद व मूल्य रणनीति पर नजर तो रखते हैं लेकिन कीमतें तय करने के लिए उनके बीच ‘कार्टेल’ की तरह कोई करार नहीं होता। हालांकि जब वस्तु या सेवा प्रदाताओं के बीच कीमतों को बढ़ाने या आपूर्ति को घटाने को लेकर आपसी करार होता है तो वह ‘कार्टेल’ का रूप ले लेता है।