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पेट्रोल-डीजल पर क्यों बेबस है केंद्र सरकार, पर समझिए आखिर कैसे कम हो सकती हैं कीमतें

यह समझा जाना जरूरी है कि आखिर सरकारें पेट्रोल एवं डीजल की कीमतों को कम करने को लेकर इतनी बेबस क्यों है?

By Praveen DwivediEdited By: Published: Wed, 19 Sep 2018 01:36 PM (IST)Updated: Thu, 20 Sep 2018 07:29 AM (IST)
पेट्रोल-डीजल पर क्यों बेबस है केंद्र सरकार, पर समझिए आखिर कैसे कम हो सकती हैं कीमतें
पेट्रोल-डीजल पर क्यों बेबस है केंद्र सरकार, पर समझिए आखिर कैसे कम हो सकती हैं कीमतें

नई दिल्ली (प्रवीण द्विवेदी)। क्या केंद्र एवं राज्य सरकार के मंत्री और उनके अधिकारी यह बात नहीं जानते कि ईंधन की कीमतें सरकारों को बड़ा आर्थिक नुकसान दे सकती हैं? बेशक जानते भी हों, लेकिन अंतरराष्ट्रीय संकेतों और देश की वर्तमान स्थितियों के आगे सरकारें बेबस हैं। ऐसे में देश के आम आदमी को राहत न दे पाने को लाचार सरकारें अगर वाकई में इस दिशा में कुछ करना चाहती है तो उन्हें बड़े नीतिगत फैसले लेने होंगे।

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क्रूड में रह-रह कर आ रहा उबाल और डॉलर के मुकाबले लगातार पतला होता रुपया पेट्रोल एवं डीजल की कीमतों की आग को भड़का रहा है। सरकारें फिलहाल दोहरे असमंजस में है। वह न तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्रूड की कीमतों को कम करने के लिए कुछ कर सकती है और न ही वो भारत में ईंधन की कीमतों को कम करने के लिए कुछ कर पा रही हैं। ऐसे में यह समझा जाना जरूरी है कि आखिर सरकारें पेट्रोल एवं डीजल की कीमतों को कम करने को लेकर इतनी बेबस क्यों है?

समझिए भारत में पेट्रोल और डीजल का गणित?

  • पेट्रोलियम पदार्थ केंद्र एवं राज्य दोनों सरकारों के लिए राजस्व का बहुत बड़ा जरिया हैं। केंद्र पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज ड्यूटी वसूलता है जबकि राज्य इस पर वैट के जरिए कमाई करते हैं। अगर प्रति लीटर की बात करें तो सिर्फ एक्साइज और वैट की हिस्सेदारी 30 से 38 रुपये प्रति लीटर के आस पास बैठती है। इसके अलावा डीजल पर रोड टैक्स, पेट्रोलियम मशीनरी पर कस्टम ड्यूटी के साथ जीएसटी और कारपोरेट टैक्स का बड़ा हिस्सा भी शामिल होता है। ऐसे में न तो केंद्र एक्साइज ड्यूटी कम करने को तैयार है और न ही राज्य वैट को कम करने को राजी होंगे।
  • वहीं कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में यह भी कहा गया है कि अगर पेट्रोल एवं डीजल को जीएसटी के 28 फीसद स्लैब के दायरे में लाया गया तो भी राज्यों के पास लोकल सेल्स टैक्स या वैट भी लगाने का अधिकार होगा। ऐसे में बात घूम-फिरकर फिर वहीं आ जाएगी। कीमतें बेलगाम ही रहेंगी।
  • केंद्र सरकार को एक्साइज का आधा हिस्सा पेट्रोलियम पदार्थों से प्राप्त होता है और अप्रत्यक्ष कर में इसकी हिस्सेदारी 40 फीसद से ऊपर की है। शायद इसीलिए सरकार पेट्रोल-डीजल की कीमतों में एक्साइज ड्यूटी को कम करने को लेकर ना-नुकुर कर रही है।

क्या कहते हैं ऊर्जा विशेषज्ञ?

ऊर्जा विशेषज्ञ नरेंद्र तनेजा ने बताया कि सबसे पहले हमें तेल के अर्थशास्त्र और तेल की राजनीति को अलग अलग चश्में से देखना होगा। ईंधन पर दो तरह के बड़े टैक्स लगते हैं पहला एक्साइज जो कि वर्तमान में 19.15 रुपये है और दूसरा वैट जो कि हर राज्य में अलग-अलग है। यह कहना पूरी तरह से बेइमानी है कि केंद्र सरकार कीमतों को कम करने के लिए कुछ नहीं कर रही है। दरअसल इस वक्त केंद्र के हाथ में ज्यादा कुछ नहीं है वो ज्यादा से ज्यादा एक्साइज को एक या दो रुपये कम कर सकती है। इतने से तस्वीर बदलने वाली नहीं है। साथ ही आपको बता दें कि केंद्र की ओर से लगने वाली एक्साइज ड्यूटी फिक्स्ड प्राइज पर होती है। पिछले साल अक्टूबर में इसमें 2 रुपये प्रति लीटर की कमी की गई थी, जिसके बाद से इसमें इजाफा नहीं हुआ। लिहाजा केंद्र के पास ज्यादा कुछ करने की गुंजाइश नहीं है। रही बात राज्य सरकारों की तो वहां फीसद के आधार पर वैट लगता है इसे एड-वॉलरम (मूल्यवर्धित कर) कहा जाता है। यानी अगर पेट्रोल महंगा हुआ तो राज्यों को सीधे तौर पर 25 फीसद का मुनाफा। हाल ही में पेट्रोल-डीजल से राज्यों के मुनाफे में 34 फीसद का इजाफा हुआ है।

तो आखिर क्या है समाधान?

पेट्रोल एवं डीजल की बढ़ती कीमतों के लिए केंद्र सरकार को दोष देना उचित नहीं है। अगर वाकई में इस दिशा में कुछ किया जाना है तो केंद्र, राज्य एवं तेल कंपनियों को मिलकर काम करना होगा तभी स्थिति में सुधार देखने को मिलेगा। केंद्र को एक्साइज में नरमी लानी होगी, राज्यों को अपना वैट कम करना होगा और कंपनियों को अपने मार्जिन में थोड़ी कमी लानी होगी। इसके अलावा अन्य कोई त्वरित समाधान नजर नहीं आता है। जैसा कि हम अपनी जरूरत का 85 फीसद कच्चा तेल आयात करते हैं लिहाजा यही समाधान कारगर नजर आता है।


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