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Budget 2022: फंड कंपनियों के संगठन AMFI ने सरकार को डेट लिंक्‍ड बचत योजना लांच करने का दिया सुझाव

देश में ऋण व बांड बाजार में खुदरा निवेशकों को आमंत्रित करने के लिए कई तरह के कदम उठा चुकी केंद्र सरकार चाहे तो इस दिशा में एक क्रांतिकारी कदम उठा सकती है। यह कदम होगा म्‍युचुअल फंड की तरह ही डेट लिंक्‍ड बचत योजना को लांच करना।

By Manish MishraEdited By: Published: Wed, 15 Dec 2021 10:39 AM (IST)Updated: Wed, 15 Dec 2021 10:39 AM (IST)
Budget 2022: फंड कंपनियों के संगठन AMFI ने सरकार को डेट लिंक्‍ड बचत योजना लांच करने का दिया सुझाव
AMFI Suggest Modi Govt To Launch Debt Linked Savings Scheme

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। देश में ऋण व बांड बाजार में खुदरा निवेशकों को आमंत्रित करने के लिए हाल के दिनों में कई तरह के कदम उठा चुकी केंद्र सरकार चाहे तो इस दिशा में एक क्रांतिकारी कदम उठा सकती है। यह कदम होगा म्‍युचुअल फंड की तरह ही डेट लिंक्‍ड बचत योजना को लांच करना। यह सुझाव देश में म्‍युचुअल फंड उद्योग के सबसे बड़े संगठन (AMFI) ने वित्त मंत्रालय को सौंपा है और उम्मीद जताई है कि बजट 2021-22 में इस सुझाव पर अमल होगा। सरकार इक्विटी लिंक्‍ड बचत योजना के तर्ज पर ही इसे लांच कर सकती है। इससे बांड बाजार में आम निवेशक की रुचि बढ़ेगी। एएमएफआइ ने कहा है कि बांड बाजार को तब तक बड़े पैमाने पर विस्तार नहीं मिल सकता जब तक कि आम निवेशक उसमें लंबी अवधि के लिए पैसा लगाना नहीं शुरू करे। डेट लिंक्‍ड सेविंग्स स्कीम (DLSS) इस समस्या का समाधान हो सकता है।

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अगर निवेशकों को बेहतर व सुरक्षित रेटिंग वाले बांड में निवेश करने और इस पर टैक्स छूट का प्रविधान किया जाए तो यह स्कीम काफी सफल हो सकती है। फंड के तहत जमा पैसा को किस तरह से निवेश किया जाए इसको लेकर सेबी अलग से नियम बना सकता है। मोटे तौर फंड की कुल राशि का 80 प्रतिशत तक बांड बाजार में निवेश करने की छूट देने का सुझाव दिया गया है।

इसी क्रम में यह सुझाव भी दिया गया है कि निवेश छूट की मौजूदा सीमा 1.50 लाख रुपये में ही डीएलएसएस को शामिल करने का प्रविधान किया जा सकता है। हालांकि निवेश पर पांच वर्ष का लाक-इन होना चाहिए यानि एक बार निवेश के बाद निवेशक को पांच वर्ष बाद ही पैसे निकालने की इजाजत होनी चाहिए।

बांड बाजार विकसित होने से कर्ज की समस्या हो सकेगी हल

एएमएफआइ का कहना है कि भारत पिछले दो दशकों के दौरान एशिया के एक प्रमुख वित्तीय बाजार के तौर पर स्थापित हो चुका है। हालांकि, यहां का बांड बाजार काफी पिछड़ा हुआ है। बांड बाजार के विकसित नहीं होने का एक बड़ा बोझ बैंकों पर पड़ता है क्योंकि हर तरह का उद्योग कर्ज या वित्त पोषण के लिए इन बैंकों पर ही निर्भर होता है। दूसरी तरफ एनपीए समस्या में घिरे होने से बैंकों के लिए बड़े पैमाने पर कर्ज देना संभव नहीं है। ऐसे में बांड बाजार का विस्तार होगा तो बड़ी कंपनियों के लिए वित्तीय संसाधन जुटाने का एक नया तरीका उपलब्ध होगा। बैंक भी छोटे व मझोले उद्योगों को ज्यादा कर्ज दे सकेंगे। निवेशकों को लंबे समय तक निवेश करने और बेहतर रिटर्न मिलने का एक और विकल्प मिलेगा। सनद रहे कि ताजे आंकडे़ बताते हैं कि बैंकों में छोटे बचत खाता खोलने वालों की संख्या घट गई है जबकि शेयर बाजार में निवेश करने वालों की संख्या तेजी से बढ़ी है।


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