उतरा सोने का खुमार
खबरों के मुताबिक इस बार अक्षय तृतीया के अवसर पर सोने की खरीद को लेकर कोई उत्साहपूर्ण माहौल नहीं रहा। ऐसी हर रिपोर्ट में रिपोर्टर ने जिन लोगों से बात की उन्होंने अपने-अपने मुताबिक इसके कारण बताए कि इस साल सोने की मांग में उछाल क्यों नहीं आया। कुछ लोगों का मानना है कि अर्थ
खबरों के मुताबिक इस बार अक्षय तृतीया के अवसर पर सोने की खरीद को लेकर कोई उत्साहपूर्ण माहौल नहीं रहा। ऐसी हर रिपोर्ट में रिपोर्टर ने जिन लोगों से बात की उन्होंने अपने-अपने मुताबिक इसके कारण बताए कि इस साल सोने की मांग में उछाल क्यों नहीं आया। कुछ लोगों का मानना है कि अर्थव्यवस्था की सुस्ती और लोगों की खरीद क्षमता में कमी के कारण ऐसा हुआ तो कुछ लोगों का कहना है कि सोने की ऊंची कीमतों से मांग पर असर पड़ा है। वहीं, कुछ लोग इसमें मौजूदा आम चुनाव को भी कारण मानते हैं। हालांकि चुनाव आयोग की आचार संहिता में ऐसा कुछ नहीं है जो सोने की खरीद के खिलाफ हो, कम से कम मुझे ऐसा नहीं लगता।
मेरा अनुमान है कि सोने की बिक्री पर असर डालने वाला अहम कारण इसकी कीमतें हैं। कीमतों में लगातार वृद्धि उम्मीद ही वह कारक हैं, जिसके कारण इसकी मांग में पिछले कुछ वर्षो में बढ़ोतरी हुई। कमोडिटी ट्रेडरों के अलावा जिन लोगों ने पिछले कुछ सालों में सोने की खरीद की वे इस बात से प्रेरित हुए कि कीमतें ज्यादा हैं लेकिन इनमें लगातार वृद्धि हो रही है। जिन लोगों ने 25,000 रुपये प्रति दस ग्राम की कीमत पर सोना बेचा उन्होंने यह महसूस किया कि कैसे कुछ ही समय पहले यह 20,000 रुपये प्रति दस ग्राम और उससे पहले 15,000 रुपये प्रति दस ग्राम पर था।
जिन लोगों के पास सोना मौजूद था उस पर कीमतों की तेज बढ़ोतरी ने एक तरह का मनोवैज्ञानिक प्रभाव निर्मित किया, इसी प्रभाव के कारण वह सोने की और खरीद करने के लिए चुंबक की तरह आकर्षित रहे। कीमतों में वृद्धि का यह दौर टूटने से यह आकर्षण भी टूट गया, कम से कम कुछ समय के लिए।
कभी-कभार निवेश करने वाले निवेशकों का व्यवहार उनके पिछले अनुभव से प्रभावित होता है। जब तक सोने की कीमतों में स्थिरता रहेगी, तब तक इसकी मांग भी गायब रहेगी। और बचतकर्ताओं के लिए यह एक अच्छी बात है।
धीरेंद्र कुमार