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IL&FS संकट: कंपनी का नियंत्रण अपने हाथों में लेने की तैयारी में सरकार

नकदी संकट का सामना करना कर रही आईएलएंडएफएस समूह की कमान सरकार अपने हाथों में ले सकती है।

By Abhishek ParasharEdited By: Published: Mon, 01 Oct 2018 12:53 PM (IST)Updated: Mon, 01 Oct 2018 04:51 PM (IST)
IL&FS संकट: कंपनी का नियंत्रण अपने हाथों में लेने की तैयारी में सरकार

बिजनेस डेस्क (नई दिल्ली)। संकट का सामना कर रही इंफ्रास्ट्रकचर डेवलपमेंट और फाइनेंस कंपनी आईएलएंडएफएस का नियंत्रण सरकार अपने हाथों में ले सकती है। वरिष्ठ अधिकारियों के मुताबिक सरकार ने इस कंपनी के प्रबंधन में बदलाव को लेकर नैशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) का दरवाजा खटखटाया है।

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गौरतलब है कि आईएलएंडएफएस की सहायक कंपनियों के डिफॉल्ट के बाद वित्तीय बाजार में नकदी संकट की आशंका बढ़ गई है, जिसे दूर करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) लगातार फैसले ले रहा है। आरबीआई ने इससे पहले जहां बैंकों को राहत देते हुए एलसीआर में कटौती की थी, वहीं अब वह अक्टूबर में खुले बाजार से करीब 360 अरब रुपये का बॉन्ड खरीदने जा रहा है।

अधिकारी ने बताया कि कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय ने ट्रिब्यूनल में कंपनी के प्रबंधन में बदलाव की अपील को लेकर आवेदन दिया है। कंपनी के करीबी सूत्रों के मुताबिक प्रबंधन सरकार के आवेदन का समर्थन करेगा ताकि शेयरहोल्डर्स के हितों को ध्यान में रखते हुए समस्या का समाधान निकाला जा सके।

समूह पर कुल 90,000 करोड़ रुपये का कर्ज है और इसमें सबसे ज्यादा हिस्सेदारी सरकारी कंपनियों की है। आईएलएंडएफएस में एलआईसी और जापान की ओरिक्स कॉरपोरेशन की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा है। एलआईसी की इस कंपनी में जहां 25.34 फीसद हिस्सेदारी है वहीं ओरिक्स कॉरपोरेशन की इसमें 23.54 फीसद हिस्सेदारी है।

अबू धाबी इनवेस्टमेंट अथॉरिटी की इस कंपनी में 12.5 फीसद हिस्सेदारी है। इसके अलावा सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया की 7.67 फीसद और भारतीय स्टेट बैंक की 6.42 फीसद हिस्सेदारी है।

क्या है आईएलएंडएफएस संकट आईएलएंडएफएस समूह को फिलहाल नकदी संकट का सामना करना पड़ रहा है। कंपनी 27 अगस्त के बाद से अपने कर्ज के ब्याज का भुगतान करने में विफल रही है। कंपनी पर 9100 करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज है।

कंपनी को तत्काल 300 करोड़ रुपये की जरूरत है और वह 450 करोड़ रुपये राइट इश्यू की मदद से जुटाने की योजना बना रही है। इस महीने की शुरुआत में हुई बैठक में कंपनी के शेयरधारकों ने किसी भी नई पूंजी सहायता से पहले कंपनी के एसेट्स और नॉन कोर बिजनेस को बेचकर फंड जुटाने की शर्त रखी थी।

खबरों के मुताबिक कंपनी ने 4 सितंबर को सिडबी के 1000 करोड़ रुपये के शॉर्ट टर्म लोन का भुगतान करने में विफल रही थी वहीं इसकी सहायक कंपनी भी 500 करोड़ रुपये के कर्ज का भुगतान करने से चूक गई।

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