वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा, इंडो-यूएस ट्रेड समझौते पर जल्द बनेगी बात
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि भारत अमेरिका के बीच चल रही व्यापार वार्ता जल्द ही समझौते में बदल सकती है।
न्यूयॉर्क, पीटीआइ। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि भारत-अमेरिका में चल रही व्यापार वार्ता जल्द ही समझौते का रूप ले लेगी। उन्होंने कहा कि वार्ता की प्रगति बहुत अच्छी है और इसे उम्मीद से पहले पूरा कर लिया जाएगा। इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिका दौरे के समय इसको लेकर बात नहीं बन सकी थी। उस दौरान वार्ता में कई पेच उलझ गए थे। अमेरिका चाहता है कि उसके स्टेंट्स और घुटने के प्रत्यारोपण संबंधी मेडिकल उपकरणों, आइसीटी उत्पाद और डेयरी के लिए भारत प्राइस कैप हटाकर बाजार उपलब्ध कराए। भारत भी अपने घरेलू बाजार को बचाने का प्रयास कर रहा है। वित्त मंत्री ने कहा कि अमेरिका के व्यापार घाटे की चिंता का ध्यान रखते हुए भारत उचित और तर्कसंगत समझौता चाहता है।
अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी में आयोजित व्याख्यान में सीतारमण ने कहा भारत के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल और अमेरिका के व्यापार प्रतिनिधि रॉबर्ट लाइटहाइजर व्यापार मतभेदों को दूर करने की कोशिश कर रहे हैं। जल्द ही यह वार्ता किसी बेहतर नतीजे पर पहुंचेगी। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की अमेरिका फर्स्ट नीति के चलते दोनों देशों के बीच व्यापार को लेकर तनाव पैदा हो गया था। ट्रंप ने भारत को टैरिफ किंग तक कह दिया था।
सीतारमण ने नोबेल विजेता अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी की टिप्पणी का जवाब देते हुए कहा कि सरकार खपत बढ़ाने पर जोर दे रही है। फाइनेंशियल कंपनियों और बैंकों की सहायता से ग्राउंड लेवल पर काम किया जा है। गौरतलब है कि अभिजीत बनर्जी ने हाल में कहा था कि भारतीय इकोनॉमी संकट से गुजर रही है। उन्होंने कहा था कि मौद्रिक स्थायित्व के मुकाबले मांग को बढ़ाना ज्यादा जरूरी है। वित्त मंत्री ने कहा कि इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश से खपत को बल मिलेगा। सरकार ने बजट के दौरान इस सेक्टर में 100 लाख करोड़ रुपये निवेश करने की घोषणा की थी।
मनमोहन सिंह और रघुराम राजन के कार्यकाल में बैंकों को सबसे ज्यादा नुकसान : वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और आरबीआइ गवर्नर रघुराम राजन के कार्यकाल में भारतीय बैंकों का प्रदर्शन सबसे खराब रहा है। उन्होंने कहा कि यूपीए सरकार के दौरान रघुराम राजन के कार्यकाल में बैंकों का एनपीए बहुत अधिक बढ़ गया था। बढ़े हुए एनपीए के चलते बैंकों की हालत खस्ता हो गई थी, उनकी सरकार बीमार बैंकों को ठीक करने का प्रयास कर रही है।
वित्त मंत्री ने कहा कि राजन के कार्यकाल में नेताओं द्वारा किए गए सिर्फ एक फोन कॉल के माध्यम से लोन बांट दिए गए थे, जिसके चलते सरकारी बैंकों को नुकसान हुआ। बैंक आज अपने नुकसान से उबरने के लिए सरकार का मुंह देख रहे हैं। सरकारी बैंक इस समय एनपीए की गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं। इसी वर्ष अगस्त में सरकार ने इन बैंकों को 70,000 करोड़ रुपये देने की घोषणा की थी।