EPF और PPF में न हों कंफ्यूज, जानिए इसमें निवेश के फायदे
एक जैसे सुुनाई देने वाले ईपीएफ और पीपीएफ में एक बुनियादी अंतर होता है जिसे आमतौर पर कम ही लोग जानते हैं
नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। पब्लिक प्रोविडेंट और इम्प्लॉई प्रोविडेंट फंड निवेश के दो बेहतरीन विकल्प हैं। कई बार लोगों को दोनों के नाम को लेकर भ्रम हो जाता है। लेकिन ये दोनों स्कीम अलग-अलग हैं। हम इस खबर में आपको दोनों निवेश विकल्प को लेकर जानकारी दे रहे हैं।
योग्यता: ईपीएफ (कर्मचारी भविष्य निधि) केवल वेतनभोगी व्यक्तियों के लिए है। यह एक अनिवार्य बचत योजना है जो 20 से अधिक कर्मचारियों वाली कंपनी के कर्मचारियों के लिए लागू होती है, जिनका वेतन निर्धारित न्यूनतम राशि से अधिक है। जबकि PPF (पब्लिक प्रोविडेंट फंड), बैंकों और डाकघरों की ओर से सभी के लिए पेश किया जाता है, इसमें वेतनभोगी होना मायने नहीं रखता।
कितना करना होता है योगदान: बता दें कि वेतनभोगी के लिए ईपीएफ में निवेश अनिवार्य है। इसमें निवेश के लिए बेसिक और डीए का 12 फीसद तक ईपीएफ खाते में काटकर जमा किया जाता है। जबकि पीपीएफ स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना है। एक वित्तीय वर्ष में आपको न्यूनतम जमा राशि 500 रुपये और अधिकतम 1.5 लाख रुपये करने की अनुमति है। इसमें एकमुश्त या किस्तों में योगदान किया जा सकता है।
कितनी मिलती है टैक्स छूट: ईपीएफ अकाउंट में जमा 1,50,000 रुपये तक की राशि पर इनकम टैक्स एक्ट 80 C के अंतर्गत कर छूट का लाभ मिलता है। आपके ईपीएफ मैच्योर होने पर मिलने वाली राशि को केवल तभी छूट दी जाती है जब आपके पास कम से कम पांच साल की निरंतर जॉब का ट्रैक रिकॉर्ड हो। इससे अलग PPF को EEE कर का दर्जा प्राप्त है। इसका मतलब है कि आपका पीपीएफ निवेश सभी स्तरों, कर, संचय और मैच्योरिटी पर कर-मुक्त है।
इंटरेस्ट रेट: ईपीएफ पर ब्याज दर हर साल ईपीएफओ घोषित करता है। 2017-18 के लिए इसे 8.55 फीसद तय किया गया था। PPF की ब्याज दरें 10 साल के सरकारी बॉन्ड यील्ड और तिमाही आधार पर बदलती हैं। 2018-19 की अंतिम तिमाही में पीपीएफ ब्याज दर 8 फीसद की दर से मिल रही है।
लॉक-इन पीरियड: ईपीएफ खाते में पांच साल की लॉक-इन अवधि होती है। पीपीएफ में 15 साल की लॉक-इन अवधि होती है।