एशिया और अफ्रीका में तेजी से बढ़ रहा डिजिटल पेमेंट
कोरोना डिजिटल फाइनैंशियल सेवाओं के लिए गेम चेंजर साबित हुआ है। कम आय वर्ग वाले लोगों से लेकर छोटी कंपनियों तक सभी को मोबाइल मनी फिनटेक सेवा और ऑनलाइन बैंकिंग से फायदा हुआ है।
नई दिल्ली, अनुराग मिश्र/पीयूष अग्रवाल। कोरोना महामारी डिजिटल फाइनैंशियल सेवाओं के लिए गेम चेंजर साबित हुई है। कम आय वर्ग वाले लोगों से लेकर छोटी कंपनियों तक, सभी को मोबाइल मनी, फिनटेक सेवाओं और ऑनलाइन बैंकिंग से फायदा हुआ है। डिजिटल फाइनैंशियल सेवाएं आर्थिक विकास के लिहाज से भी प्रेरक और प्रोत्साहक साबित हो रही हैं। लॉकडाउन और फिजिकल डिस्टैंसिंग ने डिजिटल फाइनैंशियल सर्विसेज को गति प्रदान की है। इससे डिजिटल पेमेंट को जोरदार बढ़ावा मिला है और दुनिया भर में डिजिटल इकोनॉमी की ग्रोथ में तेजी आ रही है। अफ्रीका और एशिया में डिजिटल पेमेंट सबसे तेजी से बढ़ा है।
इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड (आईएमएफ) के एक शोध पेपर में दुनियाभर के 52 उभरते बाजारों और अर्थव्यवस्थाओं का इंडेक्स ऑफ फाइनेंशियल इनक्लूजन (वित्तीय समावेशन) जारी किया गया है। इससे सामने आया है कि अफ्रीका और एशिया डिजिटल फाइनैंशियल इनक्लूजन में तेजी से आगे बढ़े हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि केन्या और भारत की डिजिटल पेमेंट की ग्रोथ में जोरदार तेजी आई है। रिपोर्ट के अनुसार, चीन ने डिजिटल पेमेंट का इस्तेमाल 2003 में सार्स के दौरान शुरू किया था। अमेरिका और चीन उभरते बाजारों जैसे- भारत, केन्या, मैक्सिको, नाइजीरिया और तंजानिया में अपना कारोबार बढ़ा रहे हैं। पूर्वी अफ्रीका, चीन और भारत सबसे तेजी से बढ़ने वाले बाजारों में शामिल हैं।
आर्थिक विकास के लिए फायदेमंद
फाइनैंशियल इनक्लूजन अर्थव्यवस्था और समाज दोनों के लिए बेहतर होता है। पहले के अध्ययन में सामने आया है कि यह आर्थिक असमानता को कम करने का काम भी करता है। विश्लेषण में यह भी सामने आया कि डिजिटल फाइनेंशियल इनक्लूजन की बेहतरी को जीडीपी ग्रोथ से जोड़ा जा सकता है।
तेजी से बढ़ रहा डिजिटल ट्रांजैक्शन: नैस्कॉम रिपोर्ट
नैस्कॉम की रिपोर्ट कहती है कि भारत में बीते बीस सालों में डिजिटल ट्रांजैक्शन की तस्वीर पूरी तरह से बदल गई है। वर्ष 2000 में डिजिटल इकोनॉमी का योगदान सिर्फ तीन प्रतिशत था, जिसके 2025 में बढ़कर 58 प्रतिशत तक पहुंच जाने की उम्मीद है। रिपोर्ट के मुताबिक, स्मॉर्टफोन का बाजार भारत में 2005 में 2 प्रतिशत था, जो 2015 में बढ़कर 26 प्रतिशत हो गया। वर्ष 2022 में इसके 36 फीसदी तक होने की उम्मीद है। यूपीआई में साल दर साल 143 फीसदी की बढ़ोतरी हो रही है। आने वाले समय में यूपीआई की बढ़ोतरी की दर तेज रहने की उम्मीद है। सेमी-अर्बन (अर्ध-शहरी) और ग्रामीण क्षेत्रों में भी इसके सक्रिय उपभोक्ता बढ़े हैं।