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म्‍युचुअल फंडों में निवेश के अवसर तलाश रहे इन्‍वेस्‍टर्स के लिए यह सुनहरा दौर, FD से अच्‍छा मिलेगा रिटर्न

हम म्‍युचुअल फंड में निवेश इसलिए करते हैं जिससे हम आर्थिक विकास में अपना हिस्सा हासिल कर सकें। एफडी वह फायदा नहीं देता जो म्‍युचुअल फंड देता है।

By Manish MishraEdited By: Published: Tue, 10 Dec 2019 12:19 PM (IST)Updated: Thu, 12 Dec 2019 12:15 PM (IST)
म्‍युचुअल फंडों में निवेश के अवसर तलाश रहे इन्‍वेस्‍टर्स के लिए यह सुनहरा दौर, FD से अच्‍छा मिलेगा रिटर्न
म्‍युचुअल फंडों में निवेश के अवसर तलाश रहे इन्‍वेस्‍टर्स के लिए यह सुनहरा दौर, FD से अच्‍छा मिलेगा रिटर्न

नई दिल्‍ली, धीरेंद्र कुमार। पिछले वर्ष लगभग इसी समय जब मैं यह कॉलम लिख रहा था तो मेरे दिमाग में भारत में सिस्टमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (एसआइपी) निवेश की शानदार विकास दर बसी हुई थी। उस समय मैंने लिखा था कि अगर यह रूझान जारी रहा तो अगले 15 वर्षो में न सिर्फ इक्विटी असेट बढ़कर 320 लाख करोड़ रुपये हो जाएगी, बल्कि यह भारत में कुल म्‍युचुअल फंड निवेश का लगभग 75 प्रतिशत होगा।

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अब मुझे लगता है कि मेरा यह आकलन गलत था। पिछले कुछ माह की घटनाओं से पता चलता है कि एसआइपी का चलन इससे ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है। इसका कारण यह है कि एसआइपी भारतीय निवेशकों के मनोविज्ञान को बदल रही है। मैं पहले से ही इस बात की उम्मीद कर रहा था। निवेशकों पर एसआइपी का यह सबसे अहम प्रभाव है। इससे पहले इक्विटी मार्केट एक ही स्तर के आसपास घूम रहा था फिर इसमें तेजी का दौर आया। 

ऐसे में एसआइपी निवेशक और गैर-एसआइपी निवेशक के व्यवहार में साफ अंतर देखा जा सकता है। यह बात सिर्फ कुछ लोगों के आकलन के आधार पर नहीं कही जा रही है बल्कि यह बात म्‍युचुअल फंड इंडस्ट्री के आंकड़ों में साफ दिखती है। एसोसिएशन ऑफ म्‍युचुअल फंड्स इन इंडिया (AMFI) हर माह म्‍युचुअल फंड से जुड़े आंकड़े जारी करता है।

सितंबर, 2009 में इक्विटी और इक्विटी फंडों में निवेश का कुल प्रवाह 28 प्रतिशत कम हो गया। यानी यह 9,152 करोड़ रुपये से गिरकर 6,609 करोड़ रुपये रह गया। इसे एक बुरी खबर की तरह देखा गया। लेकिन एसआइपी निवेश 8,231 करोड़ रुपये से बढ़कर 8,263 करोड़ रुपये हो गया। अब सवाल यह है कि इसका मतलब क्या है। इसका मतलब है कि गैर-एसआइपी निवेशकों ने उसी तरह से व्यवहार किया, जिस तरह से वे पहले करते थे। उन्होंने बाजार में सही मौका देखकर रकम निकाल लिया और मुनाफा कमाने का प्रयास किया। हालांकि, एसआइपी निवेशक इसका अपवाद रहे और उन्होंने अच्छे या बुरे समय में निवेश जारी रखा।

यह म्‍युचुअल फंड निवेश की नई दुनिया है, जिसमें हम प्रवेश कर रहे हैं। मेरा हमेशा से मानना था कि समय के साथ भारतीय निवेशकों का रवैया बदलेगा और वे इसी दिशा में जाएंगे। मैंने पहले कभी ऐसा उत्साह महसूस नहीं किया था, क्योंकि इस बार यह वास्तव में होता हुआ दिख रहा है। और सबसे अहम बात यह है कि निवेशकों के रवैये में यह बदलाव अपने आप हो रहा है और वे खुद इस बदलाव को मजबूत कर रहे हैं। जैसे-जैसे अधिक से अधिक निवेशकों को एसआइपी का अनुभव हो रहा है वे बेहतर रिटर्न और सुकून हासिल कर रहे हैं।

भारतीय निवेशकों के रवैये में बड़े पैमाने पर बदलाव आने का कारण यह भी है कि साथ ही साथ म्युचुअल फंडों की दुनिया भी लगातार बेहतरी की ओर बढ़ती रही है। ये बदलाव अचानक नहीं हुए हैं, बल्कि इसमें एक दशक से भी अधिक का समय लगा है। हालांकि, एक के बाद एक सभी बड़ी दिक्कतों को दूर किया गया है। ये सभी बदलाव कदम-दर-कदम हुए हैं। ऐसे में इस बात का अनुभव करना थोड़ा कठिन है कि इससे क्या फर्क पड़ा है। 

हालांकि, अगर आप इन सभी बदलावों को एक साथ देखें तो आपको पता चलेगा कि इससे भारतीय बचतकर्ताओं को एक नया विकल्प मिला है। सही मायने में अगर आप 17 साल पहले से तुलना करें तो आज के म्‍युचुअल फंड अब पूरी तरह से नए प्रोडक्ट हैं। अहम बात यह है कि ये सभी बदलाव बेहतरी के लिए हुए हैं, और इसने म्‍युचुअल फंड को एक बेहतरीन जरिया बना दिया है जिससे भारतीय बचतकर्ता रकम बना सकें।

हम म्‍युचुअल फंड में निवेश इसलिए करते हैं जिससे हम आर्थिक विकास में अपना हिस्सा हासिल कर सकें। एफडी वह फायदा नहीं देता, जो म्‍युचुअल फंड देता है। भारतीय अर्थव्यवस्था की धीमी विकास दर को लेकर कही और गढ़ी जाने वाली बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए। बिल गेट्स ने एक बार कहा था कि हम हमेशा इस बात को बढ़ा-चढ़ाकर आंकते हैं कि एक वर्ष में क्या कर सकते हैं और इस बात को कम करके आंकते हैं कि 10 वर्षो में क्या कर सकते हैं। यह बात बचत और निवेश के लिए ज्यादा सही है। महीनों और वर्ष को खुद पर हावी मत होने दीजिए, यह दशक है जो आपके लिए मायने रखता है।

एसआइपी निवेश की विकास दर को लेकर एक वर्ष पहले जिस तरह के कयास लगाए जा रहे थे, असल में विकास उससे कहीं ज्यादा हुआ है। इसकी प्रमुख वजह यह है कि कुछ वर्ष पहले तक इक्विटी बाजार एक दायरे में था और उसमें कोई तेज विकास नहीं दिख रहा था, जो पिछले कुछ वर्षो में दिखा है। ऐसे में यह सहज था कि लोग एसआइपी में निवेश के प्रति ज्यादा आकर्षित होते, और यही हो रहा है। इस लिहाज से कहें, तो इकोनॉमी की वर्तमान हालत को देखते हुए कुछ लोग जिस कदर निराशावादी हो रहे हैं, वैसा होने की जरूरत नहीं है। इकोनॉमी कभी दिनों और महीनों के चश्मे से नहीं देखी जाती, बल्कि इसका व्यवहार दशकों का है।

(लेखक वैल्‍यू रिसर्च के सीईओ हैं। प्रकाशित विचार उनके निजी हैं।)


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