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क्या होता है व्यापार घाटा, कैसे करता है अर्थव्यवस्था को प्रभावित?

जब कोई देश निर्यात की तुलना में आयात अधिक करता है तो उसे ट्रेड डेफिसिट (व्यापार घाटा) कहते हैं।

By Pramod Kumar Edited By: Published: Mon, 08 Oct 2018 08:56 AM (IST)Updated: Mon, 08 Oct 2018 10:25 AM (IST)
क्या होता है व्यापार घाटा, कैसे करता है अर्थव्यवस्था को प्रभावित?
क्या होता है व्यापार घाटा, कैसे करता है अर्थव्यवस्था को प्रभावित?

नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। आयात और निर्यात के अंतर को व्यापार संतुलन कहते हैं। जब कोई देश निर्यात की तुलना में आयात अधिक करता है तो उसे ट्रेड डेफिसिट (व्यापार घाटा) कहते हैं। इसका मतलब यह है कि वह देश अपने यहां ग्राहकों की जरूरत को पूरा करने के लिए वस्तुओं और सेवाओं का पर्याप्त उत्पादन नहीं कर पा रहा है, इसलिए उसे दूसरे देशों से इनका आयात करना पड़ रहा है। इसके उलट जब कोई देश आयात की तुलना में निर्यात अधिक करता है तो उसे ट्रेड सरप्लस कहते हैं।

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वित्त वर्ष 2017-18 में भारत ने लगभग 238 देशों और शासनाधिकृत क्षेत्रों के साथ कुल 769 अरब डॉलर का व्यापार (303 अरब डॉलर निर्यात और 465 अरब डॉलर आयात) किया। इस तरह इस अवधि में भारत का व्यापार घाटा 162 अरब डॉलर रहा। इनमें से 130 देशों के साथ भारत का ट्रेड सरप्लस था जबकि करीब 88 देशों के साथ ट्रेड डेफिसिट (व्यापार घाटा) रहा। भारत का सर्वाधिक व्यापार घाटा पड़ोसी देश चीन के साथ 63 अरब डॉलर है। इसका मतलब यह है कि चीन के साथ व्यापार भारत के हित में कम तथा इस पड़ोसी देश की अर्थव्यवस्था के लिए अधिक फायदेमंद है। चीन की तरह स्विट्जरलैंड, सऊदी अरब, इराक, इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया, ईरान, नाइजीरिया, कतर, रूस, जापान और जर्मनी जैसे देशों के साथ भी भारत का व्यापार घाटा अधिक है।

अगर हम ट्रेड सरप्लस की बात करें तो अमेरिका के साथ भारत का ट्रेड सरप्लस सर्वाधिक (21 अरब डॉलर) है। इसका अर्थ है कि हमारा देश अमेरिका से आयात कम और वहां के लिए निर्यात ज्यादा करता है। इस तरह अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार संतुलन का झुकाव भारत की ओर है। सरल शब्दों में कहें तो अमेरिका से व्यापार भारतीय अर्थव्यवस्था के अनुकूल है। बांग्लादेश, संयुक्त अरब अमीरात, नेपाल, हांगकांग, नीदरलैंड, पाकिस्तान, वियतनाम और श्रीलंका जैसे देशों के साथ भी भारत का ट्रेड सरप्लस है।

अर्थशास्त्रियों का मत है कि अगर किसी देश का व्यापार घाटा लगातार कई साल तक कायम रहता है तो उस देश की आर्थिक स्थिति खासकर रोजगार सृजन, विकास दर और मुद्रा के मूल्य पर इसका नकारात्मक असर पड़ेगा। चालू खाते के घाटे पर भी व्यापार घाटे का नकारात्मक असर पड़ता है। असल में चालू खाते में एक बड़ा हिस्सा व्यापार संतुलन का होता है। व्यापार घाटा बढ़ता है तो चालू खाते का घाटा भी बढ़ जाता है।

दरअसल चालू खाते का घाटा विदेशी मुद्रा के देश में आने और बाहर जाने के अंतर को दर्शाता है। निर्यात के जरिये विदेशी मुद्रा अर्जित होती है जबकि आयात से देश की मुद्रा बाहर जाती है। यही वजह है कि सरकार ने हाल में कई वस्तुओं पर आयात शुल्क की दर बढ़ाकर गैर जरूरी वस्तुओं के आयात को कम करने का प्रयास किया है। वैसे अमेरिका का व्यापार घाटा दुनिया में सर्वाधिक है और उसने इस मत को कुछ हद तक गलत साबित किया है। इसकी वजह यह है कि अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और डॉलर पूरी दुनिया में रिजर्व करेंसी के रूप में रखी जाती है। भारत का ट्रेड डेफिसिट (व्यापार घाटा) इस साल जुलाई में पांच साल के उच्चतम स्तर (19 अरब डॉलर) पर पहुंच गया है। यह सिर्फ एक महीने का आंकड़ा है और माना जा रहा है कि पूरे वित्त वर्ष के लिए यह पिछले साल के मुकाबले काफी अधिक होगा।  


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