पब्लिक क्रेडिट रजिस्ट्री के लिए अलग कानून जरूरी : आरबीआई
आरबीआई ने प्रस्तावित पब्लिक क्रेडिट रजिस्ट्री को अस्तित्व में लाने के लिए एक अलग और विशिष्ट नियम बनाने की जरूरत पर बल दिया है।
नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। आरबीआई ने प्रस्तावित पब्लिक क्रेडिट रजिस्ट्री को अस्तित्व में लाने के लिए एक अलग और विशिष्ट नियम बनाने की जरूरत पर बल दिया है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के डिप्टी गवर्नर विरल वी आचार्य ने कहा कि स्वतंत्र कानून के बगैर पब्लिक क्रेडिट रजिस्ट्री (पीसीआर) का कोई मतलब नहीं है।
उन्होंने कहा कि पीसीआर के विशिष्ट नियमन से वित्तीय तंत्र में आंकड़ों तक सभी साझेदारों की पहुंच बन जाएगी। इससे कर्ज वितरण में भेदभाव और फंसे कर्ज (एनपीए) जैसी समस्याओं का समाधान हो सकेगा। वहीं, आरबीआई के एक अन्य डिप्टी गवर्नर एनएस विश्वनाथन ने देश के क्रेडिट ब्यूरो को मजबूती देने की मांग की। उन्होंने कहा कि सरकार कानूनी संशोधन कर यह काम आसानी से कर सकती है।
आचार्य ने कहा कि देश में कर्ज और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का अनुपात 55.7 फीसद के निचले स्तर पर है। इसका सीधा मतलब यह है कि देश के एक बड़े हिस्से को कर्ज नहीं मिल पा रहा है। प्रस्तावित पीसीआर का मकसद जरूरतमंद लोगों को समय पर कर्ज मुहैया कराना और किसी को बहुत ज्यादा तो किसी को बिल्कुल कर्ज नहीं की मौजूदा असमानता को खत्म करना है।
गौरतलब है कि बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट की पिछले वर्ष की चौथी तिमाही के आंकड़ों के मुताबिक भारत का कर्ज-जीडीपी अनुपात 55.7 फीसद है। वहीं, चीन में यह आंकड़ा 208.7 फीसद, जो ब्रिटेन में 170.5 और संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएसए) में 152.2 फीसद के ऊंचे स्तर पर है। इस सूची में 245.6 फीसद के साथ नॉर्वे सबसे ऊपर है।
आचार्य ने कहा, "पीसीआर के लिए एक व्यापक कानून की जरूरत है। अगर ऐसा नहीं होगा, तो इससे जुड़े सभी कानूनों में अलग-अलग संशोधन करना पड़ेगा। उन्होंने पीसीआर के सफल क्रियान्वयन की भी उम्मीद जताते हुए कहा कि एक अरब से ज्यादा लोगों का आधार आंकड़ा उपलब्ध है। इसके अलावा जीएसटी नेटवर्क के पास भी करोड़ों लोगों के कॉरपोरेट डाटा मौजूद हैं।