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संसदीय समिति के समक्ष पेश हुए ऊर्जित पटेल, कहा-नोटबंदी से अर्थव्यवस्था पर हुआ ''क्षणिक'' असर

आरबीआई गवर्नर वैसे समय में संसदीय समिति के समक्ष पेश हुए हैं, जब सरप्लस ट्रांसफर समेत अन्य मुद्दों पर केंद्र सरकार के साथ केंद्रीय बैंक की टकराव की स्थिति बनी हुई है।

By Abhishek ParasharEdited By: Published: Tue, 27 Nov 2018 03:34 PM (IST)Updated: Tue, 27 Nov 2018 06:31 PM (IST)
संसदीय समिति के समक्ष पेश हुए ऊर्जित पटेल, कहा-नोटबंदी से अर्थव्यवस्था पर हुआ ''क्षणिक'' असर

नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर ऊर्जित पटेल मंगलवार को संसदीय समिति के सामने पेश हुए, जहां उन्होंने नोटबंदी और सरकारी बैंकों में एनपीए की स्थिति के बारे में पूछे गए सवालों का जवाब दिया।

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बैठक में पटेल ने सवालों का लिखित जवाब देने का आश्वासन दिया। नोटबंदी को लेकर पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए आरबीआई गवर्नर ने कहा कि इससे अर्थव्यवस्था पर ''क्षणिक'' प्रभाव पड़ा। हालांकि उन्होंने आरबीआई एक्ट की धारा 7 को बहाल किए जाने, एनपीए और केंद्रीय बैंक की स्वायत्ता के साथ अन्य विवादित मुद्दों को लेकर स्पष्ट जवाब नहीं दिया।

एक अन्य सूत्र के मुताबिक समिति ने गवर्नर को बड़ी संख्या में पूछे गए सवालों का लिखित जवाब देने के लिए 10-15 दिनों का समय दिया।

सूत्रों के मुताबिक बैठक में उन्होंने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था को कच्चे तेल की कीमतों में हुई गिरावट से मदद मिलेगी। पटेल ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियाद ‘’मजबूत’’ है।

सूत्रों के मुताबिक पटेल ने समिति के समक्ष अर्थव्यवस्था की हालत का विस्तार से लेखा-जोखा रखा। इसके साथ ही उन्होंने वैश्विक अर्थव्यवस्था की भी जानकारी दी। अर्थव्यवस्था को लेकर उनका रुख ‘’आशावादी’’ रहा।

पटेल ने कहा, ‘विशेष धारा को बहाल किए जाने समेत विवादित मुद्दों पर उन्होंने दूरी बनाए रखी, बल्कि कुछ भी कहने की बजाए उन्होंने चतुराई से उसका जवाब दिया।’

सूत्रों के मुताबिक वित्तीय मामलों पर गठित 31 सदस्यीय समिति के समक्ष नोटबंदी, बैंकिंग सिस्टम में मौजूद एनपीए और अर्थव्यवस्था की मौजूदा हालत समेत अन्य मुद्दे सूचीबद्ध थे। पटेल को इससे पहले 12 नवंबर को संसदीय समिति के समक्ष पेश होना था।

आरबीआई गवर्नर वैसे समय में संसदीय समिति के समक्ष पेश हुए हैं, जब सरप्लस ट्रांसफर समेत अन्य मुद्दों पर केंद्र सरकार के साथ केंद्रीय बैंक की टकराव की स्थिति बनी हुई है। इस समिति की अध्यक्षता पूर्व केंद्रीय मंत्री एम वीरप्पा मोइली के हाथों में है, वहीं पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इसके सदस्य है।

इस बीच आ रही खबर के मुताबिक केंद्र सरकार भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को कुछ कमजोर बैंकों पर कर्ज बांटने को लेकर लगे प्रतिबंधों में ढील देने के लिए कह सकती है। न्यूज एजेंसी ब्लूमबर्ग के मुताबिक आरबीआई के बोर्ड की अगली बैक में कर्ज बांटने पर लगे प्रतिबंधों के नियम की समीक्षा की जा सकती है।

गौरतलब है कि एनपीए की समस्या से निपटने के लिए आरबीआई की तरफ से प्रॉम्प्ट करेक्टिव एक्शन लिस्ट (पीसीए) में डाले जाने के बाद 11 सरकारी बैंकों के कर्ज देने के साथ नए ब्रांच खोले जाने पर रोक लगी हुई है। बोर्ड के सदस्य अगली बैठक में इस सूची में कुछ कमजोर बैंकों को बाहर किए जाने को लेकर दबाव बनाएंगे। विशेषकर उन बैंकों को जो एनपीए की उगाही की दिशा में बेहतर काम कर रहे हैं।

रिजर्व बैंक के सरप्लस फंड को सरकार को ट्रांसफर किए जाने के विवाद के बीच 14 दिसंबर को होने वाली बोर्ड की बैठक के तनावपूर्ण होने की उम्मीद की जा रही है। बैठक से पहले सरकार और बोर्ड ने इस मामले में सुलह के संकेत दिए हैं।

11 सरकारी बैंकों पर कर्ज बांटे जाने को लेकर लगे प्रतिबंध उन कई कारणों में से एक था, जिसकी वजह से सरकार और आरबीआई के बीच विवाद की स्थिति पैदा हुई थी।

यह भी पढ़ें: बैंकों पर कर्ज बांटने को लेकर लगे प्रतिबंध को हटाने के लिए RBI से कहेगी सरकार: रिपोर्ट

एक अन्य सूत्र के मुताबिक समिति ने गवर्नर को बड़ी संख्या में पूछे गए सवालों का लिखित जवाब देने के लिए 10-15 दिनों का समय दिया।


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